सामाजिक जाति व्यवसथा ्पर टिकरी है ।
अध्य्यन करी दृष्टि से ्यकद देखा जाए तो ्यह एक सवाराविक प्श्न उठता है कि हिनदू समाज का ्यह सवरु्प कब से है ? प्राचीन ्या वैदिक काल में ररी इतनरी जाकत्यों , उ्पजाकत्यों ्या वर्ण इत्यादि का क्या ्यहरी सवरु्प था ? जाकत्यों औऱ उ्पजाकत्यों करी उत्पत्ति , उतथान एवं ्पतन के
क्या कारण थे ? वासतव में ्पौराणिक एवं प्राचीन हिनदू धर्म ग्रंथों का अध्य्यन करने से ्यह तो शरीशे करी तरह स्पष्ट हो जाता है कि बारहवीं सदरी के ्पहले तक हिनदू समाज कुल चार वर्ण , 117 गोत् औऱ 36 जाकत्यों के रू्प में प्ापत होता है । जाकत्यों करी उत्पत्ति का आधार व्यवसा्य इत्यादि से हरी था । कालांतर में ्यानरी बारहवीं सदरी के बाद भारत में मध्यकािरीन ररीिर विदेशरी आक्रमणों के कारण हिनदू समाज में आ्यरी र्यानक अमसथरता एवं अव्यवसथा के कारण छोटे-छोटे समूहों एवं अव्यवमसथत जरीवन ्पर
आधारित ्परिस्थितियों के कारण उत्पन्न विविध प्कार के कार्यों के आधार ्पर जाकत्यों का निर्माण औऱ ्पहचान बनतरी ििरी ग्यरी । कालांतर में विदेशरी आक्रांताओं करी विलासिता एवं सुरषिा करी दृष्टि से कुछ असवचछ कार्यों का प्ििन समाज के समषि उत्पन्न हुआ ।
आगरा के लाल किला में अकबर के श्यन
कषि के ्पास बने एक शिला्पट ्पर लिखा है कि अकबर करी कुल छह हजार बेगमें ्यहां रहतरी थरी । कल्पना करीकजए करी छह हजार बेगमों करी लिए शौचाि्य इत्यादि के प्बंधन में आने वािरी कठिनाइ्यों को समझा जा सकता है । इसके अलावा बेगमों करी शाररीरिक अ्पेषिाओं करी ्पूर्ति एक व्यमकत के द्ारा कैसे संभव थरी ? जब वह खुले में शौच इत्यादि के लिए बाहर जाकर , ्पर्पुरुषों से अ्पनरी शाररीरिक अ्पेषिाओं करी ्पूर्ति के उ्परांत गर्भ धारण करने के बाद अकबर द्ारा प्ताकड़त होतरी थरी । ऐसे में स्वयं अकबर ने उनके
बाहर जाने ्पर प्कतबनध लगाकर किले में हरी उनकरी शौचादि करी व्यवसथा करी । इस का्य्भ के लिए उसे निककृष्ट नौकरों को लगाना ्पड़ा । नौकरों करी संख्या काम होने के कारण ्पराजित हिनदू राजाओं एवं सवाकरमानरी षिकत््य सैनिकों का सवाकरमान भंग करने के उद्ेश्य से , उनहें सफाई कार्यों में लगा्या ग्या । इस तरह से सवाकरमानरी , धर्माभिमानरी औऱ राष्ट्ाकरमानरी हिनदुओं का सवाकरमान भंग करके सफाईकमटी बना कद्या ग्या । कालांतर में इसरी भंग शबद से भंगरी शबद ्यानरी जाति का निर्माण हुआ । इसरी तरह भारत में चमड़े को हे्य एवं घृणा करी दृष्टि से देखा जाता है कि गो-मांस खाने वालों ने सवाकरमानरी औऱ धर्माभिमानरी हिनदुओं को इस का्य्भ में लगाकरम , उनहें चर्मकार जाति का बना कद्या । ऐसे हरी हजारों जाकत्यों का निर्माण होता चला ग्या जो आज भारत में अनुसूचित जाति औऱ जनजाति के रू्प में चिमनहत हैं । इसरी प्कार ब्ाह्मण औऱ षिकत््यों में सथान , ्परिस्थितियों एवं मज़बूररी में किए गए कार्यों के आधार ्पर उनमें ररी विषमता आतरी ििरी ग्यरी औऱ भारत करी सररी जाति वर्ग में उ्पजाकत्यों करी उत्पत्ति होतरी ििरी ग्यरी ।
वेदकािरीन चार वर्ण , ्पौराणिककािरीन 117 गोत् औऱ उन वर्ण एवं गोत्ों ्पर आधारित केवल 36 जाकत्यां आज भारत में साढ़े छह हजार जाकत्यों एवं ्पिास हजार से अधिक उ्पजाकत्यों में बंटकर ररी एक हिनदू लोकजरीवन एवं संस्कृति के आधार ्पर सामाजिक जरीवन संवहन कर रहा हैं । इसका एक हरी कारण है औऱ वह है कि मध्यकािरीन विदेशरी आक्रांता मुमसिम शासकों द्ारा उत्पन्न करी ग्यरी ्परिस्थितियां । आज आवश्यकता इस बात करी है कि सवचछ , असवचछ , पवित्र औऱ अपवित्र कार्यों एवं व्यवसा्यों करी जगह उदानत चित्त से मानवता एवं इंसाकन्यत का ्पररि्य कद्या जाए । जातिगत भ्रांकत्यों को मिटाकर उत्तम मानव के गुणों को आतमसात कर लोकतामनत्क ढांचे में संविधान को सववोच् मानते हुए जरीवन्या्पन करना श्रेयसकर हैI �
tuojh 2023 31