वोट बैंक बनाकर रख दिया । देश में लगभग 20.14 करोड़ जनसंखया यानी 16.6 प्रतिशत दलितों की है । इस दलित जनसंखया का कथित रूप से नेतृति करने वाले नेताओं को खुद नहीं पता कि उनहें करना कया है ? वह सत्ा के उन मठाधीशों के प्रभाव में दलितों को बहकाने एवं भ्रमित करने के प्रयास में लगे हैं , जो मठाधीश दलित-मुस्लम एकता के नाम पर मोदी सरकार को हटाने के लिए गणित बैठाने में लगे हुए हैं । विचारधारा विहीन , दलीय नेतृति विहीन , दलित आंदोलन की समझ विहीन और जनहित लक्य एवं दिशाविहीन दलित नेता कया वा्रि में दलितों के उतथान के लिए प्रयासरत हैं ? यह सभी को देखना और समझना होगा-विशेष रूप
गठजोड़ को लेकर एक मुहिम चलायी जा रही है । तथाकथित दलित मुस्लम गठजोड़ की यह मुहिम , फिर उसी हैदराबाद से शुरू हुई , जहां मुस्लम एकता के नाम पर हिनदुओं यानी दलितों का नरसंहार किया गया था । दलित-मुस्लम गठजोड़ के लिए जोर लगा रही कांग्ेस , वामपंथी पार्टियां और अनय भाजपा विरोधी दल एवं संगठन , सभी का इस गठजोड़ की आड़ में केवल यही सपना है कि किस तरह से भाजपा सरकार को सत्ा से हटाकर सत्ा को हासिल किया जाये । तथाकथित बुद्धिजीवियों द्ारा उन घटनाओं को दलित-विमर्श के नाम पर वैधता देने का प्रयास भी किया जा रहा हैं , जहां अपराधी हिनदू समाज से जुड़ा होता है । लेकिन दलितों
मजहबी समुदाय । दलितों और मुस्लमों के बीच भला कौन सी समानता है ? कया उनके बीच ऐसे कोई साझा मुद्े हैं जो भारत के हर एक नागरिक के बीच में नहीं हैं ? पूर्व में पातक्रान बंटवारे के बाद दलितों को इस राजनीतिक छलावे की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी । अतीत की कटु सच्ाई के उपरांत फिर से वही पुराना खेल खेलने की चेषटा हो रही है । इसके तहत बताया जा रहा है कि किस तरह दलितों ने इ्लाम अपनाया और आज जो बड़ी संखया में मुस्लम हैं , वह ि्रुर : पुराने दलित ही हैं । देश की बड़ी मुस्लम आबादी का मूल तुर्क , ईरानी और मधय-एशिया का है । इ्लाम में परिवर्तन एक जटिल प्रतक्या है , जिसके अनेक कारण हैं । यह
से दलित समाज को ।
कथित दलित-मुस्लिम गठजोड़ की पैरवी करने में जुटा है विपक्ष
देश में पहली बार पूर्ण बहुमत से भाजपा सरकार बनने के बाद से लगातार दलित-मुस्लम
के विरुद्ध मुस्लम अपराधियों के कुककृतयों पर सब चुप होकर बैठ जाते हैं । यह सिलसिला लगातार जारी है । वा्रि में देखा जाये तो भारत में कथित ‘ दलित-मुस्लम गठजोड़ ’ के नारे का कोई मतलब है ही नहीं । कारण यह है कि दलित एक सामाजिक समुदाय है और मुस्लम एक
कहना कि केवल दलितों ने जातिवाद से मुसकर के लिए इ्लाम अपनाया पूर्णरूपेण असतय है । यह कहना सच्ाई के करीब है कि अधिकतर दलितों ने इसे ठुकराया वरना छह सौ सालों की इ्लामी हुकूमत और उनकी दासता में दलितों को रोकने वाला कौन था ? इसके बाद कथित
flracj 2022 11