eMag_Sept2022_DA | Page 10

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वालों को राजनीति दलित वर्ग में भ्रम का माहौल बना रही है । कारण यह है कि मुस्लम संस्कृति में मुसलमान को छोड़कर उनका किसी अनय संस्कृति से वा्रतिक भाईचारा नहीं हो सकता है । इसका भयानक एवं कटु अनुभव डॉ आंबेडकर और जोगेंरि नाथ मंडल जैसे दलित नेताओं का रहा है । वर्तमान दौर के अधिकतर दलित एवं विपक्षी नेता दलित-मुस्लम राजनीतिक गठबंधन के नाम पर " जय भीम-जय मीम " के नारे को लगते हुए दिखाई देते हैं । कथित रूप से दलित-मुस्लम राजनीतिक गठजोड़ के इस राग को हवा देने का काम वह वामपंथी संगठन और वामपंथी बुतद्जीवी कर रहे हैं , जिनके लिए भारत की एकता और अखंडता कोई मायने नहीं रखती है । इनका साथ वह सभी दल और नेता दे रहे हैं , जो किसी भी तरह से भाजपा को सत्ा में नहीं चाहते हैं । इस सभी का एकमात्र लक्य केंरि से लेकर राजयों में तभन् विचारधारा की सरकार को गिराना और येन-केन प्रकारेण अपनी विचारधारा यानी
वामपंथी विचारधारा की सत्ा पुनः ्थातपर करके देश में लूटपाट करना है । इसीलिए वर्तमान समय में आज दलित वर्ग के उतथान का सीधा अर्थ हिनदू धर्म के विरोध पर जाकर स्थर हो जाता है । भाजपा विरोध के नाम पर दलितों को यह समझाने में कोशिश लगातार की जा रही है कि अगर दलित और मुस्लम एक साथ हो जाये तो दलितों और मुस्लमों की सभी सम्याओं का समाधान हो जायेगा । लेकिन इसके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि मुस्लमों के साथ गठजोड़ करने के बाद दलितों की सभी सम्या का समाधान कैसे होगा ?
विपक्षी दलों के निशाने पर है भाजपा
2014 के लोकसभाव चुनाव के बाद भाजपा को मिल रहे दलित समाज के समर्थन को खतम करने के लिए कांग्ेस सहित वामपंथी संगठन , वामपंथी बुद्धिजीवी और ईसाई मिशनरियां भी बहुत तेजी से सतक्य हैं । यह सभी दलित समाज
को बरगलाकर उनहें मुस्लम समुदाय के साथ मिल कर या ईसाई धर्म अपनाकर अपने भविषय सुधारने का भ्रमित प्रचार लगातार कर रहे हैं । इस प्रचार की वजह से देश के अलग-अलग तह्सों से दलितों के धर्मपरिवर्तन की खबरें भी प्रायः सुनाई देने लगी है , जिसे अखंड भारत के भविषय लिए अचछी खबर नहीं कहा जा सकता है । लेकिन दलित वर्ग की राजनीति करने वाले कई बड़े नेता भी चुप होकर सब कुछ देख रहे हैं । मायावती , मुलायम सिंह , लालू प्रसाद सहित अनय नेताओं में एक समानता यह भी है कि दलितों के कलयार के नाम पर यह सभी किसी न किसी रूप में बस उनका वोट और अपनी राजनीति एवं सत्ा प्रापर करने की दिशा में ही वय्र रहे और दलित कलयार केवल भाषणों में क़ैद होकर रह गया । समाजवादी भारत की कलपना करने वाले डॉ राम मनोहर लोहिया ने भारत की पिछड़ी , दलित , गरीब और वंचित जनता के लिए भारत का सपना देखा था । लेकिन उनके तथाकथित शिषयों ने भी दलितों को सिर्फ
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