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नहीं मिलेंगे । मुस्लम जोतदार जमींदारों के अनयाय को रोकने के लिए अपनी ही श्ेरी के हिनदुओं के साथ एकजुट नहीं होंगे । पूंजीवाद के खिलाफ श्तमक के संघर्ष में मुस्लम श्तमक हिनदू श्तमकों के साथ शामिल नहीं होंगे । कयों ? उत्र बड़ा सरल है । गरीब मुसलमान यह सोचता है कि यदि वह धनी के खिलाफ गरीबों के संघर्ष में शामिल होता है तो उसे एक धनी मुसलमान से भी टकराना पड़ेगा । मुस्लम जोतदार यह महसूस करते हैं कि यदि वे जमींदारों के खिलाफ अभियान में योगदान करते हैं तो उनहें एक मुस्लम जमींदार के खिलाफ भी संघर्ष करना पड़ सकता है । मुसलमान मजदूर यह सोचता है कि यदि वह पूंजीपति के खिलाफ श्तमक के संघर्ष में सहभागी बना तो वह मुस्लम मिल-मालिक की भावनाओं को आघात पहुंचाएगा । वह इस बारे में सजग हैं कि किसी धनी मुस्लम , मुस्लम ज़मींदार अथवा मुस्लम मिल-मालिक को आघात पहुंचाना मुस्लम समुदाय को हानि पहुंचाना है और ऐसा करने का तातपय्त हिनदू समुदाय के विरुद्ध मुसलमानों के संघर्ष को कमजोर करना ही होगा । ( पृ . 229-230 )
मुस्लिम कानदूनों के अनुसार भारत हिन्ुओं और मुसलमानों की समान मातृभदूमि नहीं हो सकती-
मुस्लम धर्म के सिद्धानरों के अनुसार , विशि दो तह्सों में विभाजित है-दार-उल-इ्लाम तथा दार-उल-हर्ब । मुस्लम शासित देश दार-उल- इ्लाम हैं । वह देश जिसमें मुसलमान सिर्फ रहते हैं , न कि उस पर शासन करते हैं , दार-उल-हर्ब है । मुस्लम धार्मिक कानून का ऐसा होने के कारण भारत हिनदुओं तथा मुसलमानों दोनों की मातृभूमि नहीं हो सकती है । यह मुसलमानों की धरती हो सकती है-किनरु यह हिनदुओं और मुसलमानों की धरती , जिसमें दोनों समानता से रहें , नहीं हो सकती । फिर , जब इस पर मुसलमानों का शासन होगा तो यह मुसलमानों की धरती हो
सकती है । इस समय यह देश गैर-मुस्लम सत्ा के प्राधिकार के अनरग्तर हैं , इसलिए मुसलमानों की धरती नहीं हो सकती । यह देश दार-उल- इ्लाम होने की बजाय दार-उल-हर्ब बन जाता है । हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि यह दृसषटकोण केवल शा्त्रीय है । यह सिद्धानर मुसलमानों को प्रभावित करने में बहुत कारगर कारण हो सकता है । ( पृ . 296-297 )
दार-उल-हर्व भारत को दार-उल- इलिाम बनाने के लिए जिहाद-
यह उललेखनीय है कि जो मुसलमान अपने आपको दार-उल-हर्ब में पाते हैं , उनके बचाव के लिए हिजरत ही उपाय नहीं हैं । मुस्लम धार्मिक कानून की दूसरी आज्ा जिहाद ( धर्म युद्ध ) है , जिसके तहत हर मुसलमान शासक का यह कत््तवय हो जाता है कि इ्लाम के शासन का तब तक वि्रार करता रहे , जब तक सारी दुनिया मुसलमानों के नियंत्रण में नहीं आ जाती । संसार के दो खेमों में बंटने की वजह से सारे देश या दो दार-उल-इ्लाम ( इ्लाम का घर )
या दार-उल-हर्ब ( युद्ध का घर ) की श्ेरी में आते हैं । तकनीकी तौर पर हर मुस्लम शासक का , जो इसके लिए सक्षम है , कत््तवय है कि वह दार-उल-हब् को दार-उल-इ्लाम में बदल दे ; और भारत में जिस तरह मुसलमानों के हिज़रत का मार्ग अपनाने के उदाहरण हैं , वहाँ ऐसेस भी उदाहरण हैं कि उनहोंने जिहाद की घोषणा करने में संकोच नहीं किया । तथय यह है कि भारत , चाहे एक मात्र मुस्लम शासन के अधीन न हो , दार-उल-हर्ब है , और इ्लामी सिद्धानरों के अनुसार मुसलमानों द्ारा जिहाद की घोषणा करना नयायसंगत है । वे जिहाद की घोषणा ही नहीं कर सकते , बसलक उसकी सफलता के लिए विदेशी मुस्लम शसकर की मदद भी ले सकते हैं , और यदि विदेशी मुस्लम शसकर जिहाद की घोषणा करना चाहती है तो उसकी सफलता के लिए सहायता दे सकते हैं । ( पृ . 297-298 )
हिन्दू-मुस्लिम एकता असफल क्ों रही ? - हिनदू-मुस्लम एकता की विफलता का
20 flracj 2022