eMag_Sept2021_DA | Page 7

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की सियासत में सफलता का शगुन बनता रहा है और यही परिपाटी इस बार भी कायम रहने में सयंदेह व्कत करने का कोई कारण नहीं है ।
यूपी में बेहद शततिशाली दलित समाज
दलित वोट की उत्तर प्रदेश में दूसरी सबसे बड़ी हिससेदारी है । मौजूदा आयंकड़ों के मुताबिक , यूपी में 20-21 फीसदी सयंख्ा दलितों की है । यूपी में दलितों की कुल 20-21 फीसदी आबादी में सबसे बड़ी सयंख्ा जाटव की है , जो करीब 54 फीसदी हैं । इसके अलावा प्रदेश में दलितों की 66 उपजातियायं हैं , जिनमें 55 ऐसी उपजातियायं हैं , जिनका सयंख्ा बल ज्ादा नहीं हैं । इसमें मुसहर , बसोर , सपेरा , रयंगरेज , अहेरिया , बहेलिया
और पासिया आदि शामिल हैं । जाटव के अलाव अन् जो उपजातियायं हैं , उनकी सयंख्ा 45-46 फीसदी के करीब है । इनमें पासी 16 फीसदी , धोबी , कोरी और वालमीलक 15 फीसदी और गोंड , धानुक और खटीक करीब 5 फीसदी हैं । यानी समग्रता में समझने की कोशिश करें तो यूपी में दलितों की कुल 20-21 फीसदी आबादी को अगर मोटा — मोटी दो भागों में बायंट दें , तो प्रदेश में 14 फीसदी जाटव हैं और दलित समाज के बाकी जातियों की प्रदेश में सयंख्ा 8 फीसदी है । दलित समाज के घनतव के लिहाज से देखें तो पूरे उत्तर प्रदेश में 42 ऐसे जिलें हैं , जहायं दलितों की सयंख्ा 20 प्रतिशत से अधिक है । जिन 42 जिलों में दलितों मतदाताओं की आबादी 20 फीसदी से अधिक है उनमें जाटव समाज
की बहुलता वाले जिले हैं आजमगढ़ , जौनपुर , आगरा , बिजनौर , सहारनपुर , गोरखपुर और गाजीपुर । इसके अलावा गैर — जाटव दलितों के प्रभाव वाले जिलों में सीतापुर , रायबरेली , हरदोई , इलाहाबाद , बरेली , सुलतानपुर और गाजियाबाद का नाम मुख् रूप से शामिल है ।
दलित समाज को लुभाने की कांग्ेस की कोशिश
इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि देश की सवाधीनता के बाद लगातार कई दशकों तक पयंचायत से पार्लियामेंट सतर तक एकछरि राज करनेवाली कायंग्रेस ने अगर ईमानदारी से दलित समाज के हितों को सुनिश्चत किया होता तो आज इस समाज की
flracj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 7