Jan 2023_DA | Page 27

बुराइ्यों के विरुद्ध आवाज उठा्यें । लेकिन हमारे देश के बुद्धिजरीवरी वर्ग ने शा्यद हरी इस दिशा में ईमानदार ्पहल करी होगरी ।
डॉ आंबेडकर ने देश के बुद्धिजरीकव्यों करी इस भूमिका ्पर आश्चर्य व्यकत कक्या था और कहा ररी था कि हमारे देश के बुद्धिजरीवरी वर्ग के
लोग अंदर से कनष््पषि और ईमानदार नहीं है । उनके अनुसार दुर्भाग्य करी बात है कि देश में आजादरी के ्पहले सामाजिक सुधार के जो थोडे आंदोलन चल रहे थे , सवतंत्ता मिलने के साथ हरी वे सररी आंदोलन ्या तो समापत हो ग्ये ( ्या कर कद्ये ग्ये ) ्या फिर उनकरी दिशा हरी बदल दरी ग्यरी । फलतः समाज सुधार का काम देश में अधूरा रह ग्या और सामाजिक विसंगकत्यां अ्पनरी जगह ्पर जस-करी-तस बनरी रह ग्यीं । देश करी राजनरीकतक आजादरी का मतलब ्यहां के देश संचालकों ने सररी तरह करी समस्याओं से मुमकत ्पाना मान लि्या था ।
प्जातंकत्क व्यवसथा में विशवास करनेवािरी
कोई ररी सरकार अ्पने नागरिकों के लिए कल्याणकाररी ्योजना घोषित करतरी है री ऐसरी घोषणा उसकरी राजनरीकतक मजबूररी हुआ करतरी है । चूंकि प्जातंत् में प्त्येक आदमरी के वोट करी करीमत बराबर है , इसलिए ऐसा करना लाजिमरी है । आजादरी के बाद देश में जिस तरह करी
राजनरीकतक व्यवसथा का्यम हुई , उसमें सररी राजनरीकतज्ञ सत्ता करी ओर देखते रहे , वोट खींचने करी जुगत भिडाते रहे । उनहें सामाजिक ्परिवर्तन ्या किसरी तरह के सामाजिक बदलाव से कोई मतलब नहीं था । फुले , ्पेरर्यार और डॉ आंबेडकर जैसे नेताओं के सामाजिक ्परिवर्तन करी लडाई को एक तरह से नकार कद्या ग्या । इनकरी जगह दलित वर्ग से हरी सत्ता सुख भोगनेवाले कुछ लोगों को खडा कर कद्या ग्या , जिनका लक््य दलित नेतृतव के नाम ्पर सत्ता सुख भोगना तथा सत्ता सुखवाकद्यों का साथ देना था । इनके कुटिल वागजाि में लंबे सम्य तक दलित वर्ग उलझा रहा और अ्पनरी भौतिक
व सांस्कृतिक ्परिस्थितियों के बदलने करी प्तीक्षा करता रहा । मगर दलित समाज करी ्यह प्तीक्षा एक अंतहरीन मृग मररीकिका हरी साबित हुई । समाज में दलितों का दोहन , शोषण एवं अत्याचार बदसतूर जाररी रहा और सामाजिक भेद-भाव ररी ्पूर्ववत चलते रहे ।
सवतंत्ता के बाद साठ-सत्तर के दशक में दलितों के बरीि राजनरीकतक चेतना का उभार देखा जाता है । निससंदेह कशषिा और संवैधानिक सुविधाओं ने इस चेतना के उभार में सकारातमक भूमिका निभा्यरी थरी । कनमशित रू्प से इसमें दलितों के लिए कद्या ग्या आरषिर ररी शामिल था । दलितों को लुभाने , तथा उनके वोट बैंक ्पर कबजा जमा्ये रखने के एक मजबूत हकथ्यार के रू्प में आरषिर को कांग्रेसरी सहित कई ्पार्टि्यों ने इसतेमाल कक्या और आरषिर के नाम ्पर दलितों का वोट अ्पने पक्ष में करते रहे । दलित समाज में ्प्या्भपत कशषिा न होने के चलते लंबे सम्य तक ्यह आरषिर लगभग बेमानरी बना रहा और आज ररी लगभग वहरी मसथकत है ।
देश के नागरिकों को कशकषित करने सहित दलितों को कशकषित करने के नाम ्पर सरकाररी सकूि जरूर खोले ग्ये , मगर उसरी के समकषि गैरसरकाररी ( प्ाइवेट ) सकूिों करी ररी लंबरी कतार खडरी करी जातरी रहरी । देश में स्पष्ट और समान कशषिा नरीकत न होने के कारण ्यहां दो-तरह के नागरिक बना्ये जाते रहे । अमरीर के बच्े अलग नागरिक , तो गररीब के बच्े अलग । गैर सरकाररी सकूिों से ्पढनेवाले संभ्रांत और कुिरीन ्परिवार के बच्ों के साथ दलित और कमजोर वर्ग के सरकाररी सकूिों से ्पढे-लिखे बच्ों करी तुलना और मेधा स्पर्धा करी बात ररी करी जातरी रहरी । ्यह दोहरा सोच और दोहररी कशषिा व्यवसथा आज ररी चल रहरी है , बमलक ्पहले करी अ्पेषिा और अधिक बढ ग्यरी हैI इस तरह करी कशषिा व्यवसथा में हम कैसे समानता , एकता और भाईचारे करी बात कर सकते हैं । ्पुनः सुकन्योजित तररीके से कशषिा व्यवसथा को प्ाइवेट और महंगा बना कर दलित व कमजोर वर्ग को इससे वंचित रखने करी साजिश करी जा रहरी है । इस बात को आज स्पष्ट रू्प से कई समाजशामसत््यों , कशषिाकवदों तथा
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