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महिला आं दोलन को दलित महिलाओं तक पहुंचने की आवश्यकता

सुनील कुमार ्यादव

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रत में महिलाएं लिंगाधारित , आर्थिक-विषमता , शैषिकरक , धार्मिक , रंगभेद आदि षिेत्ों में महिला के रू्प में जनम लेने के कारण हरी अभिशपत है । ्परंतु समूचे सत्री-जाति में एक दलित महिला अ्पने जनम , जाति और संप्दा्य के कारण हरी दु : ख झेल रहरी है । भारत मे सत्रीवादरी आंदोलन दलित महिलाओं को एक आमसततव देने मे विफल रहा है । क्योकि भारत में सत्रीवादरी- आंदोलन प्मुख रू्प से उच्-वर्गीय सवर्णीय महिलाऒं को हरी ध्यान मे रख कर आंदोलनरत है । “ एक सवर्ण सत्री और एक दलित सत्री करी समस्याओं में क्या अंतर हैं-सवर्ण सत्री ररी दलित सत्री का छुआ नहीं खातरी । उसे उनहीं हिकारत भररी नज़रों से देखतरी है । कई मसत््यों के साथ होने ्पर वह खुद को सत्री होने से ज़्यादा जाति से आइडेंटिफाई करतरी दिखतरी है । लेकिन वह भूल जातरी है कि जिस तरह ्पूंजरीवाद ने जाति के नाम ्पर मजदूरों को बाँटकर उनका आंदोलन क्षीण कर कद्या , उसरी तरह से ब्ाह्मणवादरी क्पतृसत्ता ने औरतों को जाति के नाम ्पर बाँटकर नाररीवादरी आंदोलन में तेज धार नहीं आने दरी ’।
भारत में दलित महिला आंदोलन “ अफ्रीकन बिैक वुमेन ” का भारतरी्य संसकरण ्या प्कतफल है । भारत में दलित महिला अ्पने सामाजिक रुढ़ीवादिता , धार्मिक अंधविसवास के साथ
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