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नवकांत ठाकुर
पी की राजनीति में हमेशा से यही देखा गया है कि प्रदेश की कुल 403 विधानसभा सीटों में से
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दलित समाज को राजनीति में प्रतिनिधितव देने के लिए आरलषित जिन 86 सीटों में से अधिकतम पर जीत दर्ज कराने में जिस दल को कामयाबी मिलती है उसे ही सूबे की सत्ता पर भी कबजा जमाने का मौका मिलता है । मिसाल के तौर पर वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बसपा को सर्वाधिक 62 आरलषित सीटों पर जीत हासिल हुई थी और प्रदेश में सरकार बनाने का मौका भी बसपा को ही मिला था । इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक 58 आरलषित सीटों पर सपा ने जीत दर्ज |
कराई थी और सूबे की सत्ता पर भी उसने पूर्ण बहुमत से कबजा जमाया था । यही परिपाटटी बीते 2017 के विधानसभा चुनाव में भी देखी गई जिसमें दलितों के आरलषित सीटों में से सबसे अधिक 85 रिजर्व सीटें भाजपा की झोली में आई थीं और प्रदेश की विधानसभा में भी भाजपा को तकरीबन तीन — चौथाई सीटों के ऐतिहासिक बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाने में कामयाबी मिली थी । यानी इन आयंकड़ों को समग्रता में समझने का प्रयास करें तो सप्ट दिखाई पड़ता है कि दलितों का समर्थन ही सूबे |