Feb 2025_DA | Page 24

चिंतन

जाति से जुड़े प्रश्न

डा . प््ेश कुमार

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रत में जाद्त और उस आधार पर होनरे वाली राजनीद्त का आि्भ आज सरे हुआ है , ऐसा द्बलकुल भी नहीं है । यह अलग द्वषय है द्क दुद्नया नरे द्कस-द्कस अर्थ में जाद्त को समझा है । जहां राष्ट्रीय ्वयंसरेवक संघ के सं्रापक डा . केशवराव बलीराम हरेडगरेवार कहतरे हैं द्क ' द्हनदू एक जाद्त है ', वही कुछ लोग द्हनदू के भीतर वयापत असमानता को आधार बनाकर जाद्त की द्भन्न-द्भन्न अवधारणा को प्र्तुत करतरे हैं । ' द्हनदू एक जाद्त है ' इसकी मानयता वषथों सरे इस दरेश में रही है , द्जसका आधार मौद्लक भी है । जब हम एक जैसरे आचार -द्वचार को मानतरे है तो द्फि कोई बड़ा और कोई छो्टा कैसरे हो सकता है ।
जाद्त को लरेकर समाजशा्त्री रिजलरे मानतरे है द्क जाद्त ऐसरे परिवािदों या परिवार समूह का संग्ह है , द्जनके समान नाम हैं और जो अपनी जाद्त की उतपद्त् द्कसी पौराद्णक या ऐद्तहाद्सक वयसकत सरे मानतरे हो , जो एक ही पुशतैनी वयवसाय करनरे का प्रदर्शन करतरे हो । द्जनहें ऐसरे सभी दूसिरे वयसकत जो इस संबंध में राय दरेनरे के अद्धकारी हो , वह इनहें एक समाजी द्बिादरी मानतरे हो । रिजलरे मानतरे है द्क वयवसाय भी जाद्त को परिभाद्षत करती है । वही समाजशा्त्री केतकर मानतरे है द्क जाद्त एक ऐसा सामाद्जक समूह है , द्जसकी दो द्वशरेषता है । पहली द्जसमें वही सद्य हो सकतरे हैं , जो द्कसी सद्य के बरे्टे हो और इसमें ऐसरे सभी वयसकत शाद्मल है जो इस प्रकार जन्मे हैं । वही दूसिरे अर्थ में केतकर कहतरे हैं द्क द्जसमें सद्य ऐसरे सामाद्जक कानून के जरिए इस समूह के बाहर द्ववाह नहीं कर सकतरे । इसी प्रकार सरे बरेतली मानतरे हैं द्क जाद्त एक खंद्डत वयव्रा है । इसका अर्थ है द्क लोग द्वद्भन्न संदभथों में अपनरे आपको द्वद्भन्न श्रेद्णयदों की इकाइयदों का सद्य समझतरे हैं । कैथलीन
गफ़ के अनुसार जाद्त जनम स्थिति के आधार पर उच् एवं द्नम्न पद वालरे समूह होतरे हैं , जो आमतौर पर अंतद्व्थवाही होतरे हैं तथा एक परेशरे के साथ जुड़े होतरे हैं ।
डा . भीम राव आंबरेडकर नरे जाद्त को लरेकर तमाम द्सद्धांतदों का अधययन कर माना है द्क जाद्त के द्नमा्थण का आधार परेशरे , खान-पान आद्दसरे अलग जाद्त सववोच्ता अहम कारण है । वहीं माइकल फूको नरे शसकत को लरेकर अपनरे द्सद्धांत में बताया है द्क मानवीय प्रवृत्ति है द्क वह शसकत को अपनरे भीतर रखना चाहता है । जाद्त की अवधारणा को इस अर्थ में भी समझा
जा सकता है , द्जसके पास शसकत है , वह उसरे भोग करता है और द्जसके पास नहीं है , वह शसकत को प्रापत करनरे के द्लए संघर्ष करता है । पसशचम की द्चनतनधारा नरे भारत के जाद्त द्वचार के अर्थ को काफ़ी हद तक खंद्डत द्कया है । पसशचम का समाज कबीलदों में रहनरे वाला समाज रहा है , द्जसरे हम कलैन भी कहतरे है । यही कलैन पूर्व में कास्ट के रूप में चिन्हित हुए हदोंगरे ।
कास्ट पुर्तगाली शबद है जो न्ल , वंश एवं वर्ग के रूप समझा जाता है । अब यह भारत के परिपरेक्य में कैसरे समझा जाए , यह बहुत जद््टल है । इसके द्लए अपनरे भारतीय दर्शन की और
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