Jan 2024_DA | Page 44

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अस्मिता की संस्कृ ति में दलित विषयक कविता

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म्कालीन ्कद्ता ने अपना ए्क द्दश्ट मु्काम हासिल द्कया है जिसे देख ्कर यह ्कहा जा स्कता है द्क भारतीय परिदृशय पर दलित ्कद्ता ने अपनी उपषस्दत दर्ज ्कर्के सामादज्क संवेदना में बििलाव ्की प्रदकया तेज ्की है । दलित ्कद्ता ्के इस स्रूप ने दनषशचत ही भारतीय मानस ्की सोच ्को बििला है । दलित ्कद्ता आननि या रसास्ािन ्की चीज नहीं है । बिषल्क ्कद्ता ्के माधयम से मानवीय पक्ों ्को उजागर ्करते हुए मनु्यता ्के सरो्कारों और मनु्यता ्के पक् में खड़ा होना है । मनु्य और प्र्ककृदत , भाषा और संवेदना ्का गहरा रिशता है , जिसे दलित ्कद्ता ने अपने गहरे सरो्कारों ्के साथ जोडा है ।
दलित विषय्क ्कद्ता ने अपनी ए्क द््कास -यात्ा तय ्की है , जिसमें वैचारर्कता , जीवन- संघर्ष , विद्रोह , आकोश , न्कार , प्रेम , सांस्ककृदत्क छदम , राजनीदत्क प्रपंच , वर्ण- विद्ेर , जाति ्के सवाल , साहित्यिक छल आदि विषय बिार-बिार दस्तक देते हैं , जो दलित ्कद्ता ्की द््कास -यात्ा ्के विभिन्न पड़ाव से हो्कर गुजरते हैं । दलित ्कद् ्के मदूल में मनु्य होता है , तो वह उतपीड़न और असमानता ्के प्रति अपना विरोध दर्ज ्करेगा ही । जिसमें आकोश आना स्ाभाद््क परिणिति है । जो दलित ्कद् ्की अभिवयषकत ्को यथार्थ ्के दन्कट ले जाती है । उस्के अपने अंतर्विरोध भी हैं , जो ्कद्ता में छिपते नहीं हैं , बिषल्क स्ाभाद््क रूप से अभिवयकत होते हैं । दलित ्कद्ता ्का जो प्रभाव और उस्की उतपदत्त है , जो आज भी जीवन पर लगातार आकमण ्कर रही है । इसी लिए ्कहा जाता है द्क दलित ्कद्ता मानवीय मदूलयों और मनु्य ्की अषसमता ्के साथ खडी है ।
जिस विषमतामदूल्क समाज में ए्क दलित संघर्षरत हैं , वहां मनु्य ्की मनु्यता ्की बिात ्करना अ्कलपनीय लगता है । इसी लिए सामादज्कता में समताभाव ्को मानवीय पक् में परिवर्तित ्करना दलित ्कद्ता ्की आंतरर्क अनुभदूदत है , जिसे अभिवयकत ्करने में गहन वेदना से गुजरना पडता है । भारतीय जीवन ्का सांस्ककृदत्क पक् दलित ्को उस्के भीतर हीनता बिोध पैदा ्करते रहने में ही अपना श्रे््त् पाता है । लेद्कन ए्क दलित ्के लिए यह श्रे््त् दासता और गुलामी ्का प्रती्क है । जिस्के लिए हर पल दलित ्को अपने ‘ स् ’ ्की ही नहीं समदूचे दलित समाज ्की पीड़ादाय्क षस्दतयों से गुजरना पड़ता है ।
हिनिी आलोच्क ्कद्ता ्को जिस रूप में भी ग्हण ्करें और साहित्यिक मापदंडों से उस्की वयाखया ्करें , लेद्कन दलित जीवन ्की त्ासद षस्दतयां उसे संसपशमा द्कये बिगैर ही दन्कल जाती हैं । इसी लिए वह आलोच्क अपनी बिौद्धिकता ्के छदम में दलित ्कद्ता पर ्कुछ ऎसे आरोपण ्करता है द्क दलित ्कद्ता में भट्काव ्की गुंजाईश बिनने ्की षस्दतयां उतपन्न होने ्की संभावनायें दिखाई देने लगती हैं । इसी लिए दलित ्कद्ता ्को डा . अम्बेड्कर ्के जीवन- दर्शन , अतीत ्की भयावहता और बिुद् ्के मानवीय दर्शन ्को हर पल सामने रखने ्की जरूरत पडती है , जिस्के बिगैर दलित ्कद्ता ्का सामादज्क पक् ्कमजोर पडने लगता है ।
समाज में रचा-बिसा ‘ विद्ेर ’ रूप बििल – बििल ्कर झांसा देता है । दलित ्कद् ्के सामने ऎसी भयावह षस्दतयां निर्मित ्करने ्के अने्क प्रमाण हर रोज सामने आते हैं , जिन्के बिीच अपना रासता ढूंढना आसान नहीं होता है । सभयता
, संस्ककृति ्के घिनौने सड़यंत् लुभावने श्िों से भरमाने ्का ्काम ्करते हैं । जहां नैदत्कता , अनैदत्कता और जीवन मदूलयों ्के बिीच फ्क्फ ्करना मुश्किल हो जाता है , फिर भी नाउ्मीिी नहीं है । ए्क दलित ्कद् ्की यही ्कोशिश होती है द्क इस भयावह त्ासदी से मनु्य स्तंत् हो्कर प्रेम और भाईचारे ्की ओर ्किम बिढाये , जिस्का अभाव हजारों साल से साहितय और समाज में दिखाई देता रहा है ।
दलित ्कद्ता निजता से जयािा सामादज्कता ्को महत्ता देती है । इसी लिए दलित ्कद्ता ्का समदूचा संघर्ष सामादज्कता ्के लिए है । दलित ्कद्ता ्का सामादज्क यथार्थ , जीवन संघर्ष और उस्की चेतना ्की आंच पर तप्कर पार्परर्क मानयताओं ्के विरुद् विद्रोह और न्कार ्के रूप में अभिवयकत होता है । यही उस्का ्केनद्रीय भाव
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