doj LVksjh
षसथलत कुछ और ही होती । लेकिन वोट बटोरने के लिए दलित समाज के प्रति अपनतव का दिखावा करने में कायंग्रेस आज भी किसी से पीछ़े नहीं रहती है । यही वजह है कि इस बार भी यूपी में कायंग्रेस दलित सवालभमान यारिा निकाल रही है । दो और तीन अगसत को यूपी के सभी जिलों में शुरू होने वाली इस यारिा में कायंग्रेसी कार्यकर्ता और पदाधिकारी राज् में दलितों से जुड़़े मुद्ों को उठाते हुए सरकार से सवाल करेंगे । यूपी कायंग्रेस की ओर से शुरू होने वाली इस दलित सवालभमान यारिा के दौरान पाटटी के कार्यकर्ता राज् के भीतर हो रहे दलित उत्पीड़न के मुद्े को उठाने का काम करेंगे । पाटटी की ओर से राज् सरकार को अगले 10 दिनों में दलित उतपीड़न रोकने के लिए ठोस कदम उठाने को लेकर अलटीमेटम दिया जाएगा । कायंग्रेलस्ों का कहना है कि यदि दिए गए समय में सरकार की ओर से कोई खास कदम नहीं उठाया गया तो कायंग्रेस पाटटी राज् में बड़़े सतर पर दलितों के लिए आयंदोलन करेगी ।
सपा — बसपा से दलित समाज का मोहभंग
यह बात सभी दलों को अचछी तरह से पता है कि दलितों का समर्थन ही उत्तर प्रदेश में सफलता की कुंजी है । तभी तो दलितों की अपेषिाओं को पूरा करने में कोई भी दल पीछ़े नहीं रहना चाहता है । लेकिन सिर्फ भाजपा ही है जिसका समीकरण दलितों के पषि में खुल कर सामने आने से नहीं बिगड़ता है वर्ना सपा चाह कर भी दलितों के पषि में खुलकर नहीं बोल सकती क्ोंकि उसका परयंपरागत वोट बैंक ही दलित विरोध के लिए उसके पषि में रहता है । लिहाजा दलित समाज के पषि में अधिक आगे बढ़ने का कोई भी प्रयास उसके लिए राजनीतिक तौर पर आतमघाती साबित होगा । यही वजह है कि सपा के राज में दलित उतपीड़न के मामले सबसे अधिक सामने आते हैं और सपा का शीर्ष नेतृतव उन मामलों को अनदेखा और अनसुना करने में ही अपनी भलाई समझता
है । रहा सवाल खुद को दलितों की मसीहा बतानेवाली बसपा सुप्रीमो सुश्ी मायावती का तो उनकी भी अपनी सीमाएयं हैं । उनकी राजनीति जाटव और गैर — जाटव में इस कदर उलझ कर रह गई है कि समग्रता में सभी दलितों को अपने साथ जोड़ कर रख पाना उनके लिए अब सयंभव ही नहीं है । अलबत्ता उनको अपना परयंपरागत जाटव वोट सुरलषित रखना ही भारी पड़ता रहा है । हालायंलक जाटवों को अपने पषि में एकजुट रखने के लिए वर्ष 2006 में उनहोंने यहायं तक ऐलान कर दिया था कि बसपा के मिशन को आगे बढ़ाने वाला उनका उत्तराधिकारी कोई जाटव ही होगा । मायावती ने ऐसा ऐलान करने के कम में यह दलील भी दी कि जाटव समाज ने ही मनुवादियों के हाथों सबसे ज्ादा जुलम सहे हैं । मायावती के इस ऐलान के बाद से ही गैर — जाटव दलितों का बसपा से मोह भयंग हो गया और बाद में अपने शासनकाल में एट्ोलसटी एकट को सखती से लागू कराने के बजाय पुलिस को ऐसे मामलों में लढ़िाई से पेश आने और
8 दलित आं दोलन पत्रिका flracj 2021