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भी है , जो आकोश ्के रूप में दिखाई देता है । कयोंद्क दलित ्कद्ता ्की निजता जबि सामादज्कता में परिवर्तित होती है , तो उस्के आंतरर्क और बिाहय द्ंद् उसे संषशल्टता प्रदान ्करते हैं । यहां यह ्कहना भी अतिशयोषकत नहीं होगा द्क हिनिी आलोच्क अपने इर्द-गिर्द रचे – बिसे संस्कारर्क मापदंडो , जिसे वह
सौन्दर्यबोध ्कहता है , से इतर देखने ्का अभयसत नहीं है । इसी लिए उसे दलित ्कद्ता ्कभी अपरिपक् लगती है , तो ्कभी सपाट बियानी , तो ्कभी बिच्कानी भी । दलित ्कद्ता ्की अंत : धारा और उस्की वसतुदन््ता ्को प्कड़ने ्की वह ्कोशिश नहीं ्करना चाहता है । यह ्कार्य उसे उबिाऊ लगता है । इसी लिए वह दलित ्कद्ता से ट्कराने ्के बिजाए बिच्कर दन्कल जाने में ही अपनी पदूरी शषकत लगा देता है ।
दलित चेतना दलित विषय्क ्कद्ता ्को ए्क अलग और द्दश्ट आयाम देती है । यह चेतना उसे डा . अम्बेड्कर जीवन दर्शन और जीवन संघर्ष से मिली है । यह ए्क मानदस्क प्रदकया है जो इर्द-गिर्द फैले सामादज्क , धादममा्क , राजनीदत्क , शैक्षणिक , आर्मा्क छदमों से सावधान ्करती है । यह चेतना संघर्षरत
दलित जीवन ्के उस अंधेरे से बिाहर आने ्की चेतना है जो हजारों साल से दलित ्को मनु्य होने से िदूर ्करते रहने में ही अपनी श्रे््ता मानता रहा है । इसी लिए ए्क दलित ्कद् ्की चेतना और ए्क तथा्कद्त उच्च्णवीय ्कद् ्की चेतना में गहरा अंतर दिखाई देता है । सामादज्क जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक घटना से मनु्य प्रभावित होता है । वहीं से उस्के संस्कार जनम लेते हैं और उस्की वैचारर्कता , दाशमादन्कता , सामादज्कता , साहित्यिक समझ प्रभावित होती हैं । ्कोई भी वयषकत अपने परिवेश से प्रभावित हुए दबिना नहीं रह स्कता है । इसी लिए ्कद् ्की चेतना सामादज्क चेतना ्का ही प्रदतदबि्बि बिन ्कर उभरती है । जो उस्की ्कद्ताओं में मदूतमा रूप में प्र्कट होती है । इसी लिए दलित जीवन पर लिखी गयी रचनाएं जबि ए्क दलित लिखता है और ए्क गैर दलित लिखता है तो दोनों ्की सामादज्क चेतना ्की भिन्नता साफ – साफ दिखाई देती है । जिसे अनदेखा ्करना हिनिी आलोच्क ्की विवशता है । यह जरूरी हो जाता है द्क दलित ्कद्ता ्को पढते समय दलित- जीवन ्की उन विसंगतियों , प्रताडनाओं , भेदभाव , असमानताओं ्को धयान में रखा जाये , तभी दलित विषय्क ्कद्ता ्के साथ साधारणी्करण ्की षस्दत उतपन्न होगी ।
हिनिी ्के ्कुछ विद्ानों , आलोच्कों ्को लगता है द्क दलित ्का जीवन बििल चु्का है । लेद्कन दलित ्कद् और साहित्यकार अभी भी अतीत ्का रोना रो रहे हैं और उन्की अभिवयषकत आज भी वहीं फुले , अम्बेड्कर , पेरियार ्के समय में ही अट्की हुई है । यह ए्क अजीबि तरह ्का आरोप है । आज भी दलित उसी पुरातन पंथी जीवन ्को भोग रहा है जो अतीत ने उसे दिया था । हां , चनि लोग जो गांव से दन्कल शहरों और महानगरों में आये , ्कुछ अचछी नौ्करियां पा्कर उस षस्दत से बिाहर दन्कल आये हैं , शायद उनहीं चनि लोगों ्को देख ्कर विद्ानों ने अपनी राय बिनाली है द्क दलितों ्के जीवन में अंतर आ चु्का है । लेद्कन वास्तविकता इससे ्कोसों िदूर है । महानगरों में रहने वालों ्की
वास्तविक षस्दत वैसी नहीं है , जैसी दिखाई दे रही है । यदि षस्दतयां बििली होती तो दलितों ्को अपनी पहचान छिपा ्कर महानगरों ्की आवासीय ्कालोनियों में कयों रहना पडता । वे भी िदूसरों ्की तरह स्ादभमान से जीते , लेद्कन ऎसा नहीं हुआ । समाज उनहें मानयता देने ्के लिए आज भी तैयार नहीं है ।
शहरों और महानगरों से बिाहर ग्ामीण क्ेत्ों में दिन रात खेतों , खलिहानों , ्कारखानों में पसीना बिहाता दलित जबि ््का-मांदा घर लौटता है , तो उस्के पास जो है वह इतना ्कम है द्क वह अपने पास कया जोड़े और कया घटाये , द्क षस्दत में होता है । ऊपर से सामादज्क विद्ेर उस्की रही सही उ्मीिों पर पानी फेर देता है । इसी लिए अभा्ग्सत जीवन से उपजी द््कलताओं , जिजिविषायें दलित ्कद् ्की चेतना ्को संघर्ष ्के लिए उतप्रेरित ्करती हैं , जो उस्की ्कद्ता ्का स्ायी भाव बिन्कर उभरता है । और दलित विषय्क ्कद्ता में दलित जीवन और उस्की विवशतायें बिार-बिार आती हैं । इसी लिए ्कद् ्का ‘ मैं ’ ‘ हम ’ बिन्कर अपनी वयषकतगत , निजी चेतना ्को सामादज्क चेतना में बििल देता है । साथ ही मानवीय मदूलयों ्को गहन अनुभदूदत ्के साथ श्िों में ढालने ्की प्रवृत्ति भी उस्की पहचान बिनती है ।
दलित विषय्क ्कद्ता ्को मध्यकालीन संतों से जोड़्कर देखने ्की भी प्रवृति इधर दिखाई देती है । जिस पर गंभीर और तटस् विवेचना ्की आवश्यकता है । संत ्कावय ्की अधयाषतम्कता , सामादज्कता और उन्के जीवन मदूलयों ्की प्रासंदग्कता ्के साथ डॉ . अम्बेड्कर ्के मुषकत – संघर्ष से उपजे साहितय ्की अंत : चेतना ्का विशलेरण ्करते हुए ही द्कसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा स्कता है । जो सम्कालीन सामादज्क संिभणो ्के लिए जरूरी लगता है , जिस पर गहन चिंतन ्की आवश्यकता है । दलित ्कद्ता में आकोश , संघर्ष , न्कार , विद्रोह , अतीत ्की स्ादपत मानयताओं से है । वर्तमान ्के छद्म से है , लेद्कन मुखय लक्य जीवन में घृणा ्की जगह प्रेम , समता , बिनधुता , मानवीय मदूलयों ्का संचार ्करना ही दलित ्कद्ता ्का लक्य है । �
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