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दलित महिलाओं की स्थिति अभी भी ठीक नहीं
रचना पाल
सञाहब डञा . भीमरञाि आंबेडकर कञा अनुदेश थञा - पढ़ो , लिखो बञाबञा
और संघर्ष करो । आज हम सभी के सञामने बञाबञा सञाहब सियं पठन-लिखन एवं संघर्ष की एक अप्रतिम मिसञाि है । इन सबके विपरीत यदि किसी समञाज में बेटी-बहू के सञाथ उतपीड़न की कोई घटनञा होती है तो यह समञाज की एक त्रासदी ही कहञा जञाएगञा I इस त्रासदी को खतम करने कञा दञावयति किस पर है , इस पर वसफ़्क एक बहस खडी करने की ज़रूरत नहीं , बषलक प्रतयेक वयषकत को विचञार एवं शषकत के समञायोजन कञा प्रचंड उदञाहरण रखने की ज़रूरत है ।
समय गुजरञा है , पीढ़ियञां बदली है , लेकिन नगरों से लेकर ग्रामीण क्ेत्ों तक मवहिञा उतपीड़न की षसथवतयञां जस की तस हैं । बञाबञा सञाहब आंबेडकर के सपनों की आजञादी में ऐसञा समञाज तो नहीं थञा कि खेतों में फसलों के बजञाय दु्कम्य पीवड़त बच्चियों की िञाशें बरञामद हो यञा फिर भट्ों पर कञाम करने िञािे मजदूरों की बेटियों के सञाथ गुंडों द्वारञा बंदूक की नौंक पर बिञात्कार कर लिए जञातञा है यञा सुनसञान सड़क से निकलनञा बेटियों के लिए बड़ी समस्या कञा रूप से चूकञा है I विशेषरूप से गरीब , दलित एवं वंचित वर्ग की मवहिञाएं अभी भी पूरी तरह से सुरवक्त नहीं कही जञा सकती हैं कयोंकि आए दिन दलित मवहिञाओं के सञाथ होने िञािी शर्मनञाक घटनञाएं समञाचञारपत्ों के मञाधयम से सञामने आ रही हैं I आवख़र बञाबञा सञाहब के सपनों की आज़ादी कञा समञाज इस देश के किन नसि एवं जञावतिञादी गलियञारों में संघर्ष कर रहञा है , उसके बञारे में सोचनञा आज
के दौर की सबसे बड़ी जरूरत है ।
क्या समञाज में ऐसी घटनञाएं सिर्फ तञाकत दिखञाने कञा एक जरियञा है ? नहीं ! बषलक , यह एक कलुषित मञानसिकतञा है , जो लोगों के दिमञाग में जड़ तक भरी हुई है । यह मञानसिकतञा है कमजोर को एक वसतु समझने की । यह
मञानसिकतञा है , गरीबों और वंचितों के ऊपर हुए अत्याचञारों के इतिहञास की । यह मञानसिकतञा है कमजोर को कमजोर बनञाए रखने की और क्या यह मञानसिकतञा वसफ़्क आपरञावधक ततिों तक सिमटी हुई है ? इस मञानसिकतञा के पैर हर उस वयषकत के दिमञाग में फैले हुए हैं , जिसने
32 iQjojh 2024