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दिग्भ्रमित दलित राजनीति से नहीं
होगा दलित समस्ा का समाधान
डॉ रमाशंकर आ ्य
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तंत्ता के बाद दलित उतथान के लिए लगातार कठोर कानून बना्ये ग्ये और उनके आर्थिक विकास के लिए कई ्योजनाएं ररी बना्यरी ग्यीं । दलितों को शरीघ्र न्या्य मिल सके , इसके लिए ररी विशेष न्या्याि्य तक गठित कक्ये ग्ये , जिनमें गवाहों के आने-जाने तथा उनकरी दैनिक मजदूररी करी क्षतिपूर्ति करी ररी व्यवसथा करी ग्यरी , लेकिन इन तमाम सरकाररी कोशिशों के बावजूद दलितों का ्प्या्भपत उतथान ्या विकास नहीं हो ्पा्या । उनहें समाज करी मुख्यधारा से ररी नहीं जोडा जा सका , उनका शोषण होता रहा , उन ्पर दमन और अत्याचार ररी होते रहे ।
देश करी दलित समस्या को लेकर समाज के विभिन्न वगगों के चिंतकों , विचारकों तथा समाजशमसत््यों करी अलग-अलग रा्य जरूर देखरी जातरी है , लेकिन सं्पूर्णता में विचार करने ्पर ्यह बात स्पष्ट रू्प से उभर कर सामने आतरी है कि दलित समस्या केवल राजनरीकतक ्या प्शासनिक कदम उठाने से हरी हल होनेवािरी नहीं है । ्यह समस्या मूलतः एक सामाजिक समस्या है और इसे सामाजिक सुधार के द्ारा हरी सुलझाने का प्रयास कक्या जाना चाहिएI देश का कोई ररी कानून किसरी सवर्ण को किसरी दलित के साथ बैठ कर खाना खाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता । ्यह सब वैचारिक ्परिवर्तन ्या सामाजिक बदलाव से हरी संभव है , जिसके लिए आजादरी के बाद शा्यद हरी प्रयास कक्या ग्या । समाज में व्यापत जातिवाद करी जडता , ब्ाह्मणवादरी और वर्चसववादरी सामंतरी सोच ्या फिर लोगों में व्यापत श्ेष्ठ ्या नरीि का बोध सामाजिक ्परिवर्तन को रोकता रहा है । फलतः सकद्यों से ििरी आ रहरी वर्ण एवं जाति व्यवसथा
करी सामाजिक बरीमाररी जरीकवत है , जिसे बहुत ्पहले हरी समापत कर कद्या जाना चाहिए था । इस सामाजिक बरीमाररी के चलते समाज में समानता , सवतंत्ता , बंधुता , प्ेम , द्या और भाईचारे करी भावना का विकास नहीं हो ्पा्या । ्ये सारे मानवरी्य मूल्य अ्पने देश में केवल कागजरी बन कर रह ग्ये ।
महातमा फुले , ्पेरर्यार और डॉ आंबेडकर ने देश करी इस समस्या को ठरीक से समझा था और भारतरी्य समाज को इस बरीमाररी से मुमकत दिलाने के लिए ्ये तरीनों सामाजिक विचारक सामाजिक समता करी लडाई आजरीवन लडते रहे । निससंदेह इन तरीनों विचारकों ने वर्ण और जाति का दंश
झेला था , इसलिए अ्पने समाज को इससे मुमकत दिलाने के लिए ्ये आजरीवन प्रयत्नशरीि रहे । डॉ आंबेडकर के जरीवन करी ्पहिरी ्पुसतक जाति प्था का उनमूिन में जातिवाद के जहर को समापत करने तथा सामाजिक विषमता दूर करने के लिए जिन तकगों को प्सतुत कक्या है , उनके सामने बडे जातिवादरी ररी निरुत्तर हो जाते हैं । जातिवाद से लाभ उठानेवाले देश के बुद्धिजरीवरी वर्ग के लोग अकसर जातिवाद उनमूिन के मामले ्पर चु्प हो जाते हैं , लेकिन बुद्धिजरीवरी होने के नाते उनसे ्यह अ्पेषिा जरूर करी जातरी है कि वह कनष््पषि हो कर समाज को सहरी दिशा देने के लिए आगे आ्यें और जातिवाद जैसरी सामाजिक
26 tuojh 2023