doj LVksjh
देश में रहने वाले दलित समाज कया सिर्फ सत्ा प्रापर करने के उपकरण है ? सामानय रूप से इस प्रश्न का उत्र हर कोई नहीं में देगा । देश के समग् विकास में अपनी अहम् भूमिका निभाने वाले दलित समाज पर यदि वा्रि में धयान दिया जाए तो यह कहना कहीं से भी गलत नहीं लगता कि यह वह समाज है जिसने लगभग आठ सौ िषषों तक विदेशी मुस्लम आक्ांराओं को झेला , पर समझौता नहीं किया । इसके बाद अंग्ेजी शासकों ने दलित समाज का प्रयोग अपने हितों के लिया किया । देश ्िरंत्र होने के बाद दलितों का भागय लिखने का काम कांग्ेस और उसके सहयोगियों ने अपने हाथों में ले लिया । दलित समाज को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के उद्ेशय से मिले
आरक्षण को एक ऐसे हथियार के रूप में देखा गया था , जिससे दलित अपने भागय और
सामाजिक स्थति का निर्णय ्ियं कर सकेंगे और अपने हालात को सुधार कर विकास की मुखय धारा के साथ कदम से कदम मिलकर चल पाएंगे । लेकिन ऐसा नहीं हुआ । ्िरंत्रता के बाद आरक्षण तो मिल गया पर आरक्षण भी दलितों की स्थति को सुधारने में पूरी तरह कारगर नहीं सिद्ध हो पाया । शिक्षा और अवसरों की कमी ने दलित समाज को राजनीतिक दलों के हाथ की कठपुतली बना कर रख दिया । कांग्ेस नेता इंदिरा गांधी ने दलितों के हालात सुधारने के लिए एक नारा दिया था - " गरीबी हटाओ "। िषषों तक इस नारे का प्रयोग तो किया गया पर न तो गरीबी हटी और न ही दलितों का कोई कलयार हुआ । कारण यह रहा कि दलित समाज को कभी भी वा्रि में समाज की मुखय धारा से जोड़ने के लिए गंभीर कदम नहीं उठाए गए और जो कदम उठाए भी गए , वह राजनीति
और ्िःतहरों की भेंट चढ़ गए । दलित समाज आज भी वही है जहां वह ्िरंत्रता के पहले था ।
सत्ा के लिए दलितों के विरुद्ध प्ायोजित षड़यंत्र
आधुनिक भारत की लोकतासनत्रक प्रतक्या में दलित नेतृति उच् िरषों की आलोचना को अपनी राजनीति का आधार बनाए हुए है । दलितों के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के मूल अवरोधकों को दूर करने की बजाय सिर्फ सत्ा पर अपनी पकड़ को बनाए रखना , इन नेताओं की प्राथमिकता है । मनुवाद और ब्ाह्मणवाद जैसे शबद दलित राजनीति की सफलता के लिए दलित नेताओं नियमित रूप से प्रयोग किए जाते हैं । आधुनिक भारत की राजनीति में डॉ बी आर आंबेडकर के महान योगदान की चर्चा न करके ,
8 flracj 2022