Feb 2025_DA | Page 16

कवर स्टोरी

की भूद्मका की अनदरेखी की जाती रही । वर्तमान काल में अद्धकतर नरेता दद्लत-मुस्लम राजनीद्तक गठजोड़ के नाम पर " जय भीम-जय मीम " के नािरे को लगतरे हुए द्दखाई दरेतरे हैं । यह द्सलद्सला 2014 में उस समय प्राि्भ हुआ जब केंरि में प्रधानमंत्री नरेंरि मोदी के नरेतृतव में दद्लतदों , द्पछड़दों और गरीबदों के सर्वकलयाण के द्लए समद्प्थत भाजपा सरकार नरे सत्ा संभाली थी । केंरि में भाजपा सरकार का गठन होनरे के बाद सरे लगातार दरेश में दद्लत-मुस्लम राजनीद्तक गठजोड़ के द्लए प्रयास द्कयरे जा रहरे है । दद्लत- मुस्लम राजनीद्तक गठजोड़ के इस राग को हवा दरेनरे का काम वह वामपंथी संगठन और वामपंथी बुद्विजीवी कर रहरे हैं , द्जनके द्लए भारत की एकता और अखंडता कोई मायनरे नहीं रखती है ।
भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को द्मल रहरे दद्लत समाज के समर्थन को समापत करनरे के द्लए मुस्लम समुदाय , मुस्लम संगठन , ईसाई द्मशनरियां , वामपंथी संगठन और वामपंथी बुद्द्धजीवी भी बड़ी तीव्र गद्त सरे सक्रिय हैं । यह सभी दद्लत एवं कमजोर समाज को उनकी सामाद्जक द्वषमता को दूर करनरे के नाम पर भ्रद्मत करनरे में पूरी ताकत सरे जु्टे हैं । वैसरे यह सव्थद्वद्दत है द्क द्जस समाज में लोग द्कसी
एक धर्म के अनुयायी होतरे हैं , वह जाद्त जैसरे आधार को लरेकर कोई द्वशरेष सम्या नहीं होती है , द्कनतु भारत में अनय पंरदों एवं स्प्रदायदों नरे अपनरे को बलपूर्वक अथवा छलपूर्वक द्हनदू धर्म को चो्ट पहुंचानरे या खंद्डत करनरे के प्रयास अवशय द्कए हैं ।
हिन्दू विरोधियों ने बनाई जाति वय्स्था
द्हंदू सामाद्जक वयव्रा में सबसरे द्नचलरे पायदान पर स्रत अ्पृशय समझी जानरे वाली जाद्तयदों को भारतीय संद्वधान में अनुसूद्चत जाद्त नाम सरे जाना जाता है । वैद्दक काल के साद्हतय या धर्म ग्रंथों में कहीं भी दद्लत शबद नहीं पाया जाता है । दरेश के प्राचीन इद्तहास पर द्वहंगम दृसष््ट डाली जाए तो वर्तमान द्हनदू जीवन पद्धद्त का स्वर्णिम युग वैद्दक काल था । उस काल में द्हनदू , द्हंदुतव और द्हनदु्रान अपनी पराकाष्ठा पर था , साथ ही अधयातम ज्ान और भौद्तक द्वज्ान भी अपनरे उतकष्थ पर था । ततकालीन समाज में जाद्तयदों का कोई अस्ततव नहीं था । उत्ि वैद्दक काल में समाज के जद््टल होनरे के साथ-साथ वर्ण के गुण धर्म को ्वीककृद्त प्रापत हुई और धीिरे धीिरे वणथों का द्वकास हुआ जो कालांतर में वर्ण वयव्रा के रूप में प्रभावी
हुआ । उस समय कार्य द्वशरेष के द्लए कौशल प्रापत करना सामानय जन के द्लए अपनरे परिवार और कु्टुंब में ही संभव था , द्जसके परिणाम्वरूप वंशानुगत कायथों पर आधारित जाद्तयां भी अस्ततव में आई । जाद्तयदों की संखया कर्मानुसार सीद्मत थी और एक ही वर्ण में कई जाद्तयां समाद्हत थी ।
डा . आंबरेडकर की पु्तक " अछूत कौन और कैसरे " के पृष्ठ संखया-99 के अनुसार मनुकाल में भी भारतीय द्हनदू समाज के अंदर अ्पृशयता नहीं थी और न ही शूरि अ्पृशय ररे । समय परिवर्तन के साथ उत्ि वैद्दक काल में सनातन धर्म में मौद्लक गुणदों के ्रान पर वयैसकतक द्हतदों को संतुष््ट करनरे वालरे मानवीय गुणदों को प्रश्य द्दया जानरे लगा , द्जससरे कुछ द्वककृत मानयताएं उतपन्न हो गयी । यज् की प्रधानता स्थापित होनरे के साथ ही द्हनदू जीवनशैली में शुद्धता एवं ्वचछता को अद्धक महतव द्दया जानरे लगा । एक ही परिवार में चािदों वर्ण के लोग सद्य होतरे ररे । कार्य के आधार पर ही दृढ़ता के साथ वर्ण सुनिश्चित था । वयवसाय बदलनरे के साथ वर्ग बदलनरे की भी वयव्रा थी । मधयकाल के पहलरे तक द्हनदू समाज में न तो अ्पृशयता का प्रादुर्भाव हुआ ता और न ही द्हनदू समाज में दद्लत जैसी कोई जाद्त या वर्ग था ।
16 iQjojh 2025