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जाना होगा । भारत के दर्शन को बीसवें दशक में बरिीशाह जैसरे द्वद्ानदों नरे दुद्नया के सामनरे पुनः लानरे का काम द्कया । उन्होंनरे कास्ट के
अर्थ में जाद्त के अर्थ को नकारतरे हुए कहा द्क द्हनदु्रान में रहनरे वालरे सभी एक जाद्त के हैं और अंग्रेज द्भन्न जाद्त है । वह दरेश के अर्थ को समझातरे हुए वह कहतरे है द्क दरेश का अर्थ होता है द्क पृथवी का ऐसा भाग द्जसमें कोई जाद्त सनतान रूप सरे बसी हुई है अर्थात ऐसरे स्बनध सरे है जो उस भूद्म के अद्तरिकत और द्कसी भूद्म सरे ना हो सके । वह कहतरे हैं द्क कोई दरेश तब तक दरेश नहीं , जब तक उस दरेश में रहनरे वाली जाद्त का अपनरे दरेश के प्रद्त मां और संतान जैसा संबंध ना हो । उन्होंनरे दैद्शक शा्त्र के पृष्ठ संखया-16 में ' जाद्त शबद का अर्थ ' में पसशचम
की उस जाद्त परिभाषा को नकार द्दया , द्जसमें पसशचम का मानना है द्क एक मत-एक रीद्त को माननरेवालरे , एक भाषा बोलनरे वाला , एक राजय के अधीन रहनरे वाला जन समुदाय जाद्त है । बसलक वह कहतरे हैं द्क जाद्त का पता तो जन समुदाय के प्राककृद्तक एकतव सरे ही तय द्कया जा सकता है । मानव एक जाद्त है कयदोंद्क प्रककृद्त उसकी समान है । उसके जनम-मृतयु सभी तो एक है द्फि यह भरेद क्यों ?
संत िद्वदास नरे भी तो यही कहा है द्क जात- पात के फेर मद्ह , उिद्झ रहइ सब लोग । मानुषता कूं खात हइ , रैदास जात कर रोग II अर्थात संत िद्वदास कहतरे हैं द्क जाद्त-पांद्त के चककि में यह संसार पड़ा रहता है । यह जाद्त-पांद्त का द्वचार पूरी मानवताको ही समापत कर रहा है । इसी तरह ्वामी द्ववरेकाननद भी जाद्त के दैद्शक अर्थ जो अपनरे भारत का है , उसका अर्थ बतातरे हुए कहतरे हैं द्क जब तक द्हनदू जाद्त अपनरे पूर्वजदों की द्विासत को नहीं भूलती , तब तक धरती की कोई भी शसकत उनहें नष््ट नहीं कर सकती । इसीद्लए वीर सावरकर नरे भारत को द्हनदू जाद्त के अरथों में ही स्पष्ट करनरे का प्रयास द्कया । इसके बाद भी भारत में जाद्त का अर्थ धीिरे-धीिरे संकुद्चत होता चला गया और आज द्हनदू समाज के भीतर 6700 जाद्तयदों का समूह बन गया है । प्रत्येक जाद्त में द्कतनी ही उप-जाद्त और द्फि उन जाद्तयदों में भी जाद्त है । इन सभी नरे संगद्ठत द्हनदू समाज के भीतर तमाम प्रकार की द्वद्भन्नता को पैदा द्कया है , लरेद्कन द्हनदू समाज की द्वशालता नरे इसरे भी अपनरे भीतर समाद्हत द्कया है । समाज में सबको साथ लरे चलनरे की वृत्ति नरे द्हनदू समाज को पहलरे सरे ही काफ़ी प्रगद्तशील बनाया है । इसी का परिणाम है द्क द्हनदू समाज नरे बार-बार अ्पृशयता जैसरे कुककृतय को कभी नहीं ्वीकारा और इस समाज को द्वशरेष सुद्वधा द्मलरे इस द्वचार को भी अपनाया ।
सब जानतरे हैं द्क जाद्त भारत की एक सतयता है और इस जाद्त के आधार पर उतपीड़न भी एक हकीकत है , द्जसरे कभी भी नकारा नहीं जा सकता है । समाज में सम्या तो है अगर सम्या है तो उसके समाधान की ओर भी बढ़ना ही
होगा , कही कुछ ग़लत हुआ तो उसका परिणाम भी भुगतना ही होगा । इसीद्लए संद्वधान द्नमा्थताओं नरे प्रद्तद्नद्धतव की बात द्क द्जसरे आिक्ण के रूप में दरेखा जा सकता है । भारत में आिक्ण अंग्रेज़ी शासनकाल में प्रारंभ हुआ । 1852 के दौरान भारतीय नागरिकदों को अंग्रेज़ी नौकरियदों में आिक्ण अर्थात प्रद्तद्नद्धतव द्दया गया । 1912 में मुस्लम वर्ग द्ािा मांगरे जानरे पर अंग्रेज़ी शासन नरे द्वधाद्यका एवं ्रानीय द्नकायदों में मुस्लम प्रद्तद्नद्धतव द्दया जो बाद में द्सख , पारसी , एंगलो आद्द तक होतरे-होतरे 1932 में पूना पैक्ट द्ािा द्हनदू समाज के भीतर सामाद्जक भरेदभाव सरे पीड़ित समाज हरेतु भी प्रद्तद्नद्धतव की वयव्रा तक जा पहुंचा । ्वतंत्रता के बाद संद्वधान के द्ािा प्रद्तद्नद्धतव की मांग को संद्वधान का हिस्सा बनाया गया और द्वधाद्यका सरे लरेकर प्रशासन तक सभी ्रानदों में प्रद्तद्नद्धतव को सुनिश्चित द्कया गया ।
भारत की राजनीद्त में अपनरे प्रारंभ के काल सरे ही जाद्त और उस आधार पर होनरे वाली राजनीद्त का बोलबाला रहा है । भारत में ्वतंत्रता के पहलरे भी दक्षिण में जस्टिस पार्टी थी , तो भारत के उत्िी छोर पर आर्य समाजी नरेता ्वामी अछूताननद द्ािा समाज के अ्पृशय मानरे जानरे वालरे वगथों के प्रद्तद्नद्धतव की मांग की जा रही थी । साथ ही जा्टव मेंस एसोद्सएशन के नरेता धर्मवीर जा्टव जैसरे नरेता अ्पृशय समाज के भीतर द्शक्ा के प्रसार-प्रचार पर कम कर रहरे ररे । ज्योतिबा फुलरे , साहूजी महाराज , महादरेव गोद्वनद रानाड़े आद्द महाराष्ट्र में इस काम कर रहरे ररे और इसी प्रकार सरे आद्द-धममी आनदोलन हो रहा था । आद्द-कना्थ्टक , आद्द-आंध्र के रूप भगगया िरेड्ी वर्मा एवं पंजाब में बाबू मंगूराम आद्द नरे जाद्त संगठन और उनके आकांक्ाओं को उभारनरे का काम द्कया । ्वतनत्र भारत में बाबा साहब आंबरेडकर इस सािरे सहभागी आनदोलन के मुखय सूत्रधािदों में एक ररे । लरेद्कन अचछी यह बात थी द्क स्पूण्थ समाज भी इसके पक् में था । आज द्फि जाद्त पर बहस है तो सरकार को आम जन भावनाओं को दरेखतरे हुए कोई ना कोई हल तो अवशय सोचना ही होगा । �
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