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अपील करने की आि्यकतञा है और विशेष रूप से मवहिञाओं के संबंध में उनके मूलयों पर विचञार करने की आि्यकतञा है । यही वह मूलय हैं , जिनके लिए पूरी दुनियञा संघर्ष कर रही है और इनकी रोकथञाम के लिए विकसित किए गए विभिन्न कञाय्यरिम अभी तक आशञाजनक परिणञाम नहीं दे रहे पञा रहे हैं । यह सञारे कञाय्यरिम मवहिञाओं के प्रति सम्मान की संस्कृति वनमञा्यण पर केंद्रित हैं । मात्र यह कहने से कि मवहिञाओं कञा सम्मान कियञा जञाए , इससे कञाम नहीं चलतञा । ऐसे सञामञावजक मूलय जो जन मञानस में गहरे हों एवं उनकी प्रञाचीन समय से मञानयतञा हो , यह अतयंत जरूरी है । किनतु संस्कृति में गहरञाई से अपनी जड़ें जमञाए इन मूलय प्रणञावियों को मात्र कुछ ही िषषों में दोबञारञा नहीं बनञायञा जञा सकतञा । इनको प्रगञाढ़ होने में कई सौ वर्ष लग जञाते हैं । इसी कञारण से श्रीरञाम और श्रीरञाम ििञा मंदिर कञा बहुत बड़ा महति है । श्रीरञाम और रञाम रञाजय इस
बञात पर प्रकञाश डञािते हैं कि हजञारों िषषों से हिंसञा कभी भी सनञातन संस्कृति कञा हिस्सा नहीं थी I हञािञाँकि श्रीरञाम और रञामञायण के प्रतीकों को धूमिल करने के अनेकों प्रयञास लोगों द्वारञा किए गए । अनेकों िञामपंथी इतिहञासकञारों , तथञाकथित नञारीिञावदयों और कुछ रञाजनीतिक समूहों ने श्रीरञाम को सत्ीद्ेषी और जय श्रीरञाम के नञारे को आक्रामकतञा और हिंसञा की अभिवयषकत के रूप में स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ।
यद्वप , अयोध्या में संपन्न हुई प्रञाण-प्रतिष्ठा कञाय्यरिम की सहज और झूठी प्रवतवरियञा से पतञा चलतञा है कि यह िञामपंथी इतिहञासकञारों , तथञाकथित नञारीिञावदयों और कुछ रञाजनीतिक पञावटटियों के समूह अपने उद्े्यों और लक्यों को प्रञापत करने में पूरी तरह से विफल रहे हैं । पूरे भञारतवर्ष और दुनियञा भर में सनञातनियों द्वारञा अपनी सभयतञा और संस्कृति से जो गहरञा
भञािनञातमक जुड़ाव दिखञायञा जञा रहञा है , वह आ्चय्यजनक और अप्रत्याशित है । इससे पतञा चलतञा है कि इस घटनञा के विषय में हम जितनञा सोच सकते हैं , उससे कहीं अधिक बड़े निहितञाथ्य होंगे ।
जब अधिक से अधिक लोग श्रीरञाम से जुड़ेंगे , जो मात्र श्रीरञाम नहीं बषलक मयञा्यदञा पुरूषोत्म श्रीरञाम हैं , एक ऐसे भगिञान जो शुद्ध चररत् , अनुशञासन , वन्पक्तञा और न्याय के अवतञार हैं , तो समञाज में सकञारञातमक बदिञाि आनञा निश्चत है । यह सर्वविदित है कि श्रीरञाम मवहिञाओं की गरिमञा के लिए सदैव खड़े रहे और अपनी पत्ी सीतञा के प्रति अपमञान कञा बदिञा लेने के लिए पहाड़ों और समुद्रों को पञार कियञा , उन पर विजय प्रञापत की । यदि भञारतवर्ष में पुरुष श्री रञाम से प्रेरणञा लें तो समय के सञाथ इसकञा सीधञा परिणञाम मवहिञाओं के विरुद्ध हिंसञा में कमी के रूप में सञामने आएगञा । इसके अिञािञा , रञाम रञाजय एक आदर्श शञासन कञा प्रतीक है , जहञां कञानून और नियम कञा शञासन है । जब कञानून-वयिस्था सुदृढ़ रहती है तो मवहिञाओं की सुरक्षा भी सुनिश्चत होती है ।
हञािञांकि समपूण्य वि्ि में भञारतवर्ष को मवहिञाओं के विरुद्ध हिंसञा में अग्णी देश के रूप में प्रचञारित कियञा गयञा है , लेकिन विभिन्न कुप्रथञाओं को सफलतञापूर्वक संबोधित करने कञा अपनञा एक लम्बा अनुभव रहञा है । उदञाहरण के लिए सती-प्रथञा , बञाि वििञाह , दहेज , कन्या भ्रूण हत्या । भञारतवर्ष में सकञारञातमक कञार्यिञाई के मञाधयम से यह सुनिश्चत कियञा जञा रहञा है कि मवहिञाएं सञाि्यजनिक और रञाजनीतिक जीवन में स्थानीय शञासन और संसद में सञाथ्यक रूप से प्रतिभञाग करें । संसद द्वारञा पञास नवीनतम मवहिञा आरक्ण , नञारी शषकत वंदन अधिनियम , मवहिञा नेतृति को सबसे आगे रखने में एक प्रभञािी भूमिकञा निभञाएगञा । भञारतवर्ष में जो भी प्रयञास किए जञा रहे हैं , वह मात्र अलंकरण नहीं हैं , बषलक उनके पीछे हजञारों िषषों की सभयतञागत पृ्ठभूमि है , जहञां सत्ी देवति को सदैव प्रककृवत , शषकत , लक्मी , सरसिती , दुगञा्य , कञािी और देवी के रूप में सम्मान दियञा गयञा है । �
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