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उचवगटी्य सवर्णीय जाति में ऊपस्थित धार्मिक आचरणों का ररी अनुसरण कर रहरी है । उदाहरण के तौर ्पर : केश-मुंडन , अवैज्ञानिक व्रत – उ्पवास , ्पूजा विधि – विधान आदि एवं सामाजिक आचरणों मे वसत् – त्याग आदि । सवतंत्ता ्पूर्व और सवतनत्ता के बाद दलित महिलाऒं करी समस्या्यें और ररी गंररीर होने का प्मुख कारण है – महिला लेखिकाऒं द्ारा साहित्य में दलित महिलाऒं के विकास से संबमनधत समस्याऒं , मुद्ों को गंररीरता से न उठा ्पाना । “ नाररीवाद से जुड़री सररी औरतों को
्ये सोचना होगा कि भारत में दलित सत्री करी बात कक्ये बगैर नाररीवाद का प्श्न अधूरा है और ्यहरी पश्चिमरी नाररीवाद से भारतरी्य नाररीवाद करी भिन्नता का आधार है । नाररीवादरी अवधारणा में व्या्पक बदलाव नाररीवाद करी तरीसररी लहर के बाद आ्याI नाररीवाद करी तरीसररी लहर मुख्यतः लैटिन अमेरिकरी , एकश्याई और अशवेत नारर्यों से संबंधित थरी , इस लहर ्पर उत्तर – आधुनिक विचारधारा का प्राव था , जिसके कारण हरी भारतरी्य दलित महिलाएं सामाजिक , आर्थिक , शैषिकरक , राजनरीकतक आदि सतर ्पर क्पछड़
ग्यीं ।” इस लहर ने भारतरी्य नाररीवादरी आंदोलन ्पर गहरा प्राव डाला . ्यहाँ ररी दलित नारर्यों ने नाररीवादरी आंदोलन ्पर आरो्प लगाना शुरू कक्या कि वह उच्वर्गीय सवर्ण नारर्यों का प्कतकनकधतव करता है और दलित , ग्रामरीर और निर्धन महिलाओं को बाहर छोड़ देता हैI
भारत में दलित आंदोलन करी शुरूआत ज्योतिराव गोविंदराव फुले के नेतृतव में हुई । भारतरी्य इतिहास में ज्योतिबा हरी वो ्पहले शखस थे जिनहोंने दलितों करी कशषिा के लिए न केवल विद्यालय करी वकालत करी बमलक सबसे ्पहले
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