eMag_Sept2021_DA | Page 45

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ने माना है कि निर्माता आमतौर पर ऐसे ‘ परेशान करने वाले ’ विषयों को सिनेमा के माध्म से समाज के समषि उठाने से कतराते हैं । हालायंलक दलितों-वयंलचतों के मुद्े पर हाल में षिेरिी् सिनेमा में कर्णन , असुरन जैसी शानदार फ़िलमें आई हैं । लहयंदी में भी आयु्मान खुराना की आर्टिकल 15 का कथानक भी जाति आधारित शोषण से जुड़ा था । गोलवयंद निहलानी की चर्चित फ़िलम आकोश ने दलित-दमित समूहों के शोषण और उनको न्ा् दिलाने की प्रलक्ा के झोलझाल को बहुत शानदार अयंदाज़ में दिखाया था । हिनदी सिनेमा से अलग हटकर देखा जाए तो मराठी और तमिल सिनेमा में जाति के मुद्ों को सफलतापूर्वक उठाया गया है । खास तौर से नागराज मयंजुले की ‘ फंदरी ’ व ‘ सैराट ’ और पा रयंजीत की ‘ काला ’ व ‘ सरपट्ा परयंबरई ’ जैसी फिलमों को जातिगत मुद्ों को आगे रखने वाली फिलमों की सूची में गिना जा सकता है । लेकिन अगर लहयंदी फिलमों के इतिहास में झायंकें तो अमोल पालेकर बताते हैं कि नीरज घेवान की ‘ मसान ’ और ‘ गीली पुच्ी ’ को छोड़कर , लहयंदी मुख्धारा के सिनेमा में जाति का मुद्ा काफी हद तक अदृ्् रहा
है । हालायंलक पिछले दिनों नेटफ्िकस पर आई फिलम ‘ अजीब दास्तां ’ में भी ऐसे ही ' अदृ्् ' मुद्े को एक अलग पहलू से छूने की कोशिश की गई है ।
कथानक पर हावी ब््ह्मणवादी सौंदर्यशास्त्र
अमोल पालेकर का बेलाग लहजे में साफ तौर पर कहना है कि लहयंदी फिलम उद्ोग अभी भी ‘ ब्राह्मणवादी सौंदर्यशासरि ’ से बाहर आने से इनकार करता है । उनहोंने कहा , लहयंदी सिनेमा अभी भी जाति के मुद्ों पर एक लवलश्ट चुपपी बनाए रखना पसयंद करता है । हमारा फिलम उद्ोग ब्राह्मणवादी सौंदर्यशासरि से बाहर आना ही नहीं चाहता है । अगर ऐसे पहलुओं को किसी फिलम में छुआ भी गया तो उसमें भी एक प्रेम कहानी के माध्म से जाति विभाजन के विषयों को पेश किया जाता था । हालायंलक ऐसी फिलमों में उतपीड़न दिखाया अव्् जाता था लेकिन इन फिलमों में भी कहानी का अयंत बहुसयंख्कों को खुश करने वाला होता था । आमिर खान अभिनीत फिलम ‘ लगान ’, तापसी पन्नू की ‘ लपयंक ’
और ‘ थपपड़ ’ जैसी फिलमों का उदाहरण देते हुए थियेटर , फिलमों , टीवी और कला से जुड़़े 76 वरटी् अभिनेता अमोल पालेकर का मानना है कि एक माध्म के रूप में सिनेमा में लोगों के दिल को छूने की ‘ अद्भुत शषकत ’ है ।
महिलाओ ंके मुद्े भी रहे नेपथ्य में
हिनदी सिनेमा में जिस प्रकार जातीय विषयों को आगे रखने के प्रति अनिचछा का भाव रहता रहा है वैसा ही हाल महिलाओं से जुड़़े मुद्ों का और नारीवादी विचारों का भी हुआ है । अमोल पालेकर के मुताबिक औरतों की कहानी सब- ट़ेकसट ( मूल कहानी के पीछ़े रखा जाता था ) का हिससा हुआ करती थीं । हालायंलक ओटीटी पिेटफॉर्म के आगमन के साथ महिला केंद्रित विषयों को देखा व दिखाया जाने लगा है और अब इन दिनों महिला पारिों को सार्थक और प्रमुख भूमिकाएयं मिल रही हैं । पालेकर ने सिनेमा के कथानक में आ रही इस वैचारिक तबदीिी को एक सुखद बदलाव का नाम दिया है । उनहोंने कहा कि हमने देखा कि कैसे ‘ लगान ’ को सभी
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