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डा . आंबेडकर के सामाजिक- आर्थिक विचारों की प्रासंगिकता

प्रवेश कुमार

जबि भी भारत ्के सामादज्क एवं आर्मा्क मुद्ों ्की बिात हो और डा . भीमराव रामजी आंबिेड्कर ्का दजक न हो , इस्का अर्थ है द्क हम विषय ्के साथ नयाय नही ्कर रहे हैं I दबिना बिाबिासाहबि ्को पढ़े हम भारत ्के सामादज्क एवं आर्मा्क मुद्ों ्को नही समझ स्कते I उन्का

जनम जिस जाति में हुआ उसे हिन्दू वर्ण वय्स्ा में सबिसे नीचे माना जाता थाI इसलिए समानता ्के लिए उन्को जनम से ही संघर्ष ्करना पड़ाI उनहोंने पदूरी जिनिगी सामादज्क संघर्ष द्कया एवं
अपने समाज ्के स्ादभमान ्के
लिए लड़ते रहेI
उन्के सामादज्क विचारो में हमें दलित वंचित समाज ्के लिए सामादज्क नयाय ्को पाने ्की ्कोशिश झल्कती हैI वे ए्क ऐसा आदर्श समाज बिनाना चाहते थे जो समानता , स्तंत्ता और बिंधुता ्के विचारों पर आधारित होI उन्के अनुसार जाति वय्स्ा आदर्श समाज ्के निर्माण में घात्क हैI
अर्थशासत् उन्का पसंदीदा विषय थाI वह विद्ा्वी जीवन से ही अर्थशासत् विषय से प्रभावित थेI उनहोंने अपनी स्ात्क से ले्कर पीएचडी त्क ्की पढाई अर्थशासत् विषय में ही ्की है और वह भी दुनिया ्के श्रे््तम विश्द्द्ालयों से हुईI अर्थशासत् ्के विभिन्न पहलुओ पर
उन्के शोध उललेखनीय है , लेद्कन डा . आंबिेड्कर ्को ्केवल दलितों एवं
पिछडों ्के मसीहा तथा भारतीय संविधान निर्माता
्के रूप में प्रसतुत
द्कया जाता है , उन्के अर्थशासत्ीय पक् ्को ्कभी
20 tuojh 2024