Jan 2024_DA | Page 33

शषकतशाली दलित पैंथर्स आंदोलन ्का जनम हुआ , जिसने दलित चेतना ्को ए्क नई ऊर्जा से भर दिया । लेद्कन विडंबिना यह है द्क बिंबिई ्के सिनेमा ने मुखयधारा ्के राजनीदत्क विमर्श में दलित युवाओं ्के इस प्रभावशाली आगमन पर ्कोई धयान नहीं दिया । इसी तरह , जबि उसी दश्क में बिहुजन समाज पाटवी ने उत्तर प्रदेश में ए्क मजबिदूत राजनीदत्क दावेदारी पेश ्की , तो सिनेमा ्की राजनीदत्क ्क्ाएँ सामादज्क अभिजात वर्ग ्की चिंताओं और हितों ्के साथ जारी रहीं ।
1990 ्के दश्क ्के बिाद ए्क छोटा बििलाव देखा जा स्कता था जबि वीपी सिंह ्की संयुकत
मोर्चा सर्कार ्के साथ सामादज्क नयाय ्की राजनीति ने रा्ट्रीय धयान आ्कदरमात द्कया । 1994 में सामादज्क नयाय मंत्ालय ्के सहयोग से जब्बार पटेल द्ारा दनिवेदशत डॉ . बिाबिासाहबि आंबिेड्कर नाम्क ए्क बिायोदप्क ्का निर्माण द्कया गया था और इसे सिनेमाघरों में सीमित रिलीज द्कया गया था । लगभग उसी समय , डा . आंबिेड्कर पर ्कुछ क्ेत्ीय जीवनियां भी बिनाई गईं , जैसे द्क मराठी में भीम गर्जना ( 1990 ) और तेलुगु में डॉ . आंबिेड्कर ( 1992 ), जो मुखयधारा ्की सिनेमाई संस्ककृति में आंबिेड्कर ्की प्रती्कात्मकता ्के लिए ए्क महत्पदूणमा प्रविष्ट प्रदान ्करती हैं ।
1994 में दसयु फूलन देवी ्के वास्तविक जीवन ्के संघर्ष और जीत पर शेखर ्कपदूर ्की बिैंडिट क्ीन ने दलित-बिहुजन आइ्कन ्के जीवन ्के साथ ए्क रचनात्मक जुड़ा् प्रदान द्कया । हालांद्क 1990 ्के दश्क ्की यह दफ़लमें रा्ट्रीय सिनेमाई संस्ककृति में विचलन ्की तरह लगती हैं , दलित प्रश्न ्को मुखयधारा ्की दफ़लमों में शायद ही ्कोई प्रतिध्दन मिलती है ।
पिछले दश्क में ही , विशेर्कर दलित-बिहुजन पृ््भदूदम ्के फिलम निर्माताओं , त्कनीशियनों और ्कला्कारों ्के आगमन ्के साथ डा . आंबिेड्कर ्की ऑन-सकीन छवि में नया अर्थ और सार जुड़ गया है । उदाहरण ्के लिए , नागराज मंजुले ने ग्ामीण भारत में जाति संबिंधों ्की अपरिवर्तनीय प्र्ककृदत ्को प्रदर्शित ्करने ्के लिए फैंड्ी ( 2013 ) में आंबिेड्कर , फुले और शाहदू महाराज ्के चित्ों ्को ए्क वयंगयात्मक ्कला्ककृदत ्के रूप में इसतेमाल द्कया । अपनी नवीनतम हिंदी फिलम झुंड ( 2021 , जिसमें अमिताभ बिच्चन हैं ) में मंजुले ने आंबिेड्कर जयंती ्के सामदूदह्क उतस् ्का प्रदर्शन द्कया है , जहां लोग उस दिन सहजता और खुशी ्के साथ नृतय ्करते हैं । इस तरह ्के प्रसतुती्करण न ्केवल जाति-विरोधी प्रती्क ्के रूप में , बिषल्क नई पीढ़ी ्के लिए प्रेरणा और उतस् ्के रूप्क ्के रूप में भी आंबिेड्कर ्की छवि ्को ऊंचा ्करते हैं ।
नियमित प्रती्क्ाद से परे , आंबिेड्कर ए्क
प्रेर्क शषकत ्के रूप में उभरे हैं जो पात्ों और ्क्ा मंथन ्को प्रभावित ्करते हैं , ए्क ऐसी शैली ्का निर्माण ्करते हैं जिसे अस्ायी रूप से " दलित सिनेमा " ्के रूप में पहचाना जा स्कता है । अमित मसुर्कर ्की न्यूटन ( 2017 ) में हम डा . आंबिेड्कर ्की तस्ीर ्को ्केवल ए्क छोटे से से्कंड ्के लिए सकीन पर देखते हैं , लेद्कन यह संवैधादन्क ्कतमावय और ्कानदून ्के शासन ्के प्रति नाय्क ्की प्रतिबद्धता ्का ए्क महत्पदूणमा सं्केत है । तमिल फिलम दनिवेश्क पा . रंजीत अपनी फिलमों में अनय दलित प्रती्कों ्के साथ- साथ आंबिेड्कर ्के नाम , तस्ीर , मदूदतमा , नारे और नीले रंग ्को प्रमुखता देते हैं । वह अपने आखयानों में अनय दलित प्रती्कों ्के साथ-साथ आंबिेड्कर ्के नाम , तस्ीर , मदूदतमा , नारे और नीले रंग ्को भी सामने रखते हैं । उदाहरण ्के लिए , ्कबिाली ( 2016 ) में , नाय्क ( रजनी्कांत द्ारा अभिनीत ) आंबिेड्कर ्की पोशा्क ्की समझ ्की प्रशंसा ्करता है और सुझाव देता है द्क अचछे ्कपड़े इंसान होने ्का प्रती्क हैं । रंजीत ्की फिलमों में आंबिेड्कर ्की तस्ीर ्का उपयोग पृ््भदूदम ्को सजाने ्के लिए ए्क दनष्कय सहारा ्के रूप में नहीं द्कया जाता है , बिषल्क प्रती्क ्के सामादज्क और राजनीदत्क महत् पर प्र्काश डाला जाता है , और अकसर हाशिए पर रहने वाले लोगों ्की उन्के सतत अनयाय ्के लिए दमन्कारी अभिजात वर्ग से लड़ने ्की तैयारी ्के बिारे में होता है ।
टीजे ज्ञानवेल ्की तमिल फिलम जय भीम ( 2021 ) ए्क खानाबििोश जनजाति ्के ए्क वयषकत ्की ्कहानी बिताती है , जिसे पुलिस द्ारा प्रतादड़त और प्रतादड़त द्कया जाता है और अदालत में लंबिी लड़ाई ्के बिाद ही उसे नयाय मिलता है । फिलम गरीबिी , पुलिस कूरता और भेदभाव ्की समसयाओं ्की जांच ्करने ्के लिए आंबिेड्करवादी परिप्रेक्य ्का उपयोग ्करती है , जो द्क सबिसे खराबि सामादज्क समदूह रोजमर्रा ्के अषसतत् ्के लिए अनुभव ्करते हैं । यह सुझाव देता है द्क यह संविधान ही है जो ्कमजोर समदूहों ्को नयाय प्रदान ्कर स्कता है । इसी तरह , मारी सेल्राज ्की हालिया फिलम मामनन ( 2023 ) में दलित नाय्क विनम्र या शषकतहीन नहीं है ,
tuojh 2024 33