विचार
डा . आंबेडकर की आड़ में स्ार्थों का संधान
जगमोहन सिंह राजपूत fi
छलरे कुछ माह सरे दरेश में संद्वधान पर बहुत चर्चा हो रही है , लरेद्कन यह सतही है कयदोंद्क भारत के संद्वधान की सराहना तो पूिरे द्वशव में हुई है । इसरे ्वतंत्रता आंदोलन के समद्प्थत सरेनाद्नयदों नरे जन-आकांक्ाओं और अद्भलाषाओं की गहरी समझ के साथ तैयार द्कया । इसको शबद दरेनरे के द्लए द्जस अप्रद्तम प्रद्तभा की आवशयकता थी , वह डा . भीमराव आंबरेडकर के वयसकततव में द्मली । भावी पीद्ढ़यां और इद्तहास उनका ऋणी रहरेगा । दरेश का यह सौभागय था द्क इस उत्िदाद्यतव को द्नभानरे के द्लए डा . आंबरेडकर उपलबध ररे ।
गांधी जी सरे उनके मतभरेद ररे , पंद्डत नरेहरू और उनकी पार्टी उनको पसंद नहीं करती थी , लरेद्कन उस समय के राजनीद्तक प्टल पर ्वार्थ अनुपस्रत था । हर तरफ दरेश , दरेशवाद्सयदों और भारत के भद्वष्य की द्चंता थी । लोगदों को एक स्यक मानवीय जीवन प्रदान करनरे का लक्य ही हर तरफ लगभग सभी दलदों और नरेताओं का धयान आकद्ष्थत कर रहा था । यद्द राजनीद्त में आज जैसी तलखी हर ओर द्बखरी होती तो डा . आंबरेडकर संद्वधान सभा की प्रारूप सद्मद्त के अधयक् नहीं बन पातरे , लरेद्कन कुछ ऐसरे वयसकततव उस समय उपस्रत ररे , जो प्रद्तभा का स्मान करना जानतरे ररे और दरेश द्हत को दलगत द्हत सरे ऊपर मानतरे ररे ।
संद्वधान के द्नमा्थण में एक युग के सोच , समझ और वैचारिक सामूद्हकता का योगदान रहा । इसी कारण वह इतना सशकत बन सका ।
हालांद्क एक ऐसा काला अधयाय भी भारत के संद्वधान सरे जुड़ा , द्जसरे इद्तहास कभी भुला न पाएगा । 1975-77 के दौरान नयायालय के द्नण्थय को निरस्त करनरे के द्लए और सत्ा में बनरे रहनरे
के द्लए संद्वधान के शब्दों को ही नहीं , उसके आतमा तक को तहस-नहस कर द्दया गया था । यह उस दल नरे द्कया था , जो ्वतंत्रता आंदोलन का सारा श्रेय ्वयं लरेना चाहता रहा है । उसनरे
26 iQjojh 2025