परिवार चंवरवंशीय क्षत्रिय वर्ण की श्रेणी में था , द्कनतु द्वदरेशी मुस्लम आरिानता शासकदों द्ािा स्वाभिमानी द्हनदू क्षत्रिय योद्धाओं को युद्ध में पराजय के उपरानत अपमान करनरे की दृसष््ट सरे चर्म-कर्म में लगानरे के बाद चमार बनाया था । व्तुतः संत रैदास जी का परिवार धन-धानय सरे भरापूरा था । ब्ाह्मण एवं साधु सन्तों को दान- दक्षिणा दरेनरे में भी संत रैदास का परिवार पीछे नहीं था । कथन की पुसष््ट में यह पंसकतयां द्रष्टवय हैं-
चंवर वंश हरिननदन नामा काशीपुरी नाथ मम धामा ।।
धन , स्पद्त् की कमी न ्वामी । दीना सबकुछ अनतया्थमी ।।
पुत्र रत्न जन्मों घर माही । पती पत्नी दोऊ द्सहाही ।।
सकल कु्टु्बी द्मत्रा द्जमायरे । द्भक्ुक जन सन्तुष्ट करायरे ।।
द्नज गुरु इष््टदरेव सनमानरे द्दए दान अनुपम मनमानरे ।।
गुरु रैदास द्पपपल गोत्र के ररे । यह गोत्र द्विज-श्रेणी का था-द्पपपल गोत्रा द्वद्दत जग माही , या में नरेक अनयरा नाही । उनके गोत्र एवं माता-द्पता के नामदों में परिवर्तन के साथ ही उनके वंश-वृक् को अपनरे-अपनरे ढंग सरे प्र्तुत करनरे का द्वद्ानदों नरे जो प्रयास द्कया है , उनकी ओर अनयानय दृसष््ट सरे ्वतनत्र द्चनतन बाद में द्कया जा सकेगा , द्कनतु इस समय संक्षेप में यही कहना श्रेयष्कर होगा द्क संत द्शिोमद्ण गुरु रैदास एवं द्हनदू धर्म में वद्ण्थत चंवर वंश यानी क्षत्रिय वर्ण के और द्पपपल गोत्र के ररे । संत द्शिोमद्ण गुरु रैदास चंवर वंश के क्षत्रिय ररे , द्कनतु उनहें चर्मकममी जाद्त के रूप में परिवद्त्थत करके चमार जाद्त की पहचान दी गई । यह सब उल्टफेर मधयकाल में द्वदरेशी आरिानता शासकदों द्ािा हुआ । संत द्शिोमद्ण गुरु रैदास के संदर्भ में यह द्नद्व्थवाद है द्क वह क्षत्रिय वंश के ररे । द्सकनदि लोदी के समय में उनके पूर्वजदों नरे इ्लाम धर्म ्वीकार करनरे सरे इंकार कर द्दया , तब ऐसरे बहादुर जाद्त के ब्ाह्मण तरेज्वी संत को मृतयु दंड दरेना उद्चत नहीं समझा कयदोंद्क यद्द उनहें मृतयुदणड द्दया जाता तो उस वंश एवं जाद्त के लोग रकत-रंद्जत युद्ध के द्लए मुस्लम शासक द्सकनदि लोदी को चुनौती दरे सकतरे ररे । अतएव उसनरे मान-मर्दन करनरे के अद्भप्राय के चंवर वंश की क्षत्रिय जाद्त में उतपन्न गुरु रैदास के स्वाभिमान को भंग करनरे की प्रबल इचछा सरे द्नम्न कार्य अर्थात चर्मकर्म में बलपूर्वक लगा द्दया गया । संत ्वभाव के अनुरूप ही गुरु रैदास नरे अपनरे जाद्त-वंश की रक्ा की तथा द्बना लहू बहाए ही अपनरे द्हनदू धर्म की रक्ा के अद्भप्राय को युसकतसंगत द्वद्ध सरे पूरा कर द्लया । संत द्शिोमद्ण गुरु रैदास नरे इसरे अपनरे इस वाणी सरे वयकत द्कया -
हम अपराधी नीच घर जन्मे कु्टु्ब लोग किरे
हंसी िरे । दारिद दरेख सभको हंसरे ऐसी दसा इमारी । जाके कु्टु्ब सब ढोर ढोवत , आज बनारसी
आसपासा । काशी डींह मांडूर ्राना , शुरि वरन करत
गुजराना ।
iQjojh 2025 9