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सवालों में आई हिं दी सिनेमा की जाति के मुद्ों पर विशिष्ट चुप्ी
दलित महिलाओं कती सच्ी कहानी से प्रेरित है फफल् “ 200 : हल्ा हो ” सिनेमा में लोगों के दिल को छू ने कती ‘ अद्ुि शजक् ’ : अमोल पालेकर
पवन कुमार fiQ
लम “ 200 : हलिा हो ” के माध्म से 12 साल के ियंबे अयंतराल के बाद फिलमों में वापसी कर रहे दिगगज अभिनेता अमोल पालेकर का मानना है कि लहयंदी सिनेमा में जाति को एक मुद्े के रूप में शायद ही कभी उठाया जाता है , क्ोंकि यह पारयंपरिक रूप से मनोरयंजक मुद्ा नहीं है । इस तरह के विषय परेशान करने वाले होते हैं और परयंपरागत रूप से मनोरयंजक नहीं होते हैं । यही वजह है कि आम तौर पर अधिकायंश फिलम निर्माता अपनी सिनेमाई यारिा के दौरान ऐसे विषयों पर आधारित फिलमों को बनाने से कतराते हैं ।
भारतीय सिनेमा में अदृश्य रहे जाति के मुद्े
एक बार फिर अमोल पालेकर अपने चिर — परिचित अयंदाज की गयंभीर फिलम “ 200 : हलिा हो ” लेकर आए हैं जो दलित महिलाओं की सच्ी
कहानी से प्रेरित है । फिलम में एक ऐसी महिला की कहानी को लचलरित किया गया है जिसने एक बलातकारी पर खुली अदालत में हमला किया था । सार्थक दासगुपता द्ारा लनददेशित और गौरव शर्मा द्ारा सह-लिखित फिलम 200 दलित महिलाओं की नजरों के माध्म से यौन लहयंसा , जाति उतपीड़न , भ््टाचार और कानूनी खामियों के मुद्ों को छूती है । अमोल पालेकर ने एक ईमेल साषिातकार में फिलम “ 200 : हलिा हो ” के बारे में खुल कर जानकारी देते हुए बताया
कि इस फिलम की कहानी में जाति के मुद्ों को उठाया गया है , जो भारतीय सिनेमा में अदृ्् रहे हैं ।
परेशान करने वाले विषयों से परहेज की परंपरा
सिने — निर्माताओं के मिजाज और सोच के बारे में बात करते हुए 1970 के दशक में ‘ रजनीगयंधा ’, ‘ चितचोर ’, ‘ छोटी सी बात ’, ‘ गोलमाल ’ जैसी लहयंदी फिलमों के नायक पालेकर
44 दलित आं दोलन पत्रिका flracj 2021