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दलित विषयक साहित्य और वैश्ीकरण
शीतांशु कुमार
दलित समाज और साहितय पर वैश्वीकरण ्के प्रभाव ्को दचदनित ्करने ्के लिए यह समझना जरूरी है द्क वैश्वीकरण ्का कया अर्थ है और यह हाशिए ्के समाज ्के साथ द्कस तरह पेश आता है । 1990 ्के साथ वैश्वीकरण ्की जो प्रदकया शुरू हुई , उस्की परिभाषा इतनी सहज नहीं है । वैश्वीकरण ्को ले्कर वैचारर्क जगत् में सप्टतः दो धड़े हैं । वैश्वीकरण ्के सम्मा्क बिुदद्जीवियों ्का ्कहना है द्क इसने विभिन्न देशों ्के बिीच ्की िदूरियों ्को अबि निर्मा्क सादबित ्कर दिया है । टेलीविजन , इणटरनेट और विभिन्न संचार माधयम इन िदूरियों ्को मिटाने में महत््पदूणमा भदूदम्का निभा रहे हैं । ए्क-िदूसरे ्के दन्कट आने से लोगों ्के बिीच द्द्मान विभिन्न ्के अषसमताई बिनधन ्कमजोर होते जा रहे हैं । इन बिुदद्जीवियों ्का मत है द्क वैश्वीकरण ्के माधयम से पदूंजी ्का अबिाध प्रवाह विभिन्न देशों में हो स्केगा और अदध्क पदूंजी प्रापत होने पर विभिन्न देश अपनी अर्थवय्स्ाओं ्को और द््कदसत ्कर स्केंगे । जो देश समय ्के साथ अपनी अर्थवय्स्ा में विभिन्न बिहुरा्ट्रीय निगमों ्को स्ान देते जाएंगे , वह दुनिया भर ्के सुख-संसाधनों ्का अपनी जगह पर रहते हुए भी उपभोग ्कर पाएंगे । इस त्क्फ ्के अनुसार सदूचना , संचार और अर्थतनत् अबि मनु्य ्के लिए जयािा सहज , सुलभ और फायदेमनि हो गए हैं ।
िदूसरी ओर वैश्वीकरण ्के विरोधी बिुदद्जीवियों ्का सप्ट मत है द्क वैश्वीकरण पदूंजी ्के अबिाध विसतार और नई आर्मा्क नीतियों से प्रेरित जनसंचार माधयमों ्के जरिए ए्क तरह ्की छवियों
और सनिेशों ्को परोसता रहता है , ताद्क उपभोकताओं ्की प्रा्दम्कताओं ्को समरूप बिनाया जा स्के I इस समरूपी्करण से बिहुरा्ट्रीय निगमों ्को सबिसे पहले यह फायदा होगा द्क तैयार उतपािों ्की विश् बिाजार में दबिकी सहज
हो जाएगी । वैश्वीकरण मदूलतः पदूंजी ्केषनद्रत अर्थवय्स्ा ्की पोर्क अवधारणा है , जिसमें विभिन्न रा्ट्रों ्की अर्थवय्स्ा पदूंजी और बिाजार ्के उदारी्करण ्के पक् में संलनि होती जा रही हैं । इस्का मुनाफा ्कुछ लोगों त्क पहुंचेगा और
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