िदल कहे क जा
यह पर कह
कमलेश ीवातव
याद कीिजये बचपन क
वो िदन जब आट की लास म होमवक देते समय
कहा जाता था िक घर से कछ बना कर लाओ। हम म से #यादातर लोग
सीनरी बना कर लाते थे। जी हां इस सीनरी म ही तो हम अपनी क(पना)
क
रंग भरते थे। हमारी क(पना) म होते थे नदी, पहाड़ व पेड़ और
पहाड़. क
पीछ/ से झांकता सूरज। मन क
िकसी कोने म िछपी बचपन की
ये क(पनाएं उ4राखंड की धरती पर कदम रखते ही जीवंत हो उठती ह9।
एक तरफ ह;रयाली की चादर पर पहाड़. की गोद म खेलता सूरज तो दूसरी
ओर कभी ताल तो कभी झरने का <प धरती नदी। बचपन म सादे कागज
पर उक
री ग= क(पनाएं जब सामने ह. तो उस पर से नजर हटने का
सवाल नह> पैदा होता। देवभूिम को @कAित ने सचमुच फरसत म गढ़ा है...
दून वैली
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April-May, 2018