लड़ाई चली । मैं आभार वयकत ्करूंगा भारत ्की नयायपादल्का ्का , जिसने नयाय ्की लाज रख ली । नयाय ्के पर्याय प्रभु राम ्का मंदिर भी नयायबद्ध तरी्के से ही बिना ।
मुझे देश ्के ्कोने-्कोने में अलग-अलग भाषाओं में रामायण सुनने ्का अवसर मिला है , लेद्कन विशेर्कर पिछले 11 दिनों में रामायण अलग-अलग भाषा में , अलग-अलग राजयों से मुझे विशेष रूप से सुनने ्का सौभागय मिला । राम ्को परिभाषित ्करते हुये ऋषियों ने ्कहा है- रमनते यषसमन् इति रामः ॥ अर्थात , जिसमें
रम जाया जाए , वही राम है । राम लो्क ्की समृदतयों में , पर्व से ले्कर पर्पराओं में , स्मात् समाये हुए हैं । हर युग में लोगों ने राम ्को जिया है । हर युग में लोगों ने अपने-अपने श्िों में , अपनी-अपनी तरह से राम ्को अभिवयकत द्कया है । राम्क्ा असीम है , रामायण भी अनंत हैं ।
राम ्के आदर्श , राम ्के मदूलय , राम ्की शिक्ाएं , सबि जगह ए्क समान हैं ।
आज इस ऐतिहादस्क समय में देश उन वयषकतत्ों ्को भी याद ्कर रहा है , जिन्के ्कायषों और समर्पण ्की वजह से आज हम ये शुभ दिन देख रहे हैं । राम ्के इस ्काम में द्कतने ही लोगों ने तयाग और तपसया ्की परा्काष्ा ्कर्के दिखाई है । उन अनगिनत रामभकतों ्के , उन अनगिनत ्कारसे््कों ्के और उन अनगिनत संत महातमाओं ्के हम सबि ऋणी हैं । आज ्का अवसर उतस् ्का क्ण तो है ही , लेद्कन इस्के साथ ही ये क्ण भारतीय समाज ्की परिपक्ता ्के बिोध ्का क्ण भी है । हमारे लिए यह अवसर सिर्फ विजय ्का नहीं , विनय ्का भी है । रामलला ्के इस मंदिर ्का निर्माण , भारतीय समाज ्के शांति , धैर्य , आपसी सद्ा् और समन्य ्का भी प्रती्क है । यह निर्माण द्कसी आग ्को नहीं , बिषल्क ऊर्जा ्को जनम दे रहा है । राम मंदिर समाज ्के हर वर्ग ्को ए्क उज्जवल भद््य ्के पथ पर बिढ़ने ्की प्रेरणा ले्कर आया है । राम आग नहीं है , राम ऊर्जा हैं । राम विवाद नहीं , राम समाधान हैं । राम सिर्फ हमारे नहीं हैं , राम तो सबि्के हैं । राम वर्तमान ही नहीं , राम अनंत्काल हैं । आज जिस तरह राममंदिर प्राण प्रतिष्ा ्के इस आयोजन से पदूरा विश् जुड़ा हुआ है , उसमें राम ्की सर्ववयाप्कता ्के दर्शन हो रहे हैं । जैसा उतस् भारत में है , वैसा ही अने्कों देशों में है । आज अयोधया ्का ये उतस् रामायण ्की उन वैश्विक पर्पराओं ्का भी उतस् बिना है । रामलला ्की यह प्रतिष्ा ‘ वसुधैव ्कुटुंबि्कम् ’ ्के विचार ्की भी प्रतिष्ा है ।
आज अयोधया में , ्केवल श्रीराम ्के द्ग्ह रूप ्की प्राण प्रतिष्ा नहीं हुई है । यह श्रीराम ्के रूप में साक्ात भारतीय संस्ककृति ्के प्रति अटूट विश्ास ्की भी प्राण प्रतिष्ा है । यह साक्ात मानवीय मदूलयों और स्णोच्च आिशषों ्की भी प्राण प्रतिष्ा है । इन मदूलयों ्की , इन आिशषों ्की आवश्यकता आज सम्पूर्ण विश् ्को है । स्वे भवनतु सुखिन : यह सं्कलप हम सदियों से दोहराते आए हैं । आज उसी सं्कलप ्को राममंदिर ्के रूप में साक्ात् आ्कार मिला है । यह मंदिर , मात् ए्क देव मंदिर नहीं है । यह भारत ्की दृष्ट
्का , भारत ्के दर्शन ्का , भारत ्के दिगिशमान ्का मंदिर है । यह राम ्के रूप में रा्ट्र चेतना ्का मंदिर है । राम भारत ्की आस्ा हैं , राम भारत ्का आधार हैं । राम भारत ्का विचार हैं , राम भारत ्का विधान हैं । राम भारत ्की चेतना हैं , राम भारत ्का चिंतन हैं । राम भारत ्की प्रतिष्ा हैं , राम भारत ्का प्रताप हैं । राम प्रवाह हैं , राम प्रभाव हैं । राम नेति भी हैं । राम नीति भी हैं । राम नितयता भी हैं । राम निरंतरता भी हैं । राम विभु हैं , विशद हैं । राम वयाप्क हैं , विश् हैं , विश्ातमा हैं । और इसलिए , जबि राम ्की प्रतिष्ा होती है , तो उस्का प्रभाव ्रषों या शताब्ियों त्क ही नहीं होता । उस्का प्रभाव हजारों ्रषों ्के लिए होता है । महर्षि वाल्मीकि ने ्कहा है- राजयम् दश सहस्ादण प्रापय वर्षाणि राघवः । अर्थात , राम दस हजार ्रषों ्के लिए राजय पर प्रतिष््त हुए । यानी हजारों ्रषों ्के लिए रामराजय स्ादपत हुआ । जबि त्ेता में राम आए थे , तबि हजारों ्रषों ्के लिए रामराजय ्की स्ापना हुई थी । हजारों ्रषों त्क राम विश् पथप्रदर्शन ्करते रहे थे ।
आज अयोधया भदूदम हम सभी से , प्रत्येक रामभकत से , प्रत्येक भारतीय से ्कुछ सवाल ्कर रही है । श्रीराम ्का भवय मंदिर तो बिन गया , अबि आगे कया ? सदियों ्का इंतजार तो खतम हो गया , अबि आगे कया ? आज ्के इस अवसर पर जो दैव , जो दैवीय आतमाएं हमें आशीर्वाद देने ्के लिए उपषस्त हुई हैं , हमें देख रही हैं , उनहें कया हम ऐसे ही विदा ्करेंगे ? नहीं , ्किापि नहीं । आज मैं पदूरे पद्त् मन से महसदूस ्कर रहा हदूं द्क ्कालचक बििल रहा है । यह सुखद संयोग है द्क हमारी पीढ़ी ्को ए्क ्कालजयी पथ ्के शिल्पकार ्के रूप में चुना गया है । ह्ार वर्ष बिाद ्की पीढ़ी , रा्ट्र निर्माण ्के हमारे आज ्के ्कायषों ्को याद ्करेगी । इसलिए मैं ्कहता हदूं- यही समय है , सही समय है । हमें आज से , इस पद्त् समय से , अगले ए्क हजार साल ्के भारत ्की नींव रखनी है । मंदिर निर्माण से आगे बिढ़्कर अबि हम सभी देशवासी , यहीं इस पल से समर्थ-सक्म , भवय-दिवय भारत ्के निर्माण ्की सौगंध लेते हैं । राम ्के विचार , ‘ मानस ्के साथ ही जनमानस ’ में भी हों , यही रा्ट्र निर्माण
tuojh 2024 15