Feb 2025_DA | Page 23

या स्ान का पर्व नहीं , बसलक समाज के सुधार , सामाद्जक समरसता और आधयासतमक उन्नद्त का महतवपूर्ण मंच है । कुंभ मरेला भारतीय संस्कृद्त की धरोहर है , जो प्रत्येक पीढ़ी को अपनी जड़दों सरे जुड़नरे का अवसर प्रदान करता है । यह मरेला भारतीय संस्कृद्त और समाज के द्लए एक अद्भुत अवसर है , जहां सम्त समाज के समक् कई महतवपूर्ण सम्याओं का समाधान प्र्तुत द्कया जाता है । वा्तव में सामाद्जक समरसता के माधयम सरे एक भरेदभावमुकत समाज का द्नमा्थण द्कया जा सकता है । यह एक ऐसी सामाद्जक दशा है , द्जसमें भरेदभाविद्हत मानव समाज एक
साथ आचार-वयवहार करता हुआ जीवनयापन करता है और उसमें द्कसी भी प्रकार की आपस में दीवार नहीं होती है । मानव समाज के सभी वगथों की आपस में एकता एवं स्बद्धता को स्थापित करके उनको सुख-शासनत प्रदान करनरे में सहायक होनरे के कारण सामाद्जक समरसता में द्वषमता के लक्ण नहीं पाए जातरे हैं ।
जाद्तवाद एवं वर्गवाद राष्ट्रीय एकता में बड़े बाधक है । प्रांतीयता एवं भाषायी भावना भी एक अवरोध है । इसद्लए दरेश के नागरिकदों में राष्ट्र प्ररेम जगानरे , उनमें पि्पि एकता , सामाद्जक समरसता , संगठन की भावना का द्वकास द्निंतर
बनाए रखना बहुत आवशयक है । राष्ट्रीय एकता एक ऐसी भावना है जो सभी लोगदों में मानद्सक एवं वयवहारिक स्थिति है , द्जसरे वह अपनरे द्वचार , द्वशवास एवं मानयताओं सरे जोड़तरे हैं और राष्ट्र के प्रद्त द्नष्ठा रखतरे हुए राष्ट्र कलयाण के द्लए कार्य करतरे हैं । राष्ट्रीयता और पि्पि भाईचािरे की भावना सभी प्रकार की द्वद्भन्नतदों जैसरे- धाद्म्थक , वैयसकततव , ्रानीय , जातीय , भाषा स्बंधदों का विस्मरण एवं बद्हष्काि करनरे में सहायक होती है । महाकुंभ मरेला भी सनातन धर्म का वह अद्भन्न अंग है । यहां जाद्तयदों का भरेद खतम हो जाता है । करोड़ों लोग एक ध्येय-एक द्वचार सरे जुड़ जातरे हैं । एक ही घा्ट पर अलग- अलग क्रेत्रदों एवं जाद्तयदों को स्ान सनातन की समरसता का संदरेश दरेता है । वा्तव में कुंभ परंपरा सनातन की सामाद्जक समरसता , समानता , प्रककृद्त सरे सामंज्य , मानव कलयाण की कामना जैसरे गुणदों का उदघोष करनरे का माधयम है ।
महाकुंभ मरेला केवल द्सफ्क धाद्म्थक उतसव नहीं , बसलक एक द्दवय महोतसव है , कयदोंद्क यहां सब समान और सबका स्मान है । यह मरेला मानवता के उच्तम आदशथों का प्रतीक है , जो बताता है द्क सच्ी पूजा और धर्म वही है , जो दूसिदों के कलयाण के द्लए काम किरे । यहां आकर श्द्धालु केवल आधयासतमक उन्नद्त नहीं करतरे , बसलक एक-दूसिरे की मदद करनरे और समाज में सकारातमक बदलाव लानरे का संकलप भी लरेतरे हैं । सनातन की समरसता और सबको जोड़नरे , सबको साथ लरेकर चलनरे तथा सबके कलयाण की कामना के द्लए महाकुंभ जैसरे आयोजन के द्चंतन के गुणदों का ही शंखनाद करती है । संगम त्ट पर आ्रा एवं अधयातम के साथ सामाद्जक समरसता की झलक दरेखनरे को द्मल रही है । महाकुंभ के निश्चित अवद्ध वाला समागम सनातन के सभी दर्शन के द्मलन , संवाद , वैचारिक द्चंतन की परंपरा सनातन की दृसष््ट की तरफ द्वशव का धयान आककृष््ट करता रहरेगा । अंत में यह कहना गलत नहीं होगा द्क मानव समाज में गद्तशीलता एवं द्निनतिता के द्लए सामाद्जक समरसता ही एकमात्र द्वकलप है । �
iQjojh 2025 23