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दंगे इस बात के पर्यापर संकेत हैं कि गुंडातगदनी उनकी राजनीति का एक ्थातपर तरीका हो गया है ” ( पृ . 267 )
हत्ारे धार्मिक शहीद
महति की बात यह है कि िमाांध मुसलमानों द्ारा कितने प्रमुख हिनदुओं की हतया की गई । मूल प्रश्न है उन लोगों के दृसषटकोण का , जिनहोंने यह कतल किये । जहां कानून लागू किया जा सका , वहां हतयारों को कानून के अनुसार सज़ा मिली ; तथापि प्रमुख मुसलमानों ने इन अपराधियों की कभी निंदा नहीं की । इसके विपरीत उनहें ‘ गाजी ’ बताकर उनका ्िागत किया गया और उनके क्षमादान के लिए आनदोलन शुरू कर दिए गए । इस दृसषटकोण का एक उदाहरण है लाहौर के बैरर्टर बरकत अली का , जिसने अबदुल कयूम की ओर से अपील दायर की । वह तो यहां तक कह गया कि कयूम नाथूराम की हतया का दोषी नहीं है , कयोंकि कुरान के कानून के अनुसार यह नयायोचित है । मुसलमानों का यह दृसषटकोण तो समझ में आता है , परनरु जो बात समझ में नहीं आती , वह है श्ी गांधी का दृसषटकोण ।”( पृ . 147-148 )
हिन्दू और मुसलमान दो विभिन्न प्जातियां-
आधयासतमक दृसषट से हिनदू और मुसलमान केवल ऐसे दो वर्ग या समप्रदाय नहीं हैं जैसे प्रोटे्टेंट्‌स और कैथोलिक या शैव और वैषरि , बसलक वे तो दो अलग-अलग प्रजातियां हैं । ( पृ . 185 )
इलिाम और जावतप्था-
जाति प्रथा को लीजिए । इ्लाम भ्रातृ-भाव की बात कहता है । हर वयसकर यही अनुमान लगाता है कि इ्लाम दास प्रथा और जाति प्रथा से मुकर होगा । गुलामी के बारे में तो कहने की आवशयकता ही नहीं । अब कानून यह समापर हो चुकी है । परनरु जब यह विद्यमान थी , तो जयादातर समर्थन इसे इ्लाम और इ्लामी देशों से ही मिलता था । कुरान में पैंगबर ने
गुलामों के साथ उचित इ्लाम में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इस अभिशाप के उनमूलन के समर्थन में हो । जैसाकि सर डबलयू . मयूर ने ्पषट कहा है- ' गुलाम या दासप्रथा समापर हो जाने में मुसलमानों का कोई हाथ नहीं है , कयोंकि जब इस प्रथा के बंधन ढीले करने का अवसर था , तब मुसलमानों ने उसको मजबूती से पकड़ लिया । किसी मुसलमान पर यह दायिति नहीं है कि वह अपने गुलामों को मुकर कर दें I '
परनरु गुलामी भले विदा हो गई हो , जाति तो मुसलमानों में क़ायम है । उदाहरण के लिए बंगाल के मुसलमानों की स्थति को लिया जा सकता है । १९०१ के लिए बंगाल प्रांत के जनगणना अधीक्षक ने बंगाल के मुसलमानों के बारे में यह रोचक तथय दर्ज किए हैं :' मुसलमानों का चार िगषों-शेख , सैयद , मुग़ल और पठान-में परमपरागत विभाजन इस प्रानर ( बंगाल ) में प्रायः लागू नहीं है । मुसलमान दो मुखय सामाजिक विभाग मानते हैं . अशरफ अथवा शरु और अज़लफ । अशरफ से तातपय्त है ‘ कुलीन ’, और इसमें विदेशियों के वंशज तथा ऊंची जाति के अिमाांतरित हिनदू शामिल हैं । शेष अनय
मुसलमान जिनमें वयािसायिक वर्ग और निचली जातियों के िमाांतरित शामिल हैं , उनहें अज़लफ अर्थात्‌नीचा अथवा निककृषट वयसकर माना जाता है । उनहें कमीना अथवा इतर कमीन या रासिल , जो रिजाल का भ्रषट रूप है , ‘ बेकार ’ कहा जाता है । कुछ ्थानों पर एक तीसरा वर्ग ‘ अरज़ल ’ भी है , जिसमें आने वाले वयसकर सबसे नीच समझे जाते हैं । उनके साथ कोई भी अनय मुसलमान मिलेगा-जुलेगा नहीं और न उनहें मस्जद और सार्वजनिक कतब््रानों में प्रवेश करने दिया जाता है । इन िगषों में भी हिनदुओं में प्रचलित जैसी सामाजिक वरीयताऔर जातियां हैं ।
1 . ‘ अशरफ ’ अथवा उच् वर्ग के मुसलमान ( प ) सैयद , ( पप ) शेख , ( पपप ) पठान , ( पअ ) मुगल , ( अ ) मलिक और ( अप ) मिर्ज़ा । 2 . ‘ अज़लफ ’ अथवा निम्न वर्ग के मुसलमान ( i ) खेती करने वाले शेख और अनय वे लोग जो मूलतः हिनदू थे , किनरु किसी बुद्धिजीवी वर्ग से समबसनिर नहीं हैं और जिनहें अशरफ समुदाय , अर्थात्‌पिराली और ठकराई आदि में प्रवेश नहीं मिला है ।
18 flracj 2022