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दलित-मुस्लम गठजोड़ का राग सुना रहे नेताओं का मकसद किसी भी तरह से सत्ा को प्रापर करने से जयादा कुछ नहीं है । उनहें लग रहा है कि दलित आबादी और मुस्लम अगर एकजुट हो जाएंगे तो उनहें सत्ा तक पहुंचने से कोई भी रोक नहीं सकेगा । साथ ही गठजोड़ का एक और छिपा एजेंडा हिनदू समाज को कमजोर करना भी है । सत्ालोभी राजनीतिज्ों के लिए तर्क , तथय एवं आंकड़ों का कोई महति नहीं होता है । उनहें लगता है कि वोट बैंक राजनीति रकषों , तथयों और आंकड़ों पर नहीं , वोटों की संखया पर चलती है । इसलिए वर्तमान राजनीति का मुखय कारण नेताओं द्ारा दलितों एवं मुस्लमों का हित करना नहीं अपितु उनहें एक " वोट बैंक " के रूप में देखना हैं । सत्ा हासिल करने के लिए विदेशों से मिलने वाले फंड की मदद से दलितों के उतथान के नाम पर रैलियां कर , उनहें बरगलाया जा रहा है । इन रैलियों में दलितों के साथ साथ मुसलमान भी बढ़ चढ़कर तह्सा ले रहे हैं और ऐसा दिखाने का प्रयास किया जा रहा है कि मुसलमान दलितों के हितैषी हैं । सतय यह है कि यह सब वोट बैंक की राजनीति है और दलितों और मुसलमानों के समीकरण को बनाने का प्रयास सिर्फ इसलिए किया जा रहा है , जिससे न केवल देश को अस्थर किया जा सके बसलक हिंदुओं कि एकता को भी तोडा जा सके । दलित और मुस्लम समाज ने ऐसे नेताओं का बहिषकार नहीं किया जिनके लिए वह सिर्फ वोट बैंक से जयादा कुछ नहीं है , तो दलित एवं मुस्लम वर्ग फिर एक बार गहरी खाई में इस तरह गिरेगा , जिसे निकलना भविषय में आसान नहीं होगा ।
भाजपा राज में दलित समाज को मिला सममान
केंरि में 2014 में प्रधानमंत्री नरेंरि मोदी के नेतृति में पहली बार भाजपा ने जब पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई , तब कांग्ेस , वामपंथियों एवं अनय भाजपा विरोधी दलों के सीने पर सांप लोट गया । पिछले 70 िषषों के दौरान कांग्ेस कई बार केंरिीय सत्ा से दूर हुई , पर सत्ा से दूर रहते हुए भी कांग्ेस ने देश की राजनीति
को जोड़तोड़ करके जातिवादी क्षेत्रीय नेताओं को डरा-धमकाकर एवं उनहें भ्रमित करके अपनी इचछानुसार चलाया और राजनीतिक विरोधियों पर अपनी पकड़ बनाये रखी । नरेंरि मोदी के नेतृति में जब भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला तो कांग्ेस और उसके सहयोगी असहज हो गए । उनकी असहजता कई बार उनके बयानों और तक्याकलापों के माधयम से सार्वजनिक भी हुई और लगातार हो भी रही है । कांग्ेस , वामपंथी और उनके सहयोगियों के असहाय होने का एक बड़ा कारण यह भी रहा कि मोदी की जीत के बाद देश की राजनीति में पहली बार जाति , वंश , तुसषटकरण , सामप्रदायिकता , भ्रषटाचार जैसी िषषों पुरानी बीमारियों का अंत होना शुरू हो गया और देश
की राजनीति में एक ऐसे मुद्े का जनम हुआ , जिस पर ्िरंत्रता के बाद से भाजपा विरोधी पार्टियां बात करने की आवशयकता का भी आभास नहीं करती थी । विकास के रूप में सामने आए नए मुद्े को देश की जनता ने सर्वसममति से ्िीकार किया और उन नेताओं को किनारे करना शुरू कर दिया , जिनके लिए विकास कोई मुद्ा कभी था ही नहीं ।
यही कारण रहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद कई राजयों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्ेस और उसकी सहयोगी पार्टियां लगातार पराजय का मुंह देखती रही , वही प्रधानमंत्री नरेंरि दामोदर दास मोदी के विकासवादी एजेंडे को सभी ने सराहने में कोई कसर नहीं छोड़ी । विकास के मुद्े पर जनता
12 flracj 2022