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स्कीन पर डा . आंबेडकर का उद्भव

हरीश एस . वानखेड़े

भले ही डा . भीमराvव आंबिेड्कर रा्ट्र ्के संस्ाप्क वयषकतयों में से ए्क हैं , लेद्कन पिछले ्कुछ ्रषों में भारतीय सिनेमा द्ारा उनहें वय्षस्त रूप से उपेदक्त द्कया गया है । इसी तरह , दलित समुदायों से जुड़े राजनीदत्क और सामादज्क आखयान उन्की अनुपषस्दत से सप्ट रहे हैं । यहां त्क द्क जबि हॉलीवुड दनिवेश्क रिचर्ड एटनबिरो ने अपनी महान ्ककृदत गांधी बिना , तो उनहोंने आंबिेड्कर ्को फिलम से बिाहर ्कर दिया । सबिसे लंबिे समय त्क , उपनिवेशवाद-विरोधी संघर्ष , रा्ट्र-निर्माण या रा्ट्रवाद पर ऐतिहादस्क फिलमों ने गांधी , नेहरू , भगत सिंह और सुभाष चंद्र बिोस जैसी प्रतिष््त हषसतयों ्को समृद् श्रद्ांजलि अर्पित ्की , लेद्कन डा . आंबिेड्कर ्के वीरतापदूणमा जाति- विरोधी संघरषों ्को बिाहर रखा I

1990 ्के दश्क ्की शुरुआत त्क , डा . आंबिेड्कर ्का नाम या तस्ीर सकीन पर मुश्किल से ही देखी जाती थी । हालांद्क ्कला-घर या समानांतर सिनेमा आंदोलन ्कभी-्कभी दलित अतयाचार ( निशांत , 1975 ), जाति शोषण ( पार , 1981 ) और हिंसा ( दामुल , 1985 ) ्के मुद्ों से जुड़ा था , लेद्कन इसने भी डा . आंबिेड्कर और रा्ट्रीय जीवन में उन्की भागीदारी ्की खुले तौर पर उपेक्ा ्की । आशचयमाजन्क रूप से , 1980 ्के दश्क ्के मधय में ही बिॉम्बे में
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