इस समञाज में सि-श्रे्ठतञा कञा एक आडंबर रच रखञा है । फिर चञाहे वह कितनञा ही पढ़ा लिखञा हो यञा अनपढ़ यञा फिर सञामञावजक- रञाजनीतिक रूप से कितने ही बड़े पद पर हो यञा फिर जञावत कञा घमंड लेकर बैठञा हो ।
मवहिञाओं पर हुए अत्याचञारों कञा इतिहञास इतनञा छोटञा नहीं है कि हमञारी सोच भी वहञां तक पहुंच सके । हमञारी सोच से भी परे कई गहरञाइयों तक इनके घञािों के दर्द कञा परिमञाप फैिञा हुआ है । यह घञाि और इनके सञाथ किए जञाने िञािे भेदभञाि क्या सिर्फ दु्कमषों तक सीमित है ? नहीं ! बषलक यह तो शिक्षा हो , रञाजनीति हो , नौकरी हो , सञामञावजक सम्मान हो यञा फिर नेतृति देने की बञात हो , हर जगह
दलित एवं वंचित वर्ग के सञाथ एक न दिखञाई देने िञािी दूरी बनञा ली जञाती है । जञावत , वर्ग और लिंग के तिहरे भेदभञािों कञा तंज झेलती दलित मवहिञा रोज़ किसी न किसी तरह के उतपीड़न कञा शिकञार हो रही हैं । बञाबञा सञाहब की विचञार सममवत थी कि इंसञान सिर्फ समञाज के विकञास के लिए ही पैदञा नहीं हुआ है , बषलक सियं के विकञास के लिए पैदञा हुआ है । लेकिन क्या हम बञाबञा सञाहब के इस विचञार को 21वीं सदी में भी सफल बनञा पञाए ? भञारत में यदि दलित मवहिञाओं की प्रगति एवं विकञास के सञामञानय संकेतकों-शिक्षा , रोजगञार , स्वासथय , भूमि एवं समपवत् अधिकञार और रञाजनीतिक प्रतिनिधिति के आंकड़े बड़ी ही दुःखद षसथवत
को सञामने रखते हैं I
किसी समञाज की प्रगति को मञापने के लिए बञाबञा सञाहब कञा मञाननञा थञा कि उस समञाज में मवहिञाओं की प्रगति के प्रतिमञानों को नञाप लियञा जञाए । आज भी भञारत में दलित मवहिञाओं की पूरी जनसंख्या के आधे से भी कम मवहिञाएं पढ़ी-लिखी हैं I लगभग आधे दलित बच्चे प्रञाथमिक शिक्षा भी पूरी नहीं कर पञाते I इनमें भी लगभग सिञा्यवधक संख्या दलित लड़कियों की होती है I 21वीं सदी में भी मात्र बीस प्रतिशत दलित बेटियञां ही उच्च शिक्षा में नञामञांकन करञा पञा रही है I यह वसफ़्क विसमयकञारी ही नहीं , बषलक एक चिंतञाजनक आंकड़ा है । �
iQjojh 2024 33