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दलित अस्मिता में मंदिरों की भदूवरका
बद्री नारायण
आज की रञाजनीतिक गोलबंदी एवं सत्ता की रञाजनीति के केंद्रीय शबद हैं ‘ अषसमतञा की चञाह और ‘ विकञास । जब ‘ अषसमतञा की चञाह पर चचञा्य होती है तो सञामञावजक एवं रञाजनीतिक अषसमतञा की बञात होती है , परंतु किसी भी सञामञावजक समूह के ‘ अषसमतञा वनमञा्यण की प्रवरियञा में ‘ धर्म की क्या भूमिकञा होती है , इस पर हम न तो संवेदनशील हैं और न ही सजग । जब भी रञाजनीतिक दल दलित , वनिञासी एवं वंचित समूहों की अषसमतञा को समझकर उस पर अपनी रञाजनीतिक कञाय्ययोजनञा बनञानञा चञाहते हैं तो उसमें उनके भीतर बैठी ‘ धञावम्यक सम्मान की चञाह को नजरअंदञाज कर देते हैं । दलित एवं उपेवक्त सञामञावजक समूहों पर शोध करते हुए हमने पञायञा है कि उनमें ‘ धञावम्यक अषसमतञा एवं सम्मान की चञाह सञामञावजक सम्मान की चञाह में ही अंतर्निहित है । उनके लिए समञाज में सम्मान कञा मतलब धञावम्यक स्थान ( सपेस ) में बरञाबर हिससेदञारी भी है । ऐसञा नहीं है कि धञावम्यक स्थान की चञाह आज जगी है और पहले नहीं थी , बषलक यह तब से ही पैदञा हुई जबसे उनमें असपृ्यतञा के अहसञास कञा उद्ि हुआ । असपृ्यतञा से मुषकत कञा संबंध उनके लिए रोटी-पञानी एवं हिंदू धर्म में बरञाबरी की चञाह से ही जुड़ञा रहञा है । शञायद इसीलिए डञा . आंबेडकर ने महञाड़ सत्याग़्रह एवं मंदिरों में प्रवेश जैसे आंदोलन शुरू किए थे । न केवल आंबेडकर ने , बषलक आर्य समञाज एवं आज के अनेक सञामञावजक- सञांस्कृतिक आंदोलनों ने भी दलितों के लिए मंदिर प्रवेश जैसे आंदोलनों की वकञाित की । इसी रिम में भञाजपञा नेतञाओं द्वारञा देश के विभिन्न
हिससों में मंदिर में दलित प्रवेश आंदोलन को लेकर किए जञाने िञािे आंदोलन को भी देखञा जञा सकतञा है ।
महञात्मा गञांधी ने दलितों में निहित हिंदू धर्म में उनके सम्मान को समझञा थञा और इसके लिए अनेक प्रयञास भी किए थे । उसके बञाद आर्य समञाज के प्रयञासों कञा एक केंद्रीय तति दलित , असपृ्य एवं वंचितों की धञावम्यक अषसमतञा कञा वनमञा्यण कर उनहें वैदिक संस्कृति से जोड़ते हुए सम्मान वदिञानञा थञा । 1920 के आसपञास स्वामी अछूतञानंद कञा आदि हिंदू आंदोलन दलितों को धञावम्यक अषसमतञा प्रदञान करने कञा ही प्रयञास थञा । हमें यह समझनञा होगञा कि ऐसे समूहों को रोटी के सञाथ ही धञावम्यक स्थान भी चञावहए । ऐसञा धञावम्यक स्थान जहञां
उनहें बरञाबरी कञा एहसञास हो , दैनंदिन जीवन के संघषषों और टकरञाहट को झेलने के लिए आधयञाषतमक अहसञास तो हो ही , बरञाबरी पर टिके हुए ऐसे भञाईचञारे कञा भी एहसञास हो जो उनहें दैनंदिन जीवन एवं समञाज में नहीं दिखञाई पड़तञा । उनहें ऐसे धञावम्यक स्थान की जरूरत है , जहञां वे अपने दुखों से उबरने की कञामनञा करते हुए अपने देवतञा के समक् रो सकें । कितनञा दुभञा्यगय है कि हमने समञाज में उनहें ‘ रोने कञा स्थान ' भी नहीं दियञा । अगर कभी आप बनञारस में लगने िञािे रविदञास मेले में जञाएं तो रविदञास की मूर्ति के सञामने िञाइन में लगे तमञाम मवहिञाएं-पुरुष अश्रुपूर्ण नेत्ों से रविदञासजी की मूर्ति पर सिककों से लेकर सोनञा फेंकते दिखञाई देंगे । दलितों में जो समूह आर्थिक
30 iQjojh 2024