Jan 2023_DA | Page 28

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मरीकड्यावालों ने ररी चिकनित करने का काम कक्या है , लेकिन समाज का सत्ताधाररी वर्ग इनहें एकदम अनसुना करता रहा है ।
सवतंत्ता के बाद अस्सी और नबबे के दशकों में देश अंदर दलितों करी राजनरीकत तरीन रू्पों में अ्पनरी ्पहचान बनातरी नजर आतरी है । दलित राजनरीकत करी एक धारा संघर्ष करतरी हुई दिखतरी है , तो दूसररी धारा समझौतावादरी रासता अख्तियार कर दलित हित करी वकालत करतरी है । तरीसररी धारा है राजनरीकतक सौदेबाजरी करी । ्पहिरी धारा का नेतृतव वाम माकग्भ्यों द्ारा कक्या जाता रहा है , तो दूसररी धारा में कांग्रेस , भाज्पा , लोज्पा , स्पा सहित दकषिण भारत करी अन्य कई षिेत्री्य ्पार्टि्यां रहरी हैं । तरीसररी धारा करी राजनरीकत करनेवािरी एक मात् ्पाटटी बहुजन समाज ्पाटटी है , जिसने शुरुआत तो बहुत अच्छी करी थरी , लेकिन सत्ता करी सौदेबाजरी करने के चलते लगातार अ्पनरी सैद्धांतिक विशवसनरी्यता खोतरी ििरी ग्यरी । कांशरीराम जरी करी अथक मेहनत से तै्यार करी ग्यरी राजनरीकतक जमरीन करी फसल काटनेवािरी कथित दलित नेता मा्यावतरी को नो्यडा , लखनऊ , गाजिआबाद और दिल्ली में अरबों रू्प्ये करी सं्पकत्त खडरी करने में और लखनऊ में हरी ्परिवर्तन चौक सहित आंबेडकर उद्ान बनाने में उत्तर प्देश जैसे गररीब राज्य के कोष से अरबों रु्प्ये फूंक देने में हरी दलित उतथान नजर आता है । इस दलित महिला ने एक बार ररी नहीं सोचा कि इतनरी जमरीन ्पर ्यकद उद्ान करी जगह कोई कॉलेज , अस्पताल ्या टेक्नीकल संसथान बना कद्या जाता और उसमें दलित छात्ों के लिए 50 प्कतशत निःशुलक सरीटें आरकषित कर दरी जातीं , तो देश के दलितों का बहुत कितना बडा उ्पकार होता । इसकरी बजा्य मा्यावतरी ने दलित राजनरीकत को भटका्या है और दलित समाज को निराश हरी कक्या है .
आज ्यह सररी स्वीकार करते हैं कि डॉ आंबेडकर के ईमानदार नेतृतव ने दलित संघर्ष को सफल बना्या था । दलितों के दुशमन के रू्प में उनहोंने ब्ाह्मणवाद तथा ्पूंजरीवाद को चिकनित कक्या था , लेकिन दुर्भाग्य है कि मा्यावतरी जैसरी दलित राजनरीकतज्ञ ने दलितों के उनहीं शत्ुओं के
हित में काम करना शुरू कर कद्या । डॉ आंबेडकर ने ्यह जरूर प्रयास कक्या था कि दलित समाज एक राजनरीकतक शमकत रू्प में उभरे और समान विचार रखनेवालों से मिल कर सामाजिक एवं राजनरीकतक लडाई लडे । उनहोंने सांप्दाक्यक शक्तियों से मिल कर अ्पनरी राजनरीकतक महतवकांझा ्पूररी करनेवालों से दूररी बना्ये रखने करी ररी बात कहरी थरी , लेकिन आज मा्यावतरी सररीखरी राजनरीकतज्ञ आंबेडकर करी इस बात को भूल कर देश करी जनता को और दलित जनसमुदा्य को धोखा दे रहरी हैं । डॉ आंबेडकर ब्ाह्मणवाद और ्पूंजरीवाद का खातमा चाहते थे , सामंतरी अवशेषों का उनमूिन चाहते थे और अन्या्य ्पर आधारित व्यवसथा करी जगह न्या्य ्पर आधारित व्यवसथा चाहते थे । वह शोषक वर्ग के खिलाफ शोषित वर्ग का संघर्ष चाहते थे । इसरीकिए वे चाहते थे कि देश का नेतृतव श्कमक वर्ग करे , लेकिन दलितों में जो मध्य वर्ग विकसति हुआ , वह अवसरवादरी साबित हुआ । उसने अ्पने लाभ के लिए डॉ आंबेडकर के सिद्धांतों को हरी उलट-्पिट कद्या । उसने अ्पने हिसाब से डॉ आंबेडकर के दर्शन गढे , जिनमें वे समाजवाद-विरोधरी और जातिवादरी नजर आते हैं ।
इन मध्यवर्गीय दलित बुद्धिजरीकव्यों ने डॉ आंबेडकर को संसार का महान विद्ान , संविधान निर्माता और बोधिसतव के विशेषणों तक सरीकमत कर कद्या । व्यवसथा-्परिवर्तन करी उनकरी क्रांति चेतना को इन न्ये चिंतकों ने दफन कर कद्या ।
अब इनमें कई नेता भागरीदाररी आंदोलन चला रहे हैं और अ्पनरी-अ्पनरी जाति का नेता बने हुए हैं । कोई विशव हिंदू ्परिषद करी तरह ्पूरे भारत को हिंदू राष्ट् बनाने के तर्ज ्पर बौद्ध राष्ट् बनाने के लिए दीक्षा-का्य्भक्रम करा रहा है , तो कोई अमेरिका का गुणगान कर डाइवर्सिटरी करी वकालत कर रहा है और भारत में उसे लागू करने करी मांग कर रहा है । कोई इसरी के आधार ्पर निजरी षिेत् में आरषिर मांग रहा है , कोई सत्ता ्परिर्वतन से ज्यादा दलित-मुसलिम एकता को समझ रहा है । ्यह है मौजूदा दलित चेतना करी मसथकत , जो अ्पनरी ढ्पिरी-अ्पना राग ्पर आधारित है ।
आज ्यह समझना मुमशकि है कि जाति का विनाश व्यवसथा ्परिवर्तन में है ्या जाति आधारित भागरीदाररी करी व्यवसथा में है । उ्परोकत भागरीदाररी आंदोलन का अर्थ है गररीब को लडाना और लूट करी संस्कृति को विकसित करना । निससंदेह ्यह भटकाव करी मसथकत है और दलित आंदोलन को कनमष्क्र्य एवं निष्प्रावरी बनाने करी राजनरीकत हैरी आज करी इस कदगभ्रमित दलित राजनरीकत और दलित चिंतन के खतरनाक भटकाव में ्यह विचार करना लाजिमरी लगता है कि दलित समाज का हित सिर्फ जातिवाद ्पर आधारित भागरीदाररी आंदोलन में नहीं , और न सिर्फ आरषिर में है । बमलक समग्र दलित समाज का हित , शोषण ्पर आधारित इस व्यवसथा को बदलने में है ।
( साभार )
28 tuojh 2023