eMag_Sept2022_DA | Page 34

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1 / 130 / 8 , ऋगिेद 10 / 49 / 3 ), इनरि का विशेषण ( ऋगिेद 5 / 34 / 6 , ऋगिेद 10 / 138 / 3 ), सोम का विशेषण ( ऋगिेद 0 / 63 / 5 ), जयोति का विशेषण ( ऋगिेद 10 / 43 / 4 ), व्रत का विशेषण ( ऋगिेद 10 / 65 / 11 ), प्रजा का विशेषण ( ऋगिेद 7 / 33 / 7 ), वर्ण का विशेषण ( ऋगिेद 3 / 34 / 9 ) के रूप में हुआ है ।
दास शबद का अर्थ अनार्य , अज्ानी , अकर्मा , मानवीय वयिहार शूनय , भृतय , बल रहित शत्रु के लिए हुआ है नकि किसी विशेष जाति के लोगों के लिए हुआ है । जैसे दास शबद का अर्थ मेघ ( ऋगिेद 5 / 30 / 7 , ऋगिेद 6 / 26 / 5 , ऋगिेद 7 / 19 / 2 ), अनार्य ( ऋगिेद 10 / 22 / 8 ), अज्ानी , अकर्मा , मानवीय वयिहार शूनय ( ऋगिेद 10 / 22 / 8 ), भृतय ( ऋग ), बल रहित शत्रु ( ऋगिेद 10 / 83 / 1 ) के लिए हुआ है ।
द्यु शबद का अर्थ उत्म कर्म हीन वयसकर ( ऋगिेद 7 / 5 / 6 ) अज्ानी , अव्रती ( ऋगिेद 10 / 22 / 8 ), मेघ ( ऋगिेद 1 / 59 / 6 ) आदि के लिए हुआ है नकि किसी विशेष जाति अथवा ्थान के लोगों के लिए हुआ है ।
इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि आर्य और द्यु शबद गुण वाचक है , जाति वाचक नहीं है । इन मंत्रों में आर्य और द्यु , दास शबदों के विशेषणों से पता चलता है कि अपने गुण , कर्म और ्िभाव के कारण ही मनुषय आर्य और द्यु नाम से पुकारे जाते है । अतः उत्म ्िभाव वाले , शांतिप्रिय , परोपकारी गुणों को अपनाने वाले आर्य तथा अनाचारी और अपराधी प्रवृतत् वाले द्यु है ।
शंका 4 - वेदों में शुद्र के अधिकारों के विषय में कया कहा गया है ?
समाधान - ्िामी दयानंद ने वेदों का अनुशीलन करते हुए पाया कि वेद सभी मनुषयों और सभी िरषों के लोगों के लिए वेद पढ़ने के अधिकार का समर्थन करते है । ्िामी जी के काल में शूरिों को वेद अधययन का निषेध था । उसके विपरीत वेदों में ्पषट रूप से पाया गया कि शूरिों को वेद अधययन का अधिकार ्ियं वेद ही देते है । वेदों में ‘ शूरि ’ शबद लगभग बीस
बार आया है । कही भी उसका अपमानजनक अथषों में प्रयोग नहीं हुआ है और वेदों में किसी भी ्थान पर शूरि के जनम से अछूत होने , उनहें वेदाधययन से वंचित रखने , अनय िरषों से उनका दर्जा कम होने या उनहें यज्ातद से अलग रखने का उललेख नहीं है ।
हे मनुषयों ! जैसे मैं परमातमा सबका कलयार करने वाली ऋगिेद आदि रूप वाणी का सब जनों के लिए उपदेश कर रहा हूँ , जैसे मैं इस वाणी का ब्ाह्मण और क्षत्रियों के लिए उपदेश कर रहा हूँ , शूरिों और वैशयों के लिए जैसे मैं इसका उपदेश कर रहा हूँ और जिनहें तुम अपना आतमीय समझते हो , उन सबके लिए इसका उपदेश कर रहा हूँ और जिसे ‘ अरण ’ अर्थात पराया समझते हो , उसके लिए भी मैं इसका उपदेश कर रहा हूँ , वैसे ही तुम भी आगे आगे सब लोगों के लिए इस वाणी के उपदेश का क्म चलते रहो । ( यजुिदेद 26 / 2 )।
प्रार्थना है कि हे परमातमा ! आप मुझे ब्ाह्मण का , क्षत्रियों का , शूरिों का और वैशयों का पयारा बना दें । ( अथर्ववेद 19 / 62 / 1 )
इस मंत्र का भावार्थ ये है कि हे परमातमा आप मेरा ्िाभाव और आचरण ऐसा बन जाये जिसके कारण ब्ाह्मण , क्षत्रिय , शुरि और वैशय सभी मुझे पयार करें ।
हे परमातमा आप हमारी रुचि ब्ाह्मणों के प्रति उतपन् कीजिये , क्षत्रियों के प्रति उतपन् कीजिये , विषयों के प्रति उतपन् कीजिये और शूरिों के प्रति उतपन् कीजिये । ( यजुिदेद 18 / 46 )
मंत्र का भाव यह है कि हे परमातमा ! आपकी ककृपा से हमारा ्िभाव और मन ऐसा हो जाये की ब्ाह्मण , क्षत्रिय , वैशय और शुरि सभी िरषों के लोगों के प्रति हमारी रुचि हो । सभी िरषों के लोग हमें अचछे लगें , सभी िरषों के लोगों के प्रति हमारा बर्ताव सदा प्रेम और प्रीति का रहे ।
हे शत्रु विदारक परमेशिर मुझको ब्ाह्मण और क्षत्रिय के लिए , वैशय के लिए , शुरि के लिए और जिसके लिए हम चाह सकते हैं और प्रतयेक विविध प्रकार देखने वाले पुरुष के लिए प्रिय करे । ( अथर्ववेद 19 / 32 / 8 )
इस प्रकार वेद की शिक्षा में शूरिों के प्रति भी
सदा ही प्रेम-प्रीति का वयिहार करने और उनहें अपना ही अंग समझने की बात कही गयी है ।
शंका 5 -वेदों के शरिु विशेष रूप से पुरुष सूकत को जातिवाद की उतपलति का समर्थक मानते है ।
समाधान - पुरुष सूकर 16 मनत्रों का सूकर है जो चारों वेदों में मामूली अंतर में मिलता है । पुरुष सूकर जातिवाद का नहीं अपितु वर्ण वयि्था के आधारभूत मंत्र हैं जिसमे “ ब्ाह्मणो्य मुखमासीत ” ऋगिेद 10 / 90 में ब्ाह्मण , क्षत्रिय , वैशय और शुरि को शरीर के मुख , भुजा , मधय भाग और पैरों से उपमा दी गयी है । इस उपमा से यह सिद्ध होता हैं की जिस प्रकार शरीर के यह चारों अंग मिलकर एक शरीर बनाते है , उसी प्रकार ब्ाह्मण आदि चारों वर्ण मिलकर एक समाज बनाते है । जिस प्रकार शरीर के ये चारों अंग एक दूसरे के सुख-दुःख में अपना सुख- दुःख अनुभव करते है । उसी प्रकार समाज के ब्ाह्मण आदि चारों िरषों के लोगों को एक दूसरे के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख समझना चाहिए । यदि पैर में कांटा लग जाये तो मुख से दर्द की धितन निकलती है और हाथ सहायता के लिए पहुँचते है । उसी प्रकार समाज में जब
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