jaxeap
दलित वर्ग ने जीवित रखी हैं लोक — गाथाएं
दलित वर्ग के कलाकारों की लोक — कलाओं को जीवित रखने को लेकर जितनी प्रशयंसा व सराहना की जाए उतनी ही कम है । उदाहरण के लिए राजा सलहेस एवयं आलहा — ऊदल की लोगाथाओं के मामले में दलित वर्ग के कलाकारों की भूमिका को देखा जा सकता है । आलहा — ऊदल की गाथाएयं नेपाल से लेकर बु यंदेलखयंि तक गाई — सुनाई और मयंलचत की जाती रही हैं , परयंतु इसके प्रचार — प्रसार में समाज के बुद्धिजीवी वर्ग एवयं विद्ानों ने गयंभीरता नहीं दिखाई है । यह लोक — गाथाएयं दलित समाज के कलाकारों ने ही पीढ़ी दर पीढ़ी मयंलचत करते हुए जीवित रखी हैं । लेकिन इसके कलाकारों को समाज में कभी पहचान , सममान और समुचित सथान दिया जाना जरूरी नहीं समझा गया । हालायंलक इस मामले में अब तसवीर का एक सुनहरा रूख भी सामने आने लगा है ओर खास तौर से सोशल मीडिया के मयंच का इसतेमाल करने के कारण अब दलित समाज के कई कलाकार दुनिया के मानस पटल पर छाने
लगे हैं और बिहार का नाम ऊंचा करने लगे हैं । राजा सलहेस से जुड़ी लोक — गाथाओ ंकी बढ़
रही प्रसिद्धि
राजा सलहेस की लोक — गाथा उनकी सूझ —
बूझ और वीरता से जुड़ी हैं । जहायं एक ओर राजा सलहेस की गाथाएयं बेहद मनोरयंजक हैं वहीं समाज के लिए लशषिाप्रद भी हैं । लेकिन , समाज में व्ापत वर्ग भेद और ऊंच — नीच की मान्ताओं से जुड़ी पूर्वाग्रहपूर्ण सोच इस लोकगाथा के जन — जन तक फैलने और समाज के सभी वगगों से जुड़ने की राह में बड़़े रोड़़े के तौर पर बाधक बनती रही है । लेकिन इस मामले में भी बदलते वकत के साथ षसथलत्ों में सकारातमक सुधार और बदलाव देखा जा रहा है क्ोंकि आज दलित समाज के कलाकारों से लेकर कई कथित उच् वर्ग के लेखक व कलाकार भी राजा सलहेस की लोक — गाथा को देश — दुनिया में प्रसिद्धि दिला रहे हैं । पिछले दिनों दिलिी की एक प्रसिद्ध व प्रतिष्ठत नाट् सयंसथा ' मिथिलायंगन ' ने भी लोक शैली में राजा सलहेस की गाथा को मयंलचत किया जिसे
अपार सफलता व सराहना मिली । राजा सलहेस की लोक गाथा की अनेक चाररलरिक विशेषताओं में काफी कुछ ऐसा भी शामिल है जो मौजूदा समाज की परयंपरागत व्वसथाओं को प्रलतलबयंलबत करती है । राजा सलहेस की लोक — गाथा को सर्वकालिक प्रासयंलगकता देनेवाला यह प्रलतलबयंब सामाज के समपूर्ण सायंसकृलतक और आर्थिक इतिहास की थाती को भी आतमसात करते चले जाने के कारण सयंभव होता है ।
चित्रकला और मूर्तिकला की अपेक्षा रंगकला की
उपेक्षा रयंगकला का षिेरि बेहद विसतृत और बहुआयामी
है जिसके व्ापक विसतार षिेरि में पूजा — पाठ और तीज — त्ोहार आदि भी शामिल है । उनकी गतिमय प्रसतुलत्ों के जरिए जन सामान् के समषि उनकी अभिव्षकत होती है । खास तौर से राजा सलहेस की गाथा की बात करें तो इसमें मूल रूप से लचरिकला , मूर्तिकला और का्ठ कला का भी पूर्णरूपेण समावेश है । मिथिलायंचल में इन कलाओं के कर्णधार कहे जानेवाले दलित वर्ग के कलाकारों
flracj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 49