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संसद एवं राज्य विधान सभाओं में अनुसूचित जाति एवं जनजाकत्यों के लिए सथान आरकषित किए गए हैं ।
• अनुचछेद 335 के द्ारा अनुसूचित जनजाकत्यों के लिए शासकरी्य सेवा में 7.5 प्कतशत सथान आरकषित किए गए । इसके साथ- साथ आ्यु सरीमा में छूट , अर्हता मानदंड में छूट , ्पदोन्नति में छूट में तथा अन्य तकनरीकि सतरों
्पर छूट के प्ावधान किए गए हैं ।
• अनुचछेद 338 में अनुसूचित जाकत्यों एवं अनुसूचित जनजाकत्यों के कल्याण हेतु राष्ट्रपति द्ारा आ्युकत करी कन्युमकत का प्ावधान है । जिसका दाक्यतव संविधान द्ारा अनुसूचित जाकत्यों एवं जनजाकत्यों को प्दत्त सुरषिाओं का मूल्यांकन करना , जनजातरी्य लोगों और राज्य सरकारों से सं्पक्फ बनाए रखना , उनके का्य्भक्रमों
करी जांच करना तथा ्योजनाओं के लिए मार्गदर्शन देना आदि है । ्यह आ्युकत प्कतवर्ष राष्ट्रपति को अ्पना प्कतवेदन ररी भेजता है जिसमें अनुसूचित षिेत्ों के प्शासन तथा अनुसूचित जनजाकत्यों के कल्याण के संबंध में उ्पिमबध्यों एवं ककम्यों को वर्णित कक्या जाता है ।
• अनुचछेद 339 संघ सरकार को अधिसूचित षिेत्ों में निवास करने वाले आदिवाकस्यों के प्शासन का अधिकार प्दान करता है ।
• अनुचछेद 340 जनजाकत्यों को सरकाररी कशषिर संसथानों में नामांकन तथा अध्य्यन के लिए आरषिर का उ्पबंध करता है ।
• अनुचछेद 342 के माध्यम से राष्ट्रपति जनजाकत्यों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्दान करता है ।
्पृथक प्शासनिक व्यवसथा : जनजातरी्य समुदा्य शेष समाज से कटा हुआ तथा सकद्यों से क्पछड़ा है । साथ हरी इस समुदा्य करी अ्पनरी ्पृथक संस्कृति , ्परं्परा एवं भिन्न ्पहचान रहरी है । इसरी कारण भारतरी्य संविधान में जनजाकत्यों के लिए शेष समाज से भिन्न प्शासनिक व्यवसथा का प्ावधान संविधान करी ्पाँचवरी एवं छठरी अनुसूिरी में कक्या ग्या है ।
अनुसूचित षिेत् : संविधान के अनुचछेद 244 तथा 244 ( 1 ) में अनुसूचित षिेत्ों तथा जनजातरी्य षिेत्ों के प्शासन का प्ावधान है । संविधान करी ्पाँचवरी अनुसूिरी के अनुसार भारत का राष्ट्रपति किसरी ररी राज्य का कोई षिेत् “ अनुसूचित षिेत् घोषित कर सकता है । 1977 से अब तक दो राष्ट््पकत्यों ने अनुसूचित षिेत् घोषित किए हैं । ्ये षिेत् निम्न नौ राज्यों में हैं- आंध् प्देश , झारखंड , गुजरात , हिमांचल प्देश , मध्य प्देश , महाराष्ट् , उड़रीसा , राजसथान और छत्तरीसगढ़ । इन अनुसूचित षिेत्ों के गठन के ्परीछे मुख्यतः दो उद्ेश्य रहे हैं ्पहला लघु प्रक्रिया तथा बिना बाधा के आदिवाकस्यों करी सहा्यता करना तथा दूसरा , अनुसूचित षिेत्ों को विकास के ्पथ ्पर लाना एवं जनजाकत्यों के हितों करी रषिा करना ।
गौरतलब है कि घोषित अनुसूचित षिेत्ों वाले राज्य के राज्य्पाल को विशेष और व्या्पक
अधिकार प्ापत होते हैं । राज्य्पाल हरी ्यह त्य करता है कि संसद ्या विधान मणडिों द्ारा ्पारित कानून इन षिेत्ों में लागू होंगे ्या नहीं । राज्य्पाल इन षिेत्ों में शांति बनाए रखने एवं प्शासन के रिरी-भाँति संचालन के लिए कन्यम ररी बना सकते हैं । भूमि हसतांतरण को रोकना , भूमि आवंटन को कन्यंकत्त करना , साहूकारों के गकतकवकध्यों को रोकना आदि ऐसे कवि्य हैं , जिन्पर राज्य्पाल का्य्भवाहरी कर सकते हैं । ्पांचवरी अनुसूिरी के खणड 4 में अनुसूचित षिेत् वाले प्त्येक राज्य में आदिवासरी सलाहकार समिति के गठन का प्ावधान है । राष्ट्रपति के कनदमेश ्पर अन्य राज्यों में ररी , जहाँ अनुसूचित षिेत् नहीं हैं , आदिवासरी सलाहकार समिति के गठन का प्ावधान है । तमिलनाडु तथा पश्चिम बंगाल ऐसे हरी दो राज्य हैं , जहाँ अनुसूचित षिेत् नहीं होने के बावजूद वहाँ आदिवासरी सलाहकार सकमकत्याँ गठित हैं । आदिवासरी सलाहकार समिति में अधिक से अधिक 20 सदस्य हो सकते हैं । इस समिति का ्यह दाक्यतव है कि वह आदिवासरी कल्याण तथा प्गति के संबंध में राज्य्पाल को सलाह दे । ्पाँचवरी अनुसूचि के खणड तरीन में ्यह प्ावधान है कि राज्य्पाल आदिवासरी सलाहकार समिति करी गकतकवकध्यों से संबंधित प्कतवेदन राष्ट्रपति के ्पास भेजता है ।
आदिवासरी षिेत् : आदिवासरी षिेत् एक अर्थ में तो अनुसूचित षिेत् है , किंतु संवैधानिक भाषा में आदिवासरी षिेत् वे हैं जो संविधान करी छठीं अनुसूिरी में घोषित किए गए हैं । ्ये षिेत् हैं- असम , मेघाि्य , मिजोरम तथा त्रिपुरा । इन राज्यों में आदिवासरी षिेत्ों के प्शासन हेतु स्वायत्त जिला एवं षिेत्री्य ्परिषदों का गठन कक्या जाता है । प्त्येक स्वायत्त जिले के प्शासन के लिए एक-एक जिला ्परिषद करी स्थापना करी जातरी है । जिला ्परिषद के सदस्यों करी संख्या अधिक से अधिक 30 होतरी है , जिनमें से चार को राज्य्पाल मनोनरीत करता है । शेष सदस्यों का ि्यन व्यसक मताधिकार के आधार ्पर कक्या जाता है । राज्य्पाल चाहे तो वह सररी चुनाव षिेत्ों को आदिवाकस्यों के लिए आरकषित कर गैर-आदिवासरी लोगों को चुनावरी प्कतकनकध ्पद
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