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्पुसतक में सत्री को वेश्यावृत्ति करी हद तक छूट देने के पक्ष में हैं । वे लिखते हैं – “ विड्बना है कि नाररी का अगर सवतंत् होना है तो वेश्या बनने के सिवा कोई रासता नहीं है , तररी वह जरी सकेगरी । वर्ना उसकरी लगाम क्पता , ्पकत , ्पुत् के हरी हाथ में है ।''
भारतरी्य समाज में तो मसत््याँ दलितों में ररी दलित है , शा्यद राजेंद्र ्यादव द्ारा व्यकत विचार इसरी तथ्य को दर्शाते है । सवतंत्ता के बाद ‘ शशिदेश्पांडे ’, ‘ महाशवेता देवरी ’, ‘ कमलादेवरी ’ आदि सत्रीवाकद्यों ने भारत में ‘ महिला अधिकार ’ के लिए आवाज उठा्या ्पर वासतकवकता ्ये है करी क्पछिरी सदरी के अंतिम दशक तक , लगभग १९९० तक ‘ दलित-महिला विमर्श ’ ्पर साहित्य , ्योजना्यें , आलोचना्यें ना के बराबर है ।
‘ बिैक फेमिनिसट राईटिंग ’ से उत्तेजित होकर ्पूववोत्तर राष्ट्ों ने ‘ दमित-शोषित ’ वगगों करी महिलाओं के ‘ सामाजिक-आर्थिक व राजनैतिक ’ स्थितियों व समस्या्यों ्पर जो
आलोचना शुरू करी । उसका हरी एक ्परिणाम रहा है –“ भारतरी्य सत्रीतववादरी विमर्श ” I चूकिं सामाजिक ्परिवर्तन के लिए जरूररी है- समाज में उन शोषित-दमित लोगो के बारे में बताना , जिससे उनके बारे में ररी ्योजना्यें बना्यरी और अमल में ला्यरी जा्ये , और इसका एक सहरी और उचित माध्यम है –‘ साहित्य ’ I एक सत्री जो दलितों में ररी दलित मानरी-कहरी ग्यरी है , जो औरत और दलित दोनों के दर्द को गहरे तक झेलतरी है लेकिन दलित सत्री्यों का ्यह दुःख दलित बौद्धिक जगत में प्कवष्ट नहरी हो ्पा्या है , वहाँ अररी ररी उनसे जुड़े सवाल और जवाब और उनका वजूद उ्पेकषित है । दलित सत्री्यों करी ्परीड़ा ‘ दलित-आतमकथाओ से ररी गा्यब है । ्यहाँ ्पुरुषवादरी शिकंजा दलित सत्री्यों ्पर वैसे हरी कसा है जैसे सवर्ण-सत्री्यों ्पर । इसरीकिए समकािरीन ्परिप्ेक््य में ्ये जरूररी है करी वह ‘ सेलफ-एम्पावर ’ हों , और ्यह ‘ आतम- शमकत सम्पन्नता ’ रूट लेवल तक मजबूत हो । और इसके लिए जरूररी है कशषिा के साथ-साथ
‘ महिला-आरषिर ’ का प्रयोग ‘ सकूि से ्पारिवारिक-सम्पत्ति तक ’ और ‘ ग्राम-्पंचा्यत से संसद तक ’ हो , जिससे उनके हाथों में अधिकार होगा क्योकिं अधिकार के अहसास में हरी शमकत करी उत्पत्ति है , जिससे तररी उनकरी प्त्येक समस्या का हल निकला जा सकता है । ्यह आधुनिक अवधारणा है । लेकिन क्पछिरी शताब्दियों में हरी ‘ अककमहादेवरी ’, ‘ वसवन्ना ’ जैसे ‘ समाज-प्गतिशरीि क्रांतिकाररी हुए हैं जिनहोंने ‘ जाति -व्यवसथा ’ के विरुद्ध आवाज उठाई और साथ हरी दलित महिलाओं के साथ होने वाले ‘ सामाजिक- आर्थिक भेदभाव ’, लिंगभेद , असमानता के खिलाफ ररी लड़े , लेकिन वर्तमान ्परिस्थितियों में औरत जब तक खुद ‘ शमकत-सम्पन्न ’ और ‘ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक षिेत्ों में लिए जाने वाले निर्भ्यों में ’ एक निरा्भ्यक करी भूमिका में नहरी होगरी , तब तक उसकरी समस्याओं का कोई सार्थक हल नहरी निकला जा सकता । �
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