Grasshopper April-May Issue | Página 12

िदल कहे क जा यह पर कह कमलेश ीवातव याद कीिजये बचपन क वो िदन जब आट की लास म होमवक देते समय कहा जाता था िक घर से कछ बना कर लाओ। हम म से #यादातर लोग सीनरी बना कर लाते थे। जी हां इस सीनरी म ही तो हम अपनी क(पना) क रंग भरते थे। हमारी क(पना) म होते थे नदी, पहाड़ व पेड़ और पहाड़. क पीछ/ से झांकता सूरज। मन क िकसी कोने म िछपी बचपन की ये क(पनाएं उ4राखंड की धरती पर कदम रखते ही जीवंत हो उठती ह9। एक तरफ ह;रयाली की चादर पर पहाड़. की गोद म खेलता सूरज तो दूसरी ओर कभी ताल तो कभी झरने का <प धरती नदी। बचपन म सादे कागज पर उक री ग= क(पनाएं जब सामने ह. तो उस पर से नजर हटने का सवाल नह> पैदा होता। देवभूिम को @कAित ने सचमुच फरसत म गढ़ा है... दून वैली 10 g April-May, 2018