Feb 2025_DA | Page 27

इसके द्लए इद्तहास के तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करनरे में कोई शर्म महसूस नहीं की । आज वही दल खुद को संद्वधान का सबसरे बड़ा िक्क बतानरे का दावा कर रहा है । कया भारत के संद्वधान द्नमा्थण में पंद्डत मदन मोहन मालवीय , रवींरिनाथ ्टैगोर , महातमा गांधी तथा अनय ्वतंत्रता संग्ाम सरेनाद्नयदों का वैचारिक योगदान नहीं था ?
संद्वधान के भद्वष्य को बचानरे के द्लए , उसरे संगद्ठत और समग् बनानरे के द्लए सोशद्ल््ट तथा सरेकयुलर शब्दों को आमुख में आनरे नहीं द्दया था । आपातकाल में इन दोनदों शब्दों को संद्वधान में जोड़ना इन महानुभावदों का घोर अपमान ही था । संद्वधान के प्रद्त श्द्धा भाव का प्रक्टीकरण सही मायनरे में इन ्वतंत्रता सरेनाद्नयदों के प्रद्त स्मान का भी प्रक्टीकरण है । डा . आंबरेडकर और उनके द्जन सहयोद्गयदों
आनरे सरे और उसके द्ािा प्रापत अद्धकार , सुद्वधाएं तथा धन-संग्ह की संभावनाएं वयसकतयदों पर नकारातमक प्रभाव अवशय डालेंगी । 26 नवंबर 1949 को जब संद्वधान का अंद्तम प्रारूप ्वीककृद्त के द्लए संसद में प्र्तुत द्कया गया , तब संद्वधान सभा के अधयक् डा . राजेंरि प्रसाद नरे जो भाषण द्दया , वह सद्दयदों तक लोगदों का धयान आकद्ष्थत करता रहरेगा । उन्होंनरे कहा था , ‘ दरेश का
संविधान निर्माता जानते र्े कि सत्ा के आने से और उसके द्ारा प्ापत अधिकार , सुविधाएं तर्ा धन-संग्ि की संभावनाएं वयस्तयों पर नकारातमक प्भाव अवशय डालेंगी । 26 नवंबर 1949 को जब संविधान का अंतिम प्ारूप स्ीकृति के लिए संसद में प्सतुत किया गया , तब संविधान सभा के अधयक्ष डा . राजेंद्र प्साद ने जो भाषण दिया , वह सदियों तक लोगों का धयान आकर्षित करता रहेगा ।
कया डा . राजेंरि प्रसाद का अथक परिश्म भुलाया जाना चाद्हए ? कया चरिवतमी राजगोपालाचारी की बौद्द्धकता को स्मान नहीं द्मलना चाद्हए ? इन मनीद्षयदों नरे भारत के
नरे संद्वधान सभा में बैठकर दरेश के भद्वष्य का मार्ग द्नधा्थिण द्कया , वह निश्चित ही द्वशरेष ककृतज्ता के अद्धकारी हैं ।
डा . आंबरेडकर नरे दरेश को जोड़नरे का प्रयास द्कया , अनयाय सरे हर द्कसी को मुकत करनरे का मार्ग सुझाया । उन्होंनरे द्सखाया द्क प्रत्येक मनुष्य हर दूसिरे मनुष्य को अपनरे समकक् ्ति पर आदर और स्मान प्रदान किरे । वह लोग जो जाद्त , उपजाद्त या द्कसी भी अनय प्रकार के वगमीकरण द्ािा उनका नाम लरेकर अपनरे पक् में कुछ मतदाता बढ़ा लरेनरे का प्रयास करतरे हैं , उनहें सुसंस्कृत नहीं माना जा सकता , भलरे ही वह द्कसी भी पद पर हदों । ऐसरे लोग समाज के द्हतैषी तो नहीं ही मानरे जाएंगरे । द्जस दरेश की संस्कृद्त ‘ ईशवि अंश जीव अद्वनाशी ’ का संदरेश दरेती हो , जहां आयु और अनुभव के प्रद्त आदर और स्मान करना बचपन सरे ही द्सखाया जाता रहा हो , वहां डा . आंबरेडकर जैसरे पद्वत्र नाम का उपयोग क्ुरि राजनीद्तक ्वार्थ के द्लए द्कया जाना द्कसी बड़े सांस्कृद्तक पतन की ओर ही इंद्गत करता है ।
संद्वधान द्नमा्थता जानतरे ररे द्क सत्ा के
कलयाण उस रीद्त पर द्नभ्थि किरेगा , द्जसके अनुसार दरेश का प्रशासन द्कया जाएगा । दरेश का कलयाण उन वयसकतयदों पर द्नभ्थि किरेगा , जो दरेश पर प्रशासन करेंगरे । यह एक पुरानी कहावत है द्क दरेश जैसी सरकार के योगय होता है , वैसी ही सरकार उसरे प्रापत होती है ।’
डा . राजेंरि प्रसाद नरे दरेश में सांप्रदाद्यक भरेद , जाद्तगत भरेद , भाषा तथा प्रांतीयता के भरेद और इसी प्रकार के अनय भरेददों का भी उल्लेख द्कया । उन्होंनरे अपरेक्ा की द्क , ‘ इसके द्लए हमें ऐसरे दृढ़ चरित्र वयसकतयदों दूरदशमी लोगदों और ऐसरे वयसकतयदों की आवशयकता है , जो छो्टे-छो्टे समूहदों और क्रेत्रदों के द्लए पूिरे दरेश के द्हतदों का परितयाग न करें और जो इन भरेददों सरे उतपन्न हुए पक्पात सरे पिरे हदों । हम केवल आशा ही कर सकतरे हैं द्क इस दरेश में ऐसरे लोग बहुत द्मलेंगरे ।’ अफसोस द्क आज दरेश में हमें ऐसरे लोग आवशयक संखया में नहीं द्मल रहरे हैं । छो्टे-छो्टे ्वारथों के द्लए दरेश द्हत को पीछे छोड़नरे वालरे दरेश की प्रगद्त और द्वकास के रास्ते के अवरोधक बन रहरे हैं ।
( साभार ) iQjojh 2025 27