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जन्म दिवस पर विशेष

कहा एवं द्लखा गया । संत द्शिोमद्ण गुरु रैदास जी द्जस उच् ्ति के संत ररे , उस आधार पर उनको रैदास कहना ही उद्चत होगा । िद्वदास का अर्थ होता है ” िद्व ” यानी सूर्य के दास और ” रय ” शबद का तातपय्थ सृसष््ट के रचद्यता एवं उसके संचालनकर्ता सर्वशसकतमान यानी ईशवि के द्लए प्रयुकत है यानी ” रैदास ” का पूणा्थद्दपूर्ण अर्थ हुआ ” ईशवि के दास ” इसद्लए उच्ािण दोष का तो प्रश्न ही नहीं उठता है । ” रय ” शबद के अर्थ के समझ के कमी के कारण ” िद्व ”
शबद का लोकाचार में प्रमुखता के साथ प्रयुकत होना एक ्वाभाद्वक प्रक्रिया है । वैसरे अपनरे- अपनरे दृसष््टकोण सरे अनरेक द्वद्ानदों नरे अनरेकशः ्रानदों पर गुरु रैदास को जहां रमादास , रयदास , िद्वदास , रहदास , रामदास , रामादास , रायदास , रामदाय , रूईदास , रूइदास , रूरिदास , रूहदास , रोहीदास , रौहीदास और हरिदास आद्द द्लखा है , वह सब संत द्शिोमद्ण गुरु रैदास के स्मान में सुमन-समर्पण ही कहा जा सकता है । “ एकम् सतयं द्वप्रं बहुधा वदसनत ” जैसी लोकोसकतयां ऐसरे
ही महानुभावदों के द्लए कही गई हैं ।
गुरु रैदास का जीवन आधयासतमक ऋद्षयदों एवं द्हनदू संस्कृद्त के संवाहक संतदों के जीवन में घद््टत उदाहरण सरे संयुकत द्मलता है । उनके द्पतामह हरिननदन को धौलागढ़ जंगल में सननदन ऋद्ष के आशीर्वाद सरे पुत्र रत्न की प्रासपत हुई थी , द्जसका नाम रगघु रखा गया । द्जस प्रकार राजा रघु के वंश में भगवान् श्ीिाम का जनम हुआ , उसी प्रकार रघु के कुल में संत रैदास उनके बरे्टे के रूप में जनम द्लए ररे । उनका
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