Jan 2023_DA | Page 38

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्यहरी नहीं इस देश में आज करी ताररीख में ्यकद सबसे सबसे बड़री सजा का हकदार कोई अ्पराधरी हैं तो वे सररी हैं , जो दलितों , आदिवाकस्यों और मसत््यों के साथ खुलेआम भेदभाव , अन्या्य , शोषण , उत्परीड़न कर रहे हैं और जिनहें धर्म और संसद्भति के नाम ्पर जो लोग और संगठन लगातार सह्योग प्दान करते रहते हैं ।
लेकिन इसके लिए दलित सत्रीतववादरी लेखकों का ‘ साहित्य-सृजन ’, ‘ मनुसमृकत ’ केमनद्रत न होकर ‘ शूद्र व द्रवरीर साहित्य ’ केमनद्रत होना चाहिए । जाति सहित लिग-असमानता ररी एक ‘ फूडल ’ ( सामंतवादरी ) संरचना है । ्पारिवारिक मूल्यों को चुनौतरी देकर एवं लिंगस्बन्धी प्ाककृकतक देन एवं स्थापित बुकन्यादरी मान्यताओं के खिलाफ़ प्रतिक्रियातमक विष-वमन कर क्रांतिकाररी नहीं हुआ जा सकता है । समाज में ऐसरी अनेक समस्याएँ हैं जिनके उनमूिन के लिए सार्थक एवं न्या्य संगत लड़ाई लड़ने करी आवश्यकता है ्पर ्ये साररी लड़ाइ्याँ समाज करी सार्थक ्परम्पराओं के विरुद्ध नहीं बमलक निरर्थक
्परम्पराओं के विरुद्ध होनरी चाहिए । नाररीवाद राजनैतिक आंदोलनका एक सामाजिक सिद्धांत है जो मसत््यों के अनुभवों से जनित है । हालाकि मूल रू्प से ्यह सामाजिक संबंधो से अनुप्ेरित है लेकिन कई सत्रीवादरी विद्ान लैंगिक असमानता और औरतों के अधिकार इत्यादि ्पर ज्यादा बल देते हैं ।
नाररीवादरी सिद्धांतो का उद्ेश्य लैंगिक असमानता करी प्ककृकत एवं कारणों को समझना तथा इसके फलसवरू्प ्पैदा होने वाले लैंगिकभेदभाव करी राजनरीकत और शमकत संतुलन के सिद्धांतो ्पर इसके असर करी व्याख्या करना है । सत्री विमर्श संबंधरी राजनैतिक प्िारों काजोर प्जनन संबंधरी अधिकार , घरेलू हिंसा , मातृतव अवकाश , समान वेतन संबंधरी अधिकार , ्यौन उत्परीड़न , भेदभाव एवं ्यौन हिंसा ्पररहता है ।
सत्रीवादरी विमर्श संबंधरी आदर्श का मूल कथ्य ्यहरी रहता है कि कानूनरी अधिकारों का आधार लिंग न बने । पश्चिम में नाररीवादरी आंदोलनकरी एक लंबरी ्पंर्परा रहरी है , सैकड़ों
वर्ष करी । मताधिकार आंदोलन 19वीं सदरी से चला आ रहा है । आज वहां इतना जो कुछ ररी हासिलकक्या ग्या है , लड़ कर कक्या है , समाज लड़ाई से बदलता है , आंदोलन से बदलता है , सिर्फ कानून बनाने से नहीं बदलता है समाज । इसलिए पश्चिम में सत्री के अधिकार करी चेतना बिलकुि नरीिे तक गई है । “ ्यकद आर्थिक आतमकनर्भरता हरी सवाधरीनता करी कुंजरी है तो जब तक सत्री के ्पास देह है और संसार के ्पास ्पुरुष , तब तक सत्री को चिंता करी क्या जरूरत ? जरूरत है तो देह को ्पुरुष के सवाकमतव से मुकत करके अ्पने अधिकार में लेने करी , क्योंकि ्यौन शुचिता , ्पकतव्रत , सतरीतव जैसे मूल्य सत्री के स्मान का नहीं ्पुरुष के अहंकार करी दरीनता और असुरषिा का ्पैमाना है , क्पतृ सत्ता के मूल्य हैं और सत्री करी बेकड़्याँ हैं । जिसने ्ये बेकड़्याँ उतार दरी हैं वह सत्री विशिष्ट है ” । लेखकगण नाररी मुमकत का स्बनध सत्री-देह करी सवतंत्ता से लगा रहे हैं । वे ‘ आदमरी करी निगाह में औरत ' नामक अ्पनरी
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