lekt
बिषल्क सामादज्क और राजनीदत्क परिवर्तन ्के ए्क प्रतिष््त एजेंट ्के रूप में ्कार्य ्करता है , ए्क कट्टरपंथी विचार जो आंबिेड्करवादी राजनीदत्क आंदोलनों से ्काफी हद त्क उधार लेता है ।
इस वर्ष जाति और दलित प्रश्न पर दो महत्पदूणमा फिलमें भी रिलीज हुईं । गुथली लाडू ( 2023 ) और ्कस्तूरी ( 2023 ) दलित बिच्चों ्की दो आ्करमा्क ्कहानियां हैं जो ए्क ऐसे समाज में जीवित रहते हैं जो उन्के जनम ्के ्कारण उनहें तुचछ समझता है और उन्के साथ भेदभाव ्करता है । डा . आंबिेड्कर ने आधुदन्क शिक्ा ्की परर्कलपना ्की थी द्क इसमें दलितों ्को गरीबिी और सामादज्क बिंधन ्की अदनषशचत ्काल्कोठरी से ऊपर उठाने और उनहें द््कास और राजनीदत्क परिवर्तन ्के लाभों ्का आनंद लेने ्की अनुमति देने ्की क्मता हो । दलितों ्के बिीच शिक्ा ्की आ्कांक्ा और इसे सामादज्क और आर्मा्क गतिशीलता ्के लिए ए्क महत्पदूणमा साधन ्के रूप में देखना आंबिेड्कर ्की संस्ाप्क शिक्ाओं से जुड़े विचार हैं । दोनों ्कहानियां जाति वय्स्ा ्की भेदभावपदूणमा प्र्ककृदत ्के इर्द-गिर्द घदूमती हैं , जिस्का निदान डा . आंबिेड्कर ने हिंिदू समाज में निहित गहरी सामादज्क बिुराइयों ्को समझने ्के लिए गहराई से द्कया था । जबि इन ्कहानियों ्का उपयोग बड़े पैमाने पर मीडिया में द्कया जाता है , तो वे न ्केवल वयाप्क िशमा्कों ्को दशदक्त ्करते हैं , बिषल्क हाशिए पर मौजदूि सामादज्क समदूहों ्को अनयाय और जाति-आधारित असमानता से लड़ने ्के लिए प्रेरित और प्रोतसादहत भी ्करते हैं , जिससे डा . आंबिेड्कर और उन्के विचार वर्तमान में गहराई से प्रासंदग्क हो जाते हैं ।
यदि ओटीटी पलेटफामषों ने ए्क ्काम सही द्कया है तो वह यह है द्क उनहोंने विषयों और विचारों ्का लो्कतंत्रीकरण द्कया है , और जो हम पारंपरर्क रूप से छोटे पिवे पर देखते हैं उसे चुनौती दी है । सेंसरशिप अभी भी ए्क प्रबिंधनीय चुनौती है , इसलिए निर्माता अकसर ऐसी सामग्ी ्का निर्माण ्करते हैं जो परेशान ्करने वाली और विद्रोही होती है । इससे उन ्कहानियों और आखयानों ्को अवसर मिला है जो दलितों सहित आम जनता ्के जीवन
से जुड़ी हैं । ्कोई भी ओटीटी पलेटफामषों पर डा . आंबिेड्कर ्की उपषस्दत और दलित जीवन ्के इर्द-गिर्द घदूमती ्कहानियों में अचान्क वृदद् देख स्कता है , ए्क ऐसा द््कास जिसे इस त्क्फ ्के साथ समझा जा स्कता है द्क ए्क शषकतशाली दलित-बिहुजन िशमा्क अबि उपल्ध है , जिससे इतिहास ्का पता लगाने वाली ्कहानियों ्को देखने ्की उ्मीि ्की जा स्कती है ।
तीन ओटीटी पलेटफॉर्म पर लंबिी वेबि सीरीज सट्रीम हो रही हैं , जो आंबिेड्कर ्के जीवन ्की घटनाओं ्को दर्शाती हैं । सबिसे पहले , ए्क महानाय्क-डॉ . आंबिेड्कर ( 2020 ), सबिसे लंबिे समय त्क चलने वाली टेली-सीरी् में से ए्क , ए्क जीवनी ्कहानी जो ्कुछ ्कलात्मक स्तंत्ता लेती है ( शासत्ीय दम््कों और धादममा्क ्कहानियों ्के लो्कलुभावन संस्करणों ्के समान )। श्रृंखला ने आलोच्कों ्को अपनी रचनात्मकता , उतपािन गुणवत्ता और ्कलात्मक प्रतिनिधित् से प्रभावित द्कया है । इसी तरह ए्क पलेटफार्म पर डॉ . आंबिेड्कर-ए्क महामनवाची गौरवगाथा ( 2020 ) है , जो ए्क प्रभावशाली मराठी वेबि श्रृंखला है । यहां , डा . आंबिेड्कर ्के बिचपन ्की घटनाओं ्को मेलोड्ामा ्के तत् ्के साथ दचदत्त द्कया गया है , ताद्क उन्की विलक्ण प्रतिभा ्के बिारे में दम््क बिनाए जा स्कें । ए्क तरह ए्क अनय पलेटफार्म पर रिमेंबिरिंग आंबिेड्कर नाम्क ए्क घंटे ्का संगीतमय टुकड़ा है , जो डा . आंबिेड्कर ्के वयषकतगत , सामादज्क और राजनीदत्क जीवन ्के वीरतापदूणमा पहलुओं ्को प्रदर्शित ्करता है ।
वेबि सीरी् मेड इन हेवन में नीरज घेवान ्की " द हार्ट स्किपड ए बिीट " दलित प्रदर्शनों ्की सदूची में सबिसे प्रभावशाली है । पलल्ी मान्के ( रादध्का आपटे ) आइवी लीग विश्द्द्ालय में ्कार्यरत ए्क गौरवाषन्त दलित प्रोफेसर हैं , जिनहें अपनी पदू्मा " अछूत " भारतीय पहचान ्को उजागर ्करने में ्कोई हिचद्कचाहट नहीं है । हालांद्क उस्की शादी ए्क संवेदनशील और प्रगतिशील भारतीय-अमेरर्की ््कील से हुई है , लेद्कन जबि वह अपने विवाह समारोह में ए्क बिौद् अनुष्ान जोड़ना चाहती है तो उसे सामादज्क बिोझ और चिंताओं ्का सामना ्करना
पड़ता है । ्कायमाकम ्को खदूबिसदूरती से प्रदर्शित द्कया गया है , जिसमें ्केंद्र में डा . आंबिेड्कर ्की तस्ीर रखी गई है , जो उन दसद्ांतों ्का प्रतिनिधित् ्करती है जिनहें वह भारत ्के सामादज्क जीवन में स्ादपत ्करना चाहते थे । इसी तरह , अनय वेबि ओरिजिनल जैसे सीरियस मेन , महारानी , पाताल लो्क , दहाड़ , आश्रम , ्क्ाल और परीक्ा जैसी फिलमें दलित पात्ों पर ए्क नया दृष्टिकोण प्रसतुत ्करते हैं , उनहें अपनी सामादज्क पहचान ्के प्रति जागरू्क दिखाते हैं , इसे सार्वजदन्क रूप से मुखर ्करते हैं , और सामादज्क नयाय और समान स्मान ्की मांग ्करते हैं ।
इन ्काल्पनिक आखयानों ्को वास्तविक सामादज्क आवासों से ली गई प्रेरणादाय्क वास्तविक जीवन ्की फिलमों द्ारा पदूर्क द्कया जाता है । उदाहरण ्के लिए , चार-भाग वाली डॉक्यूमेंट्री डॉटर्स ऑफ डेषसटनी ( 2017 ) है , जो दलित स्कूली छात्ों ्की प्रभावशाली ्कहानी
34 tuojh 2024