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शुरि को कोई कठिनाई पहुँचती है तो ब्ाह्मण भी और क्षत्रिय भी उसकी सहायता के लिए आगे आये । सब िरषों में पर्पर पूर्ण सहानुभूति , सहयोग और प्रेम प्रीति का बर्ताव होना चाहिए । इस सूकर में शूरिों के प्रति कहीं भी भेद भाव की बात नहीं कहीं गयी है । कुछ अज्ानी लोगों ने पुरुष सूकर का मनमाना अर्थ यह किया कि ब्ाह्मण कयोंकि सर है । इसलिए सबसे ऊँचे हैं अर्थात श्ेषठ हैं एवं शुरि चूकि पैर है इसलिए सबसे नीचे अर्थात निककृषट है । यह गलत अर्थ हैं कयोंकि पुरुष सूकर कर्म के आधार पर समाज का विभाजन है नाकि जनम के आधार पर ऊँच नीच का विभाजन है । इस सूकर का एक और अर्थ इस प्रकार किया जा सकता है कि जब कोई वयसकर समाज में ज्ान के सनदेश को प्रचार प्रसार करने में योगदान दे तो वो ब्ाह्मण अर्थात समाज का सिर / शीश है , यदि कोई वयसकर समाज की रक्षा अथवा नेतृति करे तो वो क्षत्रिय अर्थात समाज की भुजायें है , यदि कोई वयसकर देश को वयापार , धन आदि से समृद्ध करे तो वो वैशय अर्थात समाज की जंघा है और यदि कोई वयसकर गुणों से रहित हैं अर्थात शुरि है तो वो इन तीनों िरषों को अपने अपने कार्य करने में सहायता
करे अर्थात इन तीनों की नींव बने , मजबूत आधार बने ।
शंका 6- कया वेदों में शुद्र को नीचा माना गया है ?
समाधान- वेदों में शुरि को अतयंर पररश्मी कहा गया है । यजुिदेद में आता है ' तपसे शूरिं ( यजुिदेद 30 / 5 )' अर्थात श्म अर्थात मेहनत से अन् आदि को उतपन् करने वाला तथा शिलप आदि कठिन कार्य आदि का अनुषठान करने वाला शुरि है । तप शबद का प्रयोग अनंत सामथय्त से जगत के सभी पदाथषों कि रचना करने वाले ईशिर के लिए वेद मंत्र में हुआ है । वेदों में वर्णनातमक दृसषट से शुरि और ब्ाह्मण में कोई भेद नहीं है ।
यजुिदेद में आता है कि मनुषयों में तनसनदर वयतभचारी , जुआरी , नपुंसक जिनमें शुरि ( श्मजीवी कारीगर ) और ब्ाह्मण ( अधयापक एवं शिक्षक ) नहीं है उनको दूर बसाओ और जो राजा के समबनिी हितकारी ( सदाचारी ) है , उनहें समीप बसाया जाये । ( यजुिदेद 30 / 22 )। इस मंत्र में वयिहार सिद्धि से ब्ाह्मण एवं शूरि में कोई भेद नहीं है । ब्ाह्मण विद्या से राजय कि सेवा करता है एवं शुरि श्म से राजय कि सेवा
करता है । दोनों को समीप बसने का अर्थ है यही दर्शाता हैं कि शुरि अछूत शबद का पर्यायवाची नहीं है एवं न ही नीचे होने का बोधक है ।
ऋगिेद में आता है कि मनुषयों में न कोई बड़ा है , न कोई छोटा है । सभी आपस में एक समान बराबर के भाई है । सभी मिलकर लौकिक एवं पारलौकिक सुख एवं ऐशिय्त कि प्रासपर करे । ( ऋगिेद 5 / 60 / 5 )।
मनु्मृति में लिखा है कि हिंसा न करना , सच बोलना , दूसरे का धन अनयाय से न हरना , पवित्र रहना , इसनरियों का तनग्ह करना , चारों िरषों का समान धर्म है । ( मनु्मृति 10 / 63 )। यहां पर ्पषट रूप से चारों िरषों के आचार धर्म को एक माना गया है । वर्ण भेद से धार्मिक होने का कोई भेद नहीं है ।
ब्ाह्मणी के गर्भ से उतपन् होने से , सं्कार से , वेद श्िर से अथवा ब्ाह्मण पिता कि संतान होने भर से कोई ब्ाह्मण नहीं बन जाता अपितु सदाचार से ही मनुषय ब्ाह्मण बनता है । ( महाभारत अनुशासन पर्व अधयाय 143 )।
कोई भी मनुषय कुल और जाति के कारण ब्ाह्मण नहीं हो सकता । यदि चंडाल भी सदाचारी है तो ब्ाह्मण है । ( महाभारत अनुशासन पर्व अधयाय 226 )।
जो ब्ाह्मण दुषट कर्म करता है , वो दमभी पापी और अज्ानी है उसे शुरि समझना चाहिए । और जो शुरि सतय और धर्म में स्थर है उसे ब्ाह्मण समझना चाहिए । ( महाभारत वन पर्व अधयाय 216 / 14 )।
शुरि यदि ज्ान समपन् हो तो वह ब्ाह्मण से भी श्ेषठ है और आचार भ्रषट ब्ाह्मण शुरि से भी नीच है । ( भविषय पुराण अधयाय 44 / 33 )।
शूरिों के पठन पाठन के विषय में लिखा है कि दुषट कर्म न करने वाले का उपनयन अर्थात ( विद्या ग्हण ) करना चाहिए । ( गृहसूत्र कांड 2 हरिहर भाषय )।
कूर्म पुराण में शुरि कि वेदों का विद्ान बनने का वर्णन इस प्रकार से मिलता है । वतसर के नैध्ुि तथा रे्य दो पुत्र हुए तथा रे्य वेदों के पारंगत विद्ान शुरि पुत्र हुए । ( कूर्मपुराण अधयाय 19 )। ( जारी ) �
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