eMag_Sept2022_DA | страница 19

( ii ) दजनी , जुलाहा , फकीर और रंगरेज ।
( iii ) बाढ़ी , भटियारा , चिक , चूड़ीहार , दाई , धावा , धुनिया , गड्‌डी , कलाल , कसाई , कुला , कुंजरा , लहेरी , माहीफरोश , मललाह , नालिया , निकारी ।
( iv ) अबदाल , बाको , बेडिया , भाट , चंबा , डफाली , धोबी , हज्जाम , मुचो , नगारची , नट , पनवाड़िया , मदारिया , तुसनरया । 3 . अरजल ’ अथवा निककृषट वर्ग भानार , हलालखोदर , हिजड़ा , कसंबी ,
लालबेगी , मोगता , मेहतर ।
जनगणना अधीक्षक ने मुस्लम सामाजिक वयि्था के एक और पक्ष का भी उललेख किया है । वह है ‘ पंचायत प्रणाली ’ का प्रचलन । वह बताते हैं कि पंचायत का प्राधिकार सामाजिक तथा वयापार समबनिी मामलों तक वयापर है और अनय समुदायों के लोगों से विवाह एक ऐसा अपराध है , जिस पर शासी निकायकार्यवाही करता है । परिणामत : ये वर्ग भी हिनदू जातियों के समान ही प्रायः कठोर संगोत्री हैं , अंतर-विवाह पर रोक ऊंची जातियों से लेकर नीची जातियों तक लागू है । उदाहरणतः कोई घूमा अपनी ही
जाति अर्थात्‌घूमा में ही विवाह कर सकता है । यदि इस नियम की अवहेलना की जाती है तो ऐसा करने वाले को ततकाल पंचायत के समक्ष पेश किया जाता है । एक जाति का कोई भी वयसकर आसानी से किसी दूसरी जाति में प्रवेश नहीं ले पाता और उसे अपनी उसी जाति का नाम कायम रखना पड़ता है , जिसमें उसने जनम लिया है । यदि वह अपना लेता है , तब भी उसे उसी समुदाय का माना जाता है , जिसमें कि उसने जनम लिया था । हजारों जुलाहे कसाई का धंधा अपना चुके हैं , किनरु वे अब भी जुलाहे ही कहे जाते हैं ।
इसी तरह के तथय अनय भारतीय प्रानरों के बारे में भी वहां की जनगणना रिपोटषों से वे लोग एकत्रित कर सकते हैं , जो उनका उललेख करना चाहते हों । परनरु बंगाल यह दर्शाने के लिए पर्यापर हैं कि मुसलमानों में जाति प्राणी ही नहीं , छुआछूत भी प्रचलित है । ( पृ . 221-223 )
इलिामी कानदून समाज-सुधार के विरोधी- मुलमानों में इन बुराइयों का होना दुखद है ।
किनरु उससे भी अधिक दुखद तथय यह है कि भारत के मुसलमानों में समाज सुधार का ऐसा कोई संगठित आनदोलन नहीं उभरा जो इन बुराईयों का सफलतापूर्वक उनमूलन कर सके । हिनदुओं में भी अनेक सामाजिक बुराईयां हैं । परनरु सनरोषजनक बात यह है कि उनमें से अनेक इनकी विद्यमानता के प्रति सजग हैं और उनमें से कुछ उन बुराईयों के उनमूलन हेतु सतक्य तौर पर आनदोलन भी चला रहे हैं । दूसरी ओर , मुसलमान यह महसूस ही नहीं करते कि ये बुराईयां हैं । परिणामतः वे उनके निवारण हेतु सतक्यता भी नहीं दर्शाते । इसके विपरीत , वे अपनी मौजूदा प्रथाओं में किसी भी परिवर्तन का विरोध करते हैं । यह उललेखनीय है कि मुसलमानों ने केनरिीय असेंबली में 1930 में पेश किए गए बाल विवाह विरोधी विधेयक का भी विरोध किया था , जिसमें लड़की की विवाह- योगय आयु 14 वर्ष् और लड़के की 18 वर्ष करने का प्रावधान था । मुसलमानों ने इस विधेयक का विरोध इस आधार पर किया कि ऐसा किया जाना मुस्लम िम्तग्नथ द्ारा निर्धारित कानून के विरुद्ध होगा । उनहोंने इस विधेयक का हर चरण पर विरोध ही नहीं किया , बसलक जब यह कानून बन गया तो उसके खिलाफ सविनय अवज्ाअभियान भी छेड़ा । सौभागय से उकर अधिनियम के विरुद्ध मुसलमानों द्ारा छोड़ा गया वह अभ्यान फेल नहीं हो पाया , और उनहीं दिनों कांग्ेस द्ारा चलाए गए सविनय अवज्ा आनदोलन में समा गया । परनरु उस अभियान से यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि मुसलमान समाज सुधार के कितने प्रबल विरोधी हैं । ( पृ . 226 )
मुस्लिम राजनीतिज्ों द्ारा धर्मनिरपेक्षता का विरोध-
मुस्लम राजनीतरज् जीवन के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को अपनी राजनीति का आधार नहीं मानते , कयोंकि उने लिए इसका अर्थ हिनदुओं के विरुद्ध अपने संघर्ष में अपने समुदाय को कमजोर करना ही है । गरीब मुसलमान धनियों से इनसाि पाने के लिए गरीब हिनदुओं के साथ
flracj 2022 19