Jan 2024_DA | Page 22

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शोध थाI बिाबिा साहबि ने 1923 में वित्त आयोग ्की बिात ्करते हुए ्कहा द्क पांच ्रषों ्के अंतर पर वित्त आयोग ्की रिपोर्ट आनी चाहिएI भारत मे रिजर्व बिैं्क ्की स्ापना ्का खा्का तैयार ्करने और प्रसतुत ्करने ्का ्काम बिाबिा साहबि आंबिेड्कर ने द्कया I इसे रर््मा बिैं्क आफ इंडिया ने माना और अपनी स्ापना ्के 81 साल होने पर बिाबिा साहबि ्के नाम पर ्कुछ सिक्के भी जारी द्कएI डा . आंबिेड्कर ने बिड़े उद्ोग लगाने ्की ््कालत ्की , परंतु ्ककृदर ्को समाज ्की रीढ़ ्की हड्ी भी मानाI औद्योगिक कांदत पर ज़ोर देने ्के साथ- साथ उन्का यह भी ्कहना था ्की ्ककृदर ्को नज़र अंदाज़ नहीं द्कया जाना चाहिए कयोंद्क ्ककृदर से ही देश ्की बिढ़ती आबिादी ्को भोजन और उद्ोगों ्को ्कच्चा माल मिलता हैंI
जबि देश ्का तेज़ी से द््कास होगा तबि ्ककृदर वह नींव होगी , जिस पर आधुदन्क भारत ्की इमारत खड़ी ्की जाएगी , इस लक्य ्की प्राषपत ्के लिए आंबिेड्कर ने ्ककृदर क्ेत् ्के पुनर्गठन ्के लिए कांदत्कारी ्किम उठाने ्की ््कालत ्कीI आंबिेड्कर ्ककृदर योगय भदूदम ्के रा्ट्रीय्करण ्के प्रमुख पैरो्कर थेI डा . आंबिेड्कर राजय ्को यह दायित् सौंपते है द्क वह लोगों ्के आर्मा्क जीवन ्को इस प्र्कार योजनाबद्ध ्करे द्क उससे उत्पादकता ्का स्णोच्च दबिंदु हासिल हो जाए और निजी उद्ोग ्के लिए ए्क भी मांग बिंद न हो और संपदा ्के समान वितरण ्के लिए भी उपबिंध द्कए जाएंI नियोजित ढंग से ्ककृदर ्के क्ेत् में राज्कीय स्ादमत् प्रसताद्त है , जहां सामदूदह्क तरीक़े से खेती-बिाड़ी ्की जाए तथा उद्ोगों ्के क्ेत् में राज्कीय समाजवाद रूपांतरित रूप भी प्रसताद्त हैI इसमें ्ककृदर एवं उद्ोग ्के लिए आवश्यक पदूंजी सुलभ ्कराने ्की वय्स्ा राजय ्के ्कंधों पर सप्ट डाली गई हैI
डा . आंबिेड्कर द्ारा द्कए गए शोध आज ्के समय ्के लिए भी उपयुकत हैं , वर्तमान समय में भारतीय अर्थवय्स्ा ्की सभी सामादज्क एवं आर्मा्क समसयाओं जैसे गरीबिी , बिेरोजगारी , महंगाई , पिछड़ापन , असमानता ( वयषकतगत एवं क्ेत्ीय ), विदेशी मुद्राओं ्के मु्कावले भारतीय
मुद्रा ( रुपए ) ्का अवमदूलयन आदि-आदि से सम्बंधित गंभीर विमर्श डा . आंबिेड्कर ्के आर्मा्क शोधों में देखा जा स्कता हैI डा . आंबिेड्कर भारतीय अर्थवय्स्ा ्को ए्क नयायसंगत अर्थवय्स्ा ्के रूप में स्ादपत ्करना चाहते थे , जिसमें समानता हो , गरीबिी , बिेरोजगारी और महंगाई ख़तम हो , लोगों ्का आर्मा्क शोषण न हो तथा सामादज्क नयाय हो , सामानयत : ऐसा लग स्कता है द्क डा . आंबिेड्कर ने यदि ्केवल अर्थशासत् ्को ही अपना ्करियर बिनाया होता तो संभवत : वे अपने समय ्के दुनिया ्के दस प्रदसद् अर्थशाषसत्यों में से ए्क होतेI लेद्कन डा .
आंबिेड्कर ्का योगदान द्कसी भी अर्थशासत्ी से ्कहीं जयािा है , डा . आंबिेड्कर ने अर्थशासत् ्के दसद्ांतों और शोधों ्का भारतीय समाज ्के संदर्भ में वया्हारर्क उपयोग द्कयाI शोध ्का जबि त्क अनुप्रयोग ( एप्लीकेशन ) न हो तबि त्क उस्की सामादज्क उपयोगिता संदिगध है , भारतीय समाज वय्स्ा ्को आमदूल बििल्कर डा . आंबिेड्कर ने अर्थशासत् ्के उद्ेशयों ्को वास्तविक अर्थ में सा्कार द्कया , उन्का यह अविसमरणीय योगदान उन्की सशकत सामादज्क-आर्मा्क संवेदना और सामादज्क-आर्मा्क गहन वैचारर्की ्का परिणाम हैंI �
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