eMag_Sept2021_DA | страница 6

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" जिसके दलित- उसकी यूपी "

चुनाव दर चुनाव , हर बार उत्र प्रदेश में यही देखा गया है कि जिसके साथ दलित समाज के मतदाताओंका सर्वाधिक समर्थन रहा , उसे ही प्रदेश में अपनी सरकार बनाने में कामयाबी मिली है । यानी सूबे में सफलता कती कुं जी दलित समाज का समर्थन ही है । इस लिहाज से परखें तो इस बार फिर दलित समाज के मतदाताओं का रुझान भाजपा के साथ ही मजबूती से लगातार बढ़ता हुआ दिख रहा है । खास तौर से दलित समाज के बीच फू ट डालकर राज करने कती बसपा कती नीति का बेनकाब हो जाना और सपा के राज में हुए अत्ाचारों कती टीस का आज भी बरकरार रहना ही भाजपा के पषि में नहीं जाता बल्कि भाजपा ने जिस तरह से दलित समाज को अपनाया और गले लगाया है उससे अभिभूत यह समाज भाजपा के अलावा किसी अन्य विकल्प पर विचार करने के लिए भी तैयार नहीं दिख रहा है । प्रस्ुि है इन जमीनी समीकरणों और हकतीकतों कती विस्ार से पड़ताल करती हुई यह रिपोर्ट —

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नवकांत ठाकुर
पी की राजनीति में हमेशा से यही देखा गया है कि प्रदेश की कुल 403 विधानसभा सीटों में से
दलित समाज को राजनीति में प्रतिनिधितव देने के लिए आरलषित जिन 86 सीटों में से अधिकतम पर जीत दर्ज कराने में जिस दल को कामयाबी मिलती है उसे ही सूबे की सत्ता पर भी कबजा जमाने का मौका मिलता है । मिसाल के तौर पर वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बसपा को सर्वाधिक 62 आरलषित सीटों पर जीत हासिल हुई थी और प्रदेश में सरकार बनाने का मौका भी बसपा को ही मिला था । इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक 58 आरलषित सीटों पर सपा ने जीत दर्ज
कराई थी और सूबे की सत्ता पर भी उसने पूर्ण बहुमत से कबजा जमाया था । यही परिपाटटी बीते 2017 के विधानसभा चुनाव में भी देखी गई जिसमें दलितों के आरलषित सीटों में से सबसे अधिक 85 रिजर्व सीटें भाजपा की झोली में आई थीं और प्रदेश की विधानसभा में भी भाजपा को तकरीबन तीन — चौथाई सीटों के ऐतिहासिक बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाने में कामयाबी मिली थी । यानी इन आयंकड़ों को समग्रता में समझने का प्रयास करें तो सप्ट दिखाई पड़ता है कि दलितों का समर्थन ही सूबे
6 दलित आं दोलन पत्रिका flracj 2021