Jan 2024_DA | Page 21

उभारने ्का प्रयास नहीं द्कया गया I
डा . आंबिेड्कर ्की पहचान यदि ए्क अर्थशासत्ी ्के रूप में नही बिन पाई तो इस्का ्कारण यह है द्क 1923 में भारत लौटने ्के बिाद वे देश ्की सामादज्क एवं राजनीदत्क वय्स्ा ्को बििलने ्के लिए समर्पित हो गए और अर्थशासत् विषय तथा आर्मा्क मुद्ों पर अपना शोध जारी नही रख पाए I वह भारत आने ्के बिाद भारत में वयापत सामादज्क ्कुरुतियों ्की समाषपत ्के ्कार्य में लग गएI सामादज्क मुद्ों पर ्काम ्करते हुए भी उन्के ्कार्य ्को देखा जाए तो यह ्कहीं ना ्कहीं आर्मा्क पक् ्के साथ भी जुड़े हैं , जबि वह महिलाओं ्को उद्मी बिनाने ्की बिात ्करते या दलितों ्को भी उद्मी बिनाने में सर्कार ्की सहायता ्की बिात ्करते हैंI उन्का मानना था द्क “ आर्मा्क उत्ान ्के दबिना ्कोई भी सामादज्क एवं राजनीदत्क भागीदारी संभव नही होगीI डा . आंबिेड्कर ने भारतीय मुद्रा ( रुपए ) ्की समसया , महंगाई तथा विनिमय दर , भारत ्का रा्ट्रीय लाभांश , ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त ्का द््कास , प्राचीन भारतीय
वाणिजय , ईसट इंडिया कम्पनी ्का प्रशासन एवं वित्त , भदूदमहीन मजिदूरों ्की समसया तथा भारतीय ्ककृदर ्की समसया जैसे महत्पदूणमा विषयों पर शोध ही नहीं द्कया , बिषल्क इन मुद्ों से सम्बंधित समसयाओं ्के तद्क्फ्क एवं वया्हारर्क समाधान भी दिएI
20वीं सदी ्के शुरुआत में विश् ्के लगभग सभी प्रतिष््त अर्थशाषसत्यों ने डॉ आंबिेड्कर ्के अर्थशासत् विषय ्की समझ तथा उन्के योगदान ्को सराहा और उन्के शोध पर महत्पदूणमा टिपपणी भी ्कीI अभी हाल ्के दिनो मे नोबिेल पुरस्कार से स्मादनत अर्थशासत्ी आमतयमा सेन ने ्कहा “ डा . आंबिेड्कर अर्थशासत् ्के विषय मे मेरे पिता हैं “ I 1917 में पीएचडीI शोध पदूरा ्कर पाए , उन्की एमएI ्की थीसिस ्का विषय ‘ प्राचीन भारतीय वाणिजय ’ था , जो द्क प्राचीन भारतीय वाणिजय ्के प्रति उन्की समझ ्को दर्शाता है , इस थीसिस में उनहोंने प्राचीन भारतीय वाणिजय ्की समसयाओं ्को रखा तथा उन्के संभावित ्कारगर समाधान भी बिताएI बिाबिा साहबि आंबिेड्कर ्की आर्मा्क समसयाओं
्के प्रति वय्हारर्क सोच थीI वह मानते थे द्क भारत ्के पिछड़ेपन ्का मुखय ्कारण भदूदम- वय्स्ा ्के बििलाव में देरी है , इस्का समाधान लो्कतांत्रिक समाजवाद है जिससे आर्मा्क ्कायमाक्मता एवं उत्पादकता में वृदद् होगी तथा ग्ामीण अर्थवय्स्ा ्का ्कायापलट संभव होगा , आर्मा्क समसयाओं ्के प्रति उन्के दृष्टिकोण ्की स्ामादध्क महत्पदूणमा विशेषता यह थी द्क वह अहसतक्ेप ( LaIssez-faIre ) तथा वैज्ञादन्क समाजवाद ( ScIentIfIc SocIalIsm ) ्की निंदा ्करते थेI
डा . आंबिेड्कर ने आर्मा्क एवं सामादज्क असमानता पैदा ्करने वाले पदूंजीवादी वय्स्ा ्को ख़तम ्करने ्की पुरजोर ््कालत ्की , 1923 में लनिन स्कूल ऑफ़ इ्कोनॉमिकस से डीएससीI ( अर्थशासत् ) ्की डिग्ी प्रापत ्की , अपने डीएससीI ्की थीसिस “ The Problem of the Rupee – Its orIgIn and Its solutIon “ I में उनहोंने रुपए ्के अवमदूलयन ्की समसया पर शोध द्कया , जोद्क उस समय ्के शोधों में सबिसे वय्हारर्क तथा महत्पदूणमा
tuojh 2024 21