पूरब सरे पसशचम राज्यों तक जाद्तगत मसीहा बनकर सत्ा का सुख लरेनरे वालरे अयोगय राजनरेता , राजनीद्तक दल एवं संघठन का एक ऐसा जमावड़ा लग गया , द्जसनरे दरेश और जनता का नुकसान करनरे में कोई कसर बाकी नहीं रखी । दरेश की सत्ा में अपनरे मुस्लम , वामपंथी और जाद्तगत आधार पर राजनीद्त में पैर ज़मानरे वालरे नरेताओं के सहािरे कांग्रेस नरे केवल सत्ा का सुख नहीं भोगा , बसलक जनद्हतदों के नाम पर दरेश की जनता के संसाधनदों की द्नल्थज्जतापूर्ण ढंग सरे जमकर लू्टनरे में कसर नहीं छोड़ी ।
द्कसी समय दरेश के समग् द्वकास में अपनी अहम् भूद्मका द्नभानरे वालरे दद्लत समाज पर यद्द वा्तव में धयान द्दया जाए तो यह कहना कहीं सरे भी अनुद्चत नहीं लगता द्क यह वह समाज है द्जसनरे लगभग आठ सौ वषथों तक द्वदरेशी मुस्लम आरिांताओं को झरेला , पर समझौता नहीं द्कया । इसके उपरांत अंग्रेजी शासकदों नरे दद्लतदों का उपयोग अपनरे द्हतदों के द्लया द्कया । जब दरेश ्वतंत्र हुआ तो दद्लतदों का भागय द्लखनरे का काम कांग्रेस और उसके सहयोद्गयदों नरे अपनरे हारदों में लरे द्लया । कहनरे के द्लए आिक्ण को एक ऐसरे हद्रयार के रूप में दरेखा गया था , द्जससरे दद्लत अपनरे भागय और सामाद्जक स्थिति का द्नण्थय ्वयं कर
सकेंगरे और अपनरे हालात को सुधार कर द्वकास की मुखय धारा के साथ कदम सरे कदम द्मलकर चल पाएंगरे । लरेद्कन ऐसा नहीं हुआ ।
डा . आंबेडकर , संविधान और आरक्षण
यद्द डा . आंबरेडकर द्ािा संिक्ण के रूप में संद्वधान का सहारा नहीं द्मला होता तो दद्लत समाज की स्थिति भयावह एवं दयनीय होती । ऐसरे में दद्लत समाज को यह समझना ही होगा द्क वह महज वो्ट बैंक नहीं है और न ही उनका उपयोग केवल चुनाव में जीत या हार अथवा सत्ा की हवस द्म्टानरे के द्लए द्कया जा सकता है । इसके अलावा दद्लतदों को उन अनरेकदों अवसरवादी एवं स्वहित तक सीद्मत रहनरे वालरे नरेताओं सरे भी अब होद्शयार रहनरे की जरुरत है जो उनहें सपनरे द्दखाकर अपनरे द्हतदों की पूद्त्थ करतरे है और ऐसरे ही नरेता अब ‘ दद्लत-मुस्लम गठजोड़ ’ का नया राग सुनकर दद्लतदों का द्फि सरे उपयोग करनरे के अवसर की प्रतीक्ा में हैं । इसके द्लए मुस्लम समुदाय द्हंसा और उतपीड़न का सहारा भी लरे रहा है । मुस्लम बाहुलय क्रेत्रदों में रहनरे वालरे दद्लतदों पर अतयाचार और दबाव बनाकर उनहें मुस्लम धर्म अपनानरे के द्लए बाधय द्कया जा रहा है ।
दद्लत समाज को एकद्त्रत करनरे एवं उनका राजनीद्तक एवं सामाद्जक क्रांतियदों में उपयोग करनरे की मानद्सकता सरे दरेश में बड़े-बड़े आंदोलन चलरे । डा . आंबरेडकर के नरेतृतव में हुए आंदोलन को छोड़ द्दया जाए तो राष्ट्रद्पता महातमा गांधी का भी दद्लत आंदोलन ्वतंत्रता अथवा ्वसत्ा प्रासपत के उद्देशय सरे अलग नहीं था । तदोपरांत जो भी आंदोलन हुए चाहरे उत्ि भारत का दद्लत आंदोलन , चाहरे दक्षिण भारत का दद्लत आंदोलन अथवा द्वद्भन्न राजनीद्तक दलदों का दद्लत आंदोलन , सब का एक ही उद्देशय ‘ सत्ा पल्ट या सत्ा की प्रासपत ’ था । डा . आंबरेडकर का एक मात्र एक ऐसा दद्लत आंदोलन था , जो दद्लत वर्ग के वास्तविक द्वकास , उनहें मानवाद्धकार द्दलानरे एवं उनका आद्र्थक एवं शैक्षणिक सशसकतकरण था ।
्वतंत्रता द्मलनरे सरे पहलरे दद्लत समाज अपनी सम्या सरे जूझ रहा था और उस दौरान दद्लत समाज की द्चंता अपनी सम्याओं के समाधान सरे जुडी हुई थी , पर ्वतंत्रता आंदोलन के कारण दद्लत समाज नरे सब पहलरे दरेश की द्चंता की और आंदोलन सरे जुड़ कर उसरे सफल बनानरे में अपना योगदान द्दया । लरेद्कन ्वतंत्रता द्मलनरे के बाद दद्लत समाज के कलयाण के नाम पर होनरे वालरे आंदोलन में राजनीद्त का ऐसा घालमरेल हुआ , द्जसकी वजह सरे दद्लत समाज का कलयाण पीछे छू्ट गया और सत्ा हाद्सल करनरे का लक्य ही आंदोलनदों की प्रारद्मकता बनता चला गया । परिणाम यह द्नकला द्क ्वतंत्र भारत में होनरे वालरे अनरेक दद्लत आंदोलन का कोई द्वशरेष परिणाम सामनरे नहीं आया और दद्लत समाज अपनरे सशसकतकरण के द्लए उन कद्रत राजनरेताओं की दया पर आश्रित रहा , द्जन्होंनरे दद्लत समाज को बड़े-बड़े सपनरे द्दखा कर सत्ा के द्लए इस्तेमाल द्कया । सत्ा की भूख के द्लए द्कयरे गए ऐसरे आंदोलनदों सरे दरेश के दद्लत समाज को द्फलहाल कोई भला नहीं हो पाया । दद्लतदों के द्वरुद्ध होनरे वालरे उतपीड़न और अपराधदों में मुस्लम समुदाय की संद्लपतता को अभी तक अनदरेखा द्कया जाता रहा है ।
इन परिस्थितियदों के बीच में कांग्रेस के नरेता जब डा . आंबरेडकर , संद्वधान , आिक्ण , जाद्त जनगणना एवं द्हंदुतव पर प्रश्न खड़ा करके दरेशवाद्सयदों को भ्रद्मत करतरे हुए एक सुद्नयोद्जत रणनीद्त के तहत सत्ा पानरे का ्वप्न दरेख रहरे हैं , तो यह गलत नहीं लगता द्क उनके द्लए सत्ा ही सब कुछ हैं और सत्ा हाद्सल करके वह अपना द्हत और दरेश का द्वनाश करनरे के जुगाड़ में लगरे हुए हैं । कांग्रेस के पास दरेश द्हत , द्हनदू द्हत और द्वकास सरे जुड़े प्रश्नदों का न तो पहलरे कोई उत्ि था और न ही अब भी उनके पास को स्टीक उत्ि है । ऐसी स्रत में उनके पास अपनरे ्वारथों को पूरा करनरे के छल , झूठ , प्रपंच और गुमराह करनरे वाली राजनीद्त ही शरेष बचती है , द्जसका प्रदर्शन कांग्रेस और उनके वामपंथी सहयोगी संसद सरे लरेकर सड़क तक लगातार करतरे आ रहरे हैं । �
iQjojh 2025 19