Feb 2025_DA | Page 35

थी द्क यह एक महान नरेतृतवकर्ता का अपनरे सहयोद्गयदों के प्रद्त प्ररेम और द्वनम्रता सरे भरा आभार है । संद्वधान को अंद्तम रूप दरेनरे में डा . आंबरेडकर की भूद्मका को िरेखांद्कत करतरे हुए भारतीय संद्वधान की प्रारूप सद्मद्त के एक सद्य ्टी . ्टी . ककृष्णमाचारी नरे नव्बि 1948 में संद्वधान सभा के सामनरे कहा था द्क स्भवत : सदन इस बात सरे अवगत है द्क आपनरे प्रारूप सद्मद्त में द्जन सात सदस्यों को नामांद्कत द्कया है , उनमें एक नरे सदन सरे इ्तीफा दरे द्दया है और उनकी जगह अनय सद्य आ चुके हैं । एक
अनय सद्य की इसी बीच मृतयु हो चुकी है और उनकी जगह कोई नए सद्य नहीं आए हैं । एक सद्य अमरेरिका में ररे और उनका ्रान भरा नहीं गया । एक अनय वयसकत सरकारी मामलदों में उलझरे हुए ररे और वह अपनी द्ज्मरेदारी का द्नवा्थह नहीं कर रहरे ररे । एक-दो वयसकत द्दलली सरे बहुत दूर ररे और स्भवत : ्वा्थय की वजहदों सरे कमरे्टी की कार्यवाद्हयदों में हिस्सा नहीं लरे पाए । इसद्लए कुल द्मलाकर यही हुआ है द्क इस संद्वधान को द्लखनरे का भार डा . आंबरेडकर पर ही आ पड़ा । मुझरे इस बात पर कोई संदरेह
नहीं है द्क हम सब को उनका आभारी होना चाद्हए द्क उन्होंनरे इस द्ज्मरेदारी को इतनरे सराहनीय ढंग सरे अंजाम द्दया है ।
डा . आंबरेडकर उन चंद लोगदों में शाद्मल ररे , जो प्रारूप सद्मद्त कमरे्टी का सद्य होनरे के साथ-साथ शरेष 15 सद्मद्तयदों में एक सरे अद्धक सद्मद्तयदों के सद्य ररे । संद्वधान सभा द्ािा प्रारूप सद्मद्त के अधयक् के रूप में उनका चयन उनकी राजनीद्तक योगयता और कानूनी दक्ता के चलतरे हुए था । संद्वधान को द्लखनरे , द्वद्भन्न अनुचछेददों- प्रावधानदों के संदर्भ में संद्वधान सभा में उठनरे वालरे प्रश्नदों का जवाब दरेनरे , द्वद्भन्न द्वपरीत और कभी-कभी उल्ट सरे द्दखतरे प्रावधानदों के बीच संतुलन कायम करनरे और संद्वधान को भारतीय समाज के द्लए एक मार्गदर्शक द्तावरेज के रूप में प्र्तुत करनरे में डा . आंबरेडकर की सबसरे प्रभावी और द्नणा्थयक भूद्मका रही ।
्वतंत्रता , समता , बंधुता , नयाय , द्वद्ध का शासन , द्वद्ध के समक् समानता , लोकतांद्त्रक प्रक्रिया और धर्म , जाद्त , द्लंग और अनय द्कसी भरेदभाव के द्बना सभी वयसकतयदों के द्लए गरिमामय जीवन भारतीय संद्वधान का दर्शन एवं आदर्श है । यह सािरे शबद डा . आंबरेडकर के शबद और द्वचार संसार के बीज शबद हैं । इस शब्दों के द्नद्हतार्थ को भारतीय समाज में वयवहार में उतारनरे के द्लए वह आजीवन संघर्ष करतरे रहरे । भारत का नया संद्वधान काफी हद तक 1935 के गर्वमें्ट ऑफ इंद्डया एक्ट और 1928 के नरेहरू रिपो ्ट पर आधारित है , मगर इसको अंद्तम रूप दरेनरे के पूिरे दौर में डा . आंबरेडकर का प्रभाव बहुत गहरा था । डा . आंबरेडकर भारतीय संद्वधान की सामथय्थ एवं सीमाओं सरे भी बखूबी अवगत ररे । इस संदर्भ में उन्होंनरे कहा था द्क संद्वधान का सफल या असफल होना आद्खिकार उन लोगदों पर द्नभ्थि किरेगा , द्जन पर शासन चलानरे का दाद्यतव है । वह यह जानतरे ररे द्क संद्वधान नरे राजनीद्तक समानता तो स्थापित कर दी है , लरेद्कन सामाद्जक और आद्र्थक समानता हाद्सल करना बाकी है , जो राजनीद्तक समानता को बनाए रखनरे द्लए भी आवशयक है ।
( साभार ) iQjojh 2025 35