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होतरे हैं जो सामाद्जक समरसता और संपूर्ण भारत राष्ट्र की एक सूत्र बद्धता में द्नद्हत है ।
प्रयागराज में महाकुंभ गत 14 जनवरी सरे आरंभ हुआ था , जो 26 फरवरी तक चलरेगा । भारत के प्रत्येक क्षेत्र और परंपरा के संतदों के साथ दरेश-द्वदरेश के करोड़दों लोग महाकुंभ पहुंच कर मां गंगा को प्रणाम कर श्द्धा भाव सरे डुबकी लगाकर ्वयं को भागयशाली समझ रहरे हैं । भारत की सामाद्जक वयव्रा की झलक भी कुंभ मरेलरे में दरेखी जा सकती है । भारतीय समाज जीवन द्कतना समरस है , इसका दर्शन भी महाकुंभ में हो रहा है । प्रयागराज के महाकुंभ में करोड़दों श्ृद्धालु गंगा और संगम में स्ान करतरे हुए द्दखाई दरेतरे हैं । इनमें दरेश के प्रत्येक समाज ,
जाद्त , वर्ग के लोग हैंI धनी भी हैं तो द्नध्थन भी , वनवासी भी हैं तो ग्ामवासी भी , दद्लत भी हैं तो द्पछड़े-वंद्चत भी , नगरवासी भी हैं तो द्वदरेशी भी । इसके बाद भी महाकुंभ में सभी सहयोगी हैं । सभी एक-दूसिरे का सहयोग करतरे हुए डुबकी लगातरे हुए द्दखाई दरेतरे हैं । द्कसी भी तरह का भरेदभाव नहीं द्दखाई दरेता । न तो द्कसी की जाद्त पूछी जाती है और न ही कोई द्कसी की झलकती अमीरी या गरीबी को दरेखकर कोई मुंह फेरता है । सभी हर-हर गंगरे का उदघोष लगाकर डुबकी लगातरे हुए एकरस में डूबरे हुए द्दखाई दरेतरे हैं ।
भारतीय समाज जीवन का यही समरस ्वरूप उसकी वास्तविकता है जो महाकुंभ में साक्ात हो रही है । महाकुंभ में समाज जीवन
की समरसता के जो दर्शन होतरे हैं , वहीं दर्शन संपूर्ण भारत राष्ट्र की एकरूपता के होतरे हैं । अंग्रेजीकाल में जाद्त , वर्ग , भाषा और भूषा के आधार पर जो द्वभाजन की िरेखा खींची गई , वह दरेश में ्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी दरेखी जा सकती है , लरेद्कन महाकुंभ में स्ान के द्लए आनरे वालरे श्द्धालु जाद्त , वर्ग , भाषा , भूषा और आद्र्थक आधार पर होनरे के भरेदभाव सरे द्वित होकर सामूद्हकता के भाव को प्रदद्श्थत करतरे हुए द्दखाई दरेतरे हैं । गंगा में डुबकी लगानरे में सब एक ्वरूप-एक सूत्र में द्पिोयी हुई माला के रूप में होतरे हैं जो भारत की सामाद्जक , सांस्कृद्तक और सार्वभौद्मकता का ्वरूप है । सववे भवनतु सुद्खनः ,’ सववे सनतु द्निामयाः पर
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